कृत्रिम सूरज बनाने की कोशिश
१० दिसम्बर २०१५परमाणु शोध संयंत्र वेंडेलश्टाइन 7एक्स में गुरुवार को पहले प्लाज्मा का सृजन किया गया. एक कंट्रोल सेंटर के निर्देशन में 10 मिलीग्राम हीलियम एक वैक्यूम चैंबर के चुम्बकीय क्षेत्र में भेजी गई और उसे 10 लाख डिग्री तक गर्म किया गया. पहले परीक्षण के बाद संयंत्र की डाइरेक्टर सिबेले गुंटर ने कहा, "यह एक उम्दा दिन है." जर्मनी के मैक्लेनबुर्ग प्रांत में स्थित माक्स प्लांक प्लाज्मा फीजिक्स इंस्टीट्यूट में नाभिकीय संलयन के उस परीक्षण की शुरुआत हो गई है जिसका लक्ष्य कार्बन मुक्त बिजली बनाना है.
जर्मनी के लिए यह महत्वपूर्ण दिन है. परीक्षण कारखाना बनाने का आवेदन देने के 19 साल बाद आज परीक्षणों की शुरुआत की घड़ी आई. सरकार ने कारखाना चलाने की अनुमति दे दी. गुरुवार को पहला प्लाज्मा बनाया गया, लेकिन हीलियम का इस्तेमाल कर. जनवरी में पहला हाइड्रोजन प्लाज्मा बनाया जाएगा. 1 अरब यूरो महंगे इस टेस्ट कारखाने में रिसर्चर सूरज की प्रक्रियाओं की तरह होने वाले नाभिकीय संलयन पर शोध करेंगे ताकि उसका इस्तेमाल धरती पर ऊर्जा पैदा करने के लिए किया जा सके. और बाद में बिजलीघरों में परमाणु कणों का संलयन कर बिजली पैदा की जा सके.
ग्राइफ्सवाल्ड के इंस्टीट्यूट में परमाणु कणों के संलयन की योजना नहीं है. वेंडेलश्टाइन 7एक्स टेस्ट संयंत्र जापान के एक संयंत्र के साथ दुनिया का सबसे बडा़ संलयन टेस्ट संयंत्र है. संस्थान के प्रमुख क्लिंगर ने कहा कि हीलियम प्लाज्मा बनाना परीक्षण का रिहर्सल है. इसके लिए वैक्यूम चैंबर में माइक्रोवेव हीटर से अत्ंयत विरल हीलियम को गर्म किया जाता है. इसके जरिये गैस का आयनीकरण हो जाता है और वह प्लाज्मा का रूप ले लेती है.
यह संस्थान 2017 से प्लाज्मा बनाने के लिए डॉयटेरियम का इस्तेमाल शुरू करेगा. इस हाइड्रोजन आइसोटोप के इस्तेमाल से बिजली बनाने की प्रक्रिया में बहुत कम रेडियोसक्रियता उत्पन्न होती है. लेकिन ऐसा करने से पहले और तकनीकी शर्तें पूरी करनी होंगी. माक्स प्लांक प्लाज्मा फीजिक्स संस्थान में करीब 500 कर्मचारी काम करते हैं. इसका खर्च यूरोपीय संघ और जर्मनी सरकार के अनुदानों के अलावा प्रांतीय सरकार भी उठाती है.
एमजे/ओएसजे (डीपीए)