कितना बढ़ गया है वेतन का अंतर
क्या पूंजीवाद खतरे में है? न सिर्फ अमीरों और गरीबों की बीच की खाई लगातार बढ़ रही है, बल्कि शेयर बाजार में पंजीकृत कंपनियों में कर्मचारियों और मैनेजरों के वेतन का अंतर भी बढ़ रहा है. ये रहे भारत और जर्मनी के कुछ उदाहरण.
रिस्क लेने की क्षमता
मैनेजमेंट एक्सपर्टों के अनुसार सैलरी रिस्क लेने की क्षमता से जुड़ी होती है, इसलिए टॉप मैनेजमेंट को ज्यादा सैलरी मिलती है.
जिम्मेदारी नहीं
कामगारों और लोवर मैनेजमेंट को कम सैलरी देने के पीछे यह दलील दी जाती है कि उसे कोई कारोबारी जोखिम नहीं उठाना पड़ता.
मूल्य 900 गुना
भारतीय आईटी कंपनी इंफोसिस के प्रमुख विशाल सिक्का की सालाना आय कंपनी के औसत कर्मचारियों से 935 गुना है.
करोड़ों वेतन
भारत के निफ्टी सूचकांक में शामिल 50 कंपनियों के सीईओ की औसत सैलरी 13 करोड़ रुपये है, कर्मचारियों का 237 गुना.
जर्मनी में अंतर कम
जर्मनी में हालत उतनी खराब तो नहीं है, लेकिन लगातार खराब हो रही है. पिछले सालों में मैनेजरों की सैलरी कर्मचारियों के तुलना में 62 गुना हो गई थी.
सबसे ज्यादा अंतर
सबसे खराब हालत ऑटो कंपनियों की थी. फोल्क्सवागेन कंपनी में दो साल पहले मैनेजरों को कामगारों से 141 गुना वेतन मिला.
सरकारी कंपनी
दूसरे स्थान पर जर्मन पोस्ट है जो कठिन प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है, लेकिन टॉप मैनेजरों को कर्मचारियों के मुकाबले 132 गुना वेतन दे रहा है.
मुनाफे का बंटवारा
तीसरे स्थान पर स्पोर्ट कंपनी अदीदास थी जहां टॉप मैनेजरों को औसत के मुकाबले 116 गुना ज्यादा वेतन मिला.
आदर्श कंपनी
कॉस्मेटिक कंपनी बायर्सडॉर्फ को आदर्श कहा जा सकता है जहां टॉप मैनेजरों की तनख्वाह कामगारों का 17 गुना थी.