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कारोबार से पहले रिश्ते बढ़ाने पर जोर

११ अप्रैल २०१३

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बर्लिन आए हैं यहां जर्मनी और भारत के नेताओं की बैठक हो रही है. अब से कुछ देर बाद शुरू होने वाले शिखर सम्मेलन से पहले दोनों देशों के मंत्रियों ने द्विपक्षीय बातचीत की है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

भारतीय प्रधानमंत्री मंत्रिस्तरीय वार्ता के लिए बुधवार को बर्लिन पहुंचे. उनके साथ पांच मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों का दल आया है. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने बुधवार शाम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सम्मान में भोज दिया. इस मौके पर दोनों नेताओं ने पारस्परिक दिलचस्पी के मुद्दों के अलावा कोरिया तनाव, सीरिया और ईरान के अलावा अफगानिस्तान पर भी चर्चा की.

दोनों देशों के बीच अब तक होने वाले शिखर सम्मेलनों में जोर कारोबार पर होता था और आम तौर पर प्रधानमंत्री के साथ कारोबारियों का दल आता था लेकिन इस बार संबंधों के विस्तार पर जोर है. कारोबार के अलावा वैज्ञानिक, शिक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग दोनों देशों के नेताओं की बातचीत के केंद्र में होंगे. इसलिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल में विदेश और वाणिज्य मंत्रियों के अलावा शिक्षा मंत्री, विज्ञान और तकनीक मंत्री और अक्षत ऊर्जा मंत्री भी हैं.

अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम साल में प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. जर्मनी के दौरे पर उनकी कोशिश जर्मनी के साथ कारोबार बढ़ाने और निवेश को आकर्षित करने में है. जर्मनी ने खास तौर पर दिल्ली और मुंबई कॉरीडोर के विकास में मदद करने में दिलचस्पी दिखाई है लेकिन बौद्धिक संपदा पर उसकी चिंताएं भी हैं. जर्मन उद्यमी भारत की अदालतों में फैसलों में होने वाली देरी की शिकायत करने लगे हैं. प्रधानमंत्री के बर्लिन पहुंचने से पहले विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले से मुलाकात की और ईयू के साथ 2007 से चल रहे मुक्त व्यापार वार्ता को तेज करने के लिए दबाव डाला.

Außenminister Guido Westerwelle indischer Amtskollege Salman Khurshid
तस्वीर: picture-alliance/dpa

भारत और जर्मनी की यह बातचीत ऐसे समय में हो रही है जब आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी ने कहा है कि यूरो जोन सहित अधिकांश औद्योगिक देशों में आर्थिक विकास फिर से चढ़ रहा है जबकि भारत में विकास की गति अभी भी कमजोर हो रही है. ऐसे में भारत यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते को फिर से 8 फीसदी की विकास दर हासिल करने की सीढ़ी मानता है. जर्मनी ईयू का सबसे बड़ा देश तो है ही, उसके बजटमें सबसे ज्यादा अनुदान भी देता है. इसलिए भारत के साथ होने वाली वार्ता में वह असर डाल सकता है. पिछले महीनों में जर्मन कारोबारियों ने निवेश के लिए बिगड़ते माहौल की खुली शिकायत की थी. भारतीय अधिकारियों का कहना है कि प्रधानमंत्री सिंह चांसलर मैर्केल को निवेश के माहौल को बेहतर बनाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताएंगे. प्रधानमंत्री यूरोप में भारतीय पेशेवरों के लिए दरवाजे खुले रखने की मांग भी करेंगे. 27 सदस्यों वाला यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है जबकि जर्मनी यूरोप में भारत का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है. दोनों देशों का आपसी कारोबार 2011 में 18.4 अरब यूरो था.

इस मौके पर जिन संधियों पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद है उनमें जर्मन भाषा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाना और शोध के लिए 70 लाख यूरो का साझा कोष बनाना शामिल है. इस समय जर्मन सहयोग से केंद्रीय विद्यालय में 30,000 बच्चे जर्मन पढ़ रहे हैं. जर्मन सरकार ने पिछले सालों में भारतीय छात्रों को जर्मन विश्वविद्यालयों में पढ़ने को बढ़ावा दिया है जबकि जर्मन छात्रों को भारत जाने के लिए भी उसने वित्तीय मदद दी है. इस समय जर्मनी में करीब 4,500 भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं, जबकि भारत में करीब 800 जर्मन छात्र या तो पढ़ाई कर रहे हैं या इंटर्नशिप कर रहे हैं. जर्मनी ने परमाणु ऊर्जा को छोड़ने का फैसला ले लिया है, इसलिए नागरिक परमाणु समझौते की संभावना कम है लेकिन दोनों देश दोबारा इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर जोर देंगे और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए 1 एक अरब डॉलर का कोष बनाने की घोषणा कर सकते हैं.

Außenminister Guido Westerwelle indischer Amtskollege Salman Khurshid
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दोनों सरकारों की मंत्रिस्तरीय बैठक में ईयू भारत रिश्तों के अलावा जी-20, सुरक्षा परिषद के सुधार मुक्त व्यापार संधि पर भी चर्चा होगी. इस तरह की पहली बैठक का आयोजन भारत ने 2011 में किया था जब चांसलर मैर्केल गृह, रक्षा, परिवहन, शिक्षा और पर्यावरण मंत्रियों को लेकर गई थीं. जर्मनी अकेला देश है जिसके साथ भारत के इस फॉर्मेट में रिश्ते हैं जबकि जर्मनी भारत के अलावा चीन और इस्राएल के साथ नियमित मंत्रिस्तरीय संवाद करता है.

रिपोर्टः महेश झा, बर्लिन

संपादनः एन रंजन