कैसी है हमारी धरती की तबीयत
पहले से खस्ताहाल जलवायु पर बेपरवाही की दोहरी मार पड़ रही है. एक बार नजर डालते हैं कि वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी धरती ग्लोबल वॉर्मिंग के कितने गंभीर खतरे में पड़ी हुई है.
तापमान
धरती का औसत तापमान बढ़ रहा है. 1880 से इसके आंकड़े जमा किए जा रहे हैं. 21वीं सदी के अब तक के 16 सालों में रिकॉर्ड तापमान दर्ज हुए हैं. विश्व के कुछ बड़े शहरों में सन 2100 तक तापमान आठ डिग्री सेल्सियस तक और बढ़ जाने का अनुमान है.
बर्फ की चादर
आर्कटिक पर बर्फ की चादर सिमटती जा रही है और 2030 की गर्मियों तक आर्कटिक सागर से बर्फ खत्म होने का अनुमान है. दूसरे छोर पर, अंटार्कटिक में भी समुद्री बर्फ में भारी कमी दर्ज हुई है. लगातार 36 सालों से ग्लेशियरों का इलाका भी घटता जा रहा है.
ग्रीनहाउस गैसें
2016 में कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी अहम ग्रीनहाउस गैसों की वातावरण में मात्रा उच्चतम रही. पेरिस समझौते में इनको 450 पीपीएम पर सीमित करने का लक्ष्य है. जिससे वैश्विक तापमान को 2 डिग्री की सीमा पर रोका जा सके.
फॉसिल फ्यूल
इन ईंधनों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है. बीते तीन सालों में अर्थव्यवस्था में विकास के बावजूद इनका स्तर स्थिर बना हुआ है. लेकिन मीथेन का स्तर बढ़ा है, जो कि वातावरण को CO2 से भी ज्यादा गर्म करता है. मीथेन के बढ़ने का कारण पता नहीं चल पाया है.
समुद्री स्तर
बर्फ का पिघलना और पानी का गर्म होकर फैलना तेज हो गया है. 2005 से 2015 के बीच समुद्रस्तर उसके पहले के दशक के मुकाबले 30 फीसदी तेजी से ऊपर गया. यह दर और तेज होने की संभावना है, जिससे दुनिया के निचले इलाके डूब सकते हैं.
प्राकृतिक आपदा
इंसानी गतिविधियों से जलवायु में आते बदलावों और प्राकृतिक आपदाओं के बीच संबंध स्थापित हो चुका है. 1990 से आपदाएं दोगुनी हो चुकी है. विश्व बैंक बताता है कि हर साल इन आपदाओं के कारण करीब ढाई करोड़ लोग गरीबी में धकेले जा रहे हैं.
जैव विविधता
आईयूसीएन की रेड लिस्ट में "खतरे में" दर्ज जानवरों और पौधों की 8,688 प्रजातियों में से करीब 19 फीसदी पर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर पड़ा है. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ, जो कि अब कभी ब्लीचिंग के बुरे असर से उबर नहीं पाएगी. आरपी/एमजे (एएफपी)
______________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay |