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काले धन पर भारत सरकार को यूएन की सलाह

९ मई २०१७

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में भारत सरकार को सुझाव देते हुये कहा है कि अघोषित धन और संपत्ति पर लगाम कसने के लिये नोटबंदी ही काफी नहीं है. कालेधन से निपटने के लिए कुछ और कदम उठाने की दी सलाह.

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Indien Geldverleiher in Ahmedabad
तस्वीर: REUTERS/File Photo/A. Dave

छह महीने पहले 8 नवंबर को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक नोटबंदी का फैसला लेकर सब को सकते में डाल दिया था. सरकार का तर्क था कि यह कदम देश में बढ़ रही अघोषित संपत्ति और काले धन पर रोक लगाने के लिये उठाया गया है. लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र ने सरकार के इस फैसले पर जारी अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इस फैसले से न तो काले धन के सृजन पर पूरी तरह से रोक लग पाई है और न ही अघोषित आय और संपत्ति के बारे में पूरी तरह में कुछ पता चल सका.

संयुक्त राष्ट्र की "इकोनॉमिक एंड सोशल सर्वे ऑफ एशिया एंड द पैसिफिक 2017" की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में काले धन पर निर्भर अर्थव्यवस्था का आकार जी़डीपी का 20 से 25 फीसदी तक हो सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, इसमें नकदी की हिस्सा महज 10 प्रतिशत के आसपास होगा. ऐसे में नोटबंदी को काले धन पर लगाम कसने के लिये कारगर उपाय नहीं माना जा सकता और सरकार को अन्य दूसरे उपायों पर विचार करना चाहिए. रिपोर्ट में पारदर्शिता में इजाफा करने वाले व्यापक संरचनात्मक सुधारों पर जोर दिया गया है. इसमें वस्तु एवं सेवा कर, आय नीतियों का स्वैच्छिक खुलासा और करदाता की पहचान कर उच्च रकम वाले लेन देन की निगरानी पर भी चर्चा की गयी है.

इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में पारदर्शिता बढ़ाने के लिये रियल एस्टेट रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में सुधारों से जुड़ी बात भी की गयी है. रिपोर्ट के मुताबिक, "नोटबंदी के दौर में नकदी के विकल्पों को लेकर बढ़ी जागरूकता तथा सरकार की ओर से डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहन दिये जाने से नकदी-रहित लेनदेन में स्थायी रूप से वृद्धि होने की संभावना है."

इस समय डिजिटल भुगतान कुल लेनदेन का केवल 20 फीसदी और व्यक्तिगत उपभोग व्यय का पांच फीसदी है. इसी बीच देश के जाने माने अर्थशास्त्री और पूर्व आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने भी ट्वीट करते हुये कहा था कि नोटबंदी के छह महीने बीत चुके हैं और अब यह देखने का समय आ गया है कि हमने इससे क्या हासिल किया?

एए/आरपी (पीटीआई)