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किशोरों को संवेदनहीन बनाते हिंसक विडियो

१९ अक्टूबर २०१०

मारधाड़ और हिंसा से भरपूर दृश्यों वाले टीवी प्रोग्राम या विडियो गेम्स किशोर बच्चों को हिंसा के लिए संवेदनहीन बना रहे हैं. एक नई रिपोर्ट में इस बात के सामने आने से एक बार फिर से हिंसा दिखाने के मामले पर बहस तेज हो गई है.

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तस्वीर: absolut MEDIEN

रिसर्च करने वालों का मानना है कि स्क्रीन पर दिखाई गई हिंसा किशोरों के दिमाग पर बुरा असर डाल कर उन्हें संवेदनहीन बना रही है. उन्होंने चिंता जताई है कि दिमाग का वो हिस्सा जो भावनाओं को नियंत्रित करता है और बाहरी घटनाओं पर प्रतिक्रिया जताता है वो बचपन के दौर में विकसित हो रहा होता है. दिमाग के यही हिस्सा संवेदनहीन होने की बात सामने आ रही है. जांच करने वालों के पास हिंसक दृश्यों के देखने के कारण कुंद हुए दिमाग के काम न करने के पक्के सबूत तो नहीं है लेकिन जो संकेत मिले हैं वो भी अच्छे नहीं.

दिमाग पर प्रयोग

अमेरिका की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यरोलॉजिकल डिसॉर्डर एंड स्ट्रोक के जॉर्डन ग्राफमैन और उनके साथियों ने हिंसक दृश्यों का असर देखने के लिए 22 बच्चों पर प्रयोग किए. इन सबकी उम्र 14 से 17 साल के बीच थी. इन बच्चों को 60 विडियो में से चुने गए हिंसक दृश्यों के चार चार सेकेंड के क्लिप दिखाए गए. इन दृश्यों का चुनाव बच्चों के एक दूसरे पैनल ने कम, मध्यम और हल्के हिंसक दृश्यों के रूप में अलग अलग हिस्सों में बांटा था. इन बच्चों को तीन बार में 20-20 क्लिप दिखाए गए. बच्चों के इन विडियो को देखने के दौरान एमआरआई के जरिये उनके दिमागी हरकतों की जानकारी जुटाई जा रही थी. बच्चों की उंगलियों में सेंसर भी लगाए गए थे जो उनकी त्वचा में हो रही संवेदनाओं की जानकारी हासिल कर रहे थे.

Symbolbild Jugendkriminalität Mädchen Gewalt
तस्वीर: chromorange

प्रयोग के बाद जो नतीजे मिले उनसे पता चला कि हिंसा देखने का समय बढ़ने के साथ बच्चों त्वचा और दिमाग की हरकतें कम होती गईं. हालांकि कम हिंसक दृश्यों को देखते समय उनकी प्रतिक्रियाओं पर कोई असर नहीं पड़ा. ग्राफमैन ने बताया,"हमने देखा कि ज्यादा हिंसा वाले दृश्यों को देखने के दौरान समय बीतने के साथ बच्चों के दिमाग की सक्रियता कम होती चली गई. ये कमी दिमाग के उस हिस्से में हुई जो भावनाओं को नियंत्रित करता है और उन पर प्रतिक्रिया जताता है, यही हाल त्वचा पर होने वाली संवेदनाओं का भी था."


'हिंसा परेशान नहीं करेगी'

ग्राफमैन मानते हैं कि इस तरह की संवेदनहीनता का असर कई चीजों पर हो सकता है. बच्चों में हिंसा के प्रति संवेदनहीनता का सबसे बड़ा असर ये होगा कि ज्यादा से ज्यादा हिंसा भी उन्हें विचलित या परेशान नहीं करेगी जो समाज के लिए ठीक नहीं. मतलब ये कि कितनी भी हिंसा हो जाए उन पर कोई असर ही नहीं होगा.

रिसर्च के लिए चुनी गई टीम में केवल लड़के ही थी इसलिए ये पता नहीं चल सका कि क्या लड़कियों पर ये असर कुछ अलग होता है. हालांकि पिछले कुछ रिसर्च में ये बात सामने आई है कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले हिंसक दृश्यों पर बहुत कम प्रतिक्रिया जताती हैं. ऐसा शायद दिमाग की अलग बनावट के कारण होता है. ये रिसर्च ब्रिटिश जर्नल सोशल कॉग्निटिव एंड एफेक्टिव न्यूरोसाइंस में छपी है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः एमजी

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