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किर्गिज़ जनता संसदीय लोकतंत्र के पक्ष में

२८ जून २०१०

किर्गिस्तान के 90 फ़ीसदी मतदाताओं ने देश में संसदीय लोकतंत्र का पक्ष लिया है. अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षकों ने जनमतसंग्रह पर संतोष जताया है, लेकिन रूस को डर है कि उग्रवादी सत्ता पर हावी हो सकते हैं.

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खुश हैं अस्थाई राष्ट्रपति रोज़ा ओटुनबायेवातस्वीर: AP

अब तक मध्य एशिया के सभी देशों में तानाशाही देखने को मिली हैं. किर्गिस्तान के जनमतसंग्ह के फैसले के साथ वह इस क्षेत्र का पहला देश बन जाएगा, जहां संसद के हाथों में सत्ता हो, यानी वह एक संसदीय लोकतंत्र बन जाएगा. प्रेक्षकों ने रविवार को हुए जनमतसंग्रह को ठीक दिशा में शुरुआत बताया है और कहा कि जनमतसंग्रह पारदर्शी ढंग से संपन्न हुआ. हालांकि यदि ऑक्टूबर 2010 और उसके बाद हर पांच साल में वाकई में चुनाव करवाए जाते हैं तो अभी कई चीज़ों बेहतरी की ज़रूरत है. जनमसंग्रह में करीब 69 फ़ीसदी लोगों ने भाग लिया था. उनमें से करीब 90 फीसदी लोगों ने नए संविधान यानी संसदीय लोकतंत्र के पक्ष में अपना वोट दिया. अमेरिका और रूस ने भी इस बात पर ज़ोर दिया कि वे एक ताकतवर और स्थाई सरकार का समर्थन करना चाहते हैं. लेकिन रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने इस बात की आशंका जताई कि संसदीय लोकतंत्र के साथ देश के भीतर तनावों को और बढ़ावा तो नहीं मिलेगा.

पिछले हफ्तों में 300 से भी ज़्यादा लोगों की जाने गईं थी जब मूल रूप से किर्गिज़ और उजबेक मूल के लोगों के बीच लडाई शुरू हो गई थी. इसकी वजह यह थी कि सात अप्रैल को पूर्व राष्ट्रपति कुर्मानबेक बाकियेव को अपने पद से हटा दिया गया था जिसकी वजह से सत्ता शून्यता हो गई थी. राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी के निदेशक केनेशबेक दुशेबायेव का कहना था कि ऐसी स्थिति में देश आतंकवादियों की छिपने की जगह बन सकता है. देश की सीमा अफ़गानिस्तान के साथ भी लगी है और नशीले पदार्थों की तस्करी भी इस क्षेत्र में खूब होती है. डर यह भी है कि कट्टरपंथी मुसलमान उग्रवादी देश पर कब्ज़ा न कर लें.

नए संविधान के मुताबिक अंतरिम राष्ट्रपति रोज़ा ओतुनबायेवा 2011 के अंत तक यह पद संभालेंगी. वे पहली महिला है, जो मध्य एशियाई क्षेत्र के किसी देश कीं राष्ट्रपति बनी हैं. रोज़ा ओतुनबायेवा ने ओश और जलालाबाद शहरों में जहां अलग जातियों के लोगों के बीच लडाई शुरू हुई थी 10 अगस्त तक कर्फ्यू घोषित किया और कहा कि अंतरराष्ट्रीय पुलिस की मदद से वह स्थिरता लाना चाहतीं हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/प्रिया एस्सेलबोर्न

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य