1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कैसे रहते हैं जर्मन लोग

Andrea Lueg४ जनवरी २०१४

दुनिया के अलग अलग हिस्सों में रहने वाले लोगों के बारे में जानने में किसकी दिलचस्पी नहीं होती. भारत में रहते हुए क्या आप सोच सकते हैं कि अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया या फिर जर्मनी में लोग कैसे रहते होंगे.

https://p.dw.com/p/1Al4O
जर्मन झंडे के तीनों रंग हैं येतस्वीर: picture-alliance/dpa

आपके मन में भी सवाल उठते होंगे कि दूसरे देशों में लोग कैसे रहते हैं, क्या खाते हैं, क्या सोचते हैं, क्या इस्तेमाल करना पसंद करते हैं? एक औसत जर्मन व्यक्ति कैसा होता है, इसके बारे में विदेशों के ज्यादातर लोगों की एक खास राय उभर कर आती है. एक अध्ययन में बताया गया है कि अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में जर्मन लोग सचमुच कैसे रहते हैं.

बहुत सारे लोग एक औसत जर्मन व्यक्ति को परिभाषित करते समय ये कहते हैं कि जर्मन समय के पाबंद, सुव्यवस्थित, पर्यावरण के प्रति जागरूक और बियर पीना पसंद करने वाले लोग होते हैं. कुछ लोग शायद यह कहने से भी नहीं चूकेगें कि जर्मन लोग मोजे के साथ सैंडल पहनते हैं और मजाक उन्हें समझ नहीं आता. लेकिन वाकई एक औसत जर्मन कैसा होता है, इसका मिलकर जवाब ढूंढने की कोशिश की जर्मनी के चार प्रमुख प्रकाशन समूहों आक्सेल श्प्रिंगर, बावर मीडिया ग्रुप, ग्रूनर यार और हूबैर्ट बुर्डा मीडिया ने.

Symbolbild Klischee-Deutscher Socken in Sandalen
जर्मन लोग दिख जाते हैं मोजे के साथ सैंडल पहनेतस्वीर: picture alliance/dpa Themendienst

कथनी और करनी में अंतर

इस अध्ययन में कुछ बहुत दिलचस्प नतीजे सामने आए जिससे यह साफ पता चलता है कि लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ और. स्टडी में पाया गया कि आम तौर पर पर्यावरण के प्रति काफी जागरूक माने जाने वाले जर्मन लोग जब एक नई कार खरीदने के बारे में सोचते हैं, तो गैस से चलने वाली एसयूवी या बिजली के मोटर से चलने वाली कार के बीच ज्यादा फर्क नहीं करते. और तो और, हर हफ्ते कई बार फास्ट फूड खाने वाले करीब 44 फीसदी लोग भी यही कहते मिले कि उनके लिए अपनी सेहत की देखभाल सबसे जरूरी हैं.

जर्मनी के लोगों के स्वभाव में पाए गए इन विरोधाभासों के बारे में आक्सेल श्प्रिंगर प्रकाशन समूह के हेल्मुट क्राउजे जोलबेर्ग कहते हैं कि ये नतीजे सिर्फ यह दिखाते हैं कि बहुत सारी चीजों के बारे में लोगों का नजरिया तो बदल रहा है लेकिन उसे व्यवहार में उतारने में अभी समय लगेगा, "जब भी आप लोगों के असली व्यवहार की तुलना करेंगे तो पाएंगे कि वे जो वाकई खरीदते और इस्तेमाल करते हैं वह हमेशा उनकी सोच से पीछे ही चलता है."

Helmut Krause-Solberg
आक्सेल श्प्रिंगर प्रकाशन समूह के हेल्मुट क्राउजे जोलबेर्गतस्वीर: Axel Springer AG

खुद को क्या समझते हैं

जर्मनी की एक बड़ी ब्रूअरी ने कुछ समय पहले करवाए गए एक सर्वे में जर्मन लोगों से पूछा था कि वे खुद के बारे में क्या ख्याल रखते हैं. जवाब देने वाले करीब 35 फीसदी लोगों ने खुद को "टिपिकल जर्मन" बताया. करीब इतने ही लोगों ने जवाब में यह कहा कि वे खुद को इस वर्ग में नहीं देखते जबकि बाकी लोग इस बात का फैसला नहीं कर पाए कि वे "टिपिकल" हैं या नहीं. सर्वे में शामिल किए गए करीब 73 प्रतिशत लोग खुद को उतना ईमानदार, वक्त का पाबंद या कर्तव्यनिष्ठ नहीं मानते जैसी कि आम धारणा है.

ब्रूअरिओं के लिए प्रसिद्ध जर्मनी में बियर पीने के शौकीन पहले से कम होते जा रहे हैं. फिर भी पूरी दुनिया में हर साल प्रति व्यक्ति बियर की खपत के मामले में जर्मनी अब भी चेक रिपब्लिक और ऑस्ट्रिया के बाद तीसरे नंबर पर आता है.

Oktoberfest 2013
जर्मनी का अक्टूबरफेस्ट हर साल पूरी दुनिया से सैलानियों को खींचता हैतस्वीर: picture-alliance/dpa

हंसी मजाक में

जर्मन लोगों के बारे में प्रचलित एक और धारणा यह रही है कि उन्हें मजाक समझ नहीं आता. इस नए अध्ययन में इस पर कोई आंकड़े नहीं मिले लेकिन दस साल पहले हेर्टफोर्डशायर यूविवर्सिटी के रिचर्ड वाइसमन ने कई देशों में मजाक को लेकर रिसर्च की. नतीजा यह आया कि स्टडी में हिस्सा लेने वाले जर्मन प्रतिभागियों को बाकी देशों के लोगों के मुकाबले चुटकुलों पर ज्यादा हंसी आई. इससे वाइसमन ने यह निष्कर्ष निकाला कि जर्मन लोगों को हर तरह के चुटकुले खूब मजाकिया लगते हैं. इसका मतलब यह है कि जर्मन लोगों में मजाक समझने की योग्यता ज्यादा विकसित नहीं होती.

क्या बिकता है

इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि जर्मन लोग कपड़े खरीदते समय सबसे ज्यादा ध्यान इस बात पर देते हैं कि वे आरामदायक हों. जर्मनी की आधी से ज्यादा आबादी इस बात पर भी एकमत थी कि नए जूतों के लिए वे बाजार में 100 यूरो से ज्यादा खर्च नहीं करना चाहेंगे.

इस तरह की जानकारी रोजमर्रा की चीजें बेचने वाली कंपनियों के लिए बहुत काम की लगती है. इस पर क्राउजे जोलबेर्ग कहते हैं कि, "यह नतीजे सटीक विज्ञापनों के जरिए सही खरीदार तक पहुंचने के लिहाज से काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं. यही इसका मकसद भी है."

रिपोर्ट: मार्कुस ल्यूटिक/आरआर

संपादन: ईशा भाटिया

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी