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फिल्म इंडस्ट्री के 'पापा जी'

२९ मई २०१४

कड़क आवाज, रौबदार भाव भंगिमा और दमदार अभिनय के बल पर पृथ्वीराज कपूर ने लगभग चार दशकों तक सिने प्रेमियों के दिलों पर राज किया. भारतीय सिनेमा के युगपुरूष पृथ्वीराज कपूर अपने काम के प्रति समर्पित और नरम दिल वाले इंसान थे.

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तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images

पृथ्वीराज के लिए उनका काम पूजा की तरह था. एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें विदेश जा रहे एक सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने की पेशकश की लेकिन उन्होंने यह कहकर उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर विदेश नहीं जा सकते. फिल्म इंडस्ट्री में 'पापा जी' के नाम से मशहूर पृथ्वीराज अपने थिएटर के तीन घंटे के शो के समाप्त होने के पश्चात गेट पर एक झोली लेकर खड़े हो जाते थे ताकि शो देखकर बाहर निकलने वाले लोग झोली में कुछ पैसे डाल सकें. इन पैसों के जरिए पृथ्वीराज ने एक वर्कर फंड बनाया था जिससे वह पृथ्वी थिएटर में काम करने वाले सहयोगियों को जरूरत के समय मदद किया करते थे.

पृथ्वीराज कपूर का जन्म 3 नवंबर 1906 को पश्चिमी पंजाब के लायलपुर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. उनकी प्रारंभिक शिक्षा लायलपुर और लाहौर में हुई जहां उनके पिता दीवान बशेस्वरनाथ कपूर पुलिस उपनिरीक्षक थे. बाद में उनके पिता का तबादला पेशावर हो गया. पृथ्वीराज कपूर ने आगे की पढ़ाई पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से की. उन्होंने कानून की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी क्योंकि उस समय तक उनका रुझान थिएटर की ओर हो गया था. महज 18 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह हो गया. 1928 में वे अपनी चाची से आर्थिक सहायता लेकर अपने सपनों के शहर मुंबई पहुंचे.

फिल्मों से शुरुआत

पृथ्वीराज ने 1928 में मुंबई में इंपीरियल फिल्म कंपनी से जुड़कर अपने करियर की शुरूआत की. 1930 में उन्होंने बीपी मिश्रा की फिल्म 'सिनेमा गर्ल' में अभिनय किया. कुछ समय बाद एंडरसन की थिएटर कंपनी के नाटक शेक्सपियर में भी उन्होंने अभिनय किया. लगभग दो साल तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करने के बाद पृथ्वीराज को 1931 में प्रदर्शित पहली सवाक फिल्म आलमआरा में सहायक अभिनेता के रूप में काम करने का मौका मिला. वे 1933 में कोलकाता के मशहूर न्यू थिएटर के साथ जुड़े.

वर्ष 1933 में प्रदर्शित फिल्म 'राजरानी' और 1934 में देवकी बोस की फिल्म 'सीता' की कामयाबी के बाद पृथ्वीराज कपूर बतौर अभिनेता अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए. इसके बाद उन्होंने न्यू थिएटर की कई फिल्मों में अभिनय किया. इन फिल्मों में मंजिल, प्रेसिडेंट जैसी फिल्में शामिल हैं. 1937 में प्रदर्शित फिल्म 'विधापति' में पृथ्वीराज कपूर के अभिनय को दर्शकों ने काफी सराहा.

उसके बाद चंदूलाल शाह के रंजीत मूवीटोन ने पृथ्वीराज कपूर को अनुबंध में ले लिया. रंजीत मूवी के बैनर तले 1940 में प्रदर्शित फिल्म 'पागल' में पृथ्वीराज कपूर ने अपने सिने करियर में पहली बार एंटी हीरो की भूमिका निभायी. 1941 में सोहराब मोदी की फिल्म 'सिकंदर' की सफलता के बाद वह कामयाबी के शिखर पर जा पहुंचे.

आजाद हुए पृथ्वी

पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में अपनी खुद की थिएटर कंपनी 'पृथ्वी थिएटर' शुरू की. पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफी अलग था. धीरे धीरे दर्शकों का ध्यान थिएटर की ओर से हट गया क्योंकि उन दिनों रूपहले पर्दे का क्रेज ज्यादा ही हावी था और सिनेमा हॉल लोकप्रिय हो रहे थे.

सोलह साल में पृथ्वी थिएटर के 2662 शो हुए जिनमें पृथ्वीराज कपूर ने लगभग सभी में मुख्य किरदार निभाया. पृथ्वी थिएटर के प्रति वह इस कदर समर्पित थे कि तबीयत खराब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे. शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था. पृथ्वी थिएटर के बहुचर्चित नाटकों में दीवार, पठान, गद्दार और पैसा शामिल हैं. पृथ्वीराज कपूर ने अपने थिएटर के जरिए कई छुपी प्रतिभाओं को आगे बढ़ने का मौका दिया. उनमें रामानंद सागर और शंकर जयकिशन जैसे बड़े नाम शामिल हैं.

कम की फिल्में

साठ का दशक आते आते पृथ्वीराज कपूर ने फिल्मों में काम करना काफी कम कर दिया. 1960 में रिलीज हुई के. आसिफ की मुगले आजम में उनके सामने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे. 1965 की फिल्म 'आसमान महल' में पृथ्वीराज ने अपने सिने करियर की एक और न भूलने वाली भूमिका निभायी. 1968 में प्रदर्शित फिल्म तीन बहुरानियां में उन्होंने परिवार के मुखिया की भूमिका निभायी जो अपनी बहुरानियों को सच्चाई की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है.

इसके साथ ही अपने पौत्र रणधीर कपूर की फिल्म 'कल आज और कल' में भी पृथ्वीराज कपूर ने यादगार भूमिका निभाई. 1969 में उन्होंने एक पंजाबी फिल्म 'नानक नाम जहां है' में भी अभिनय किया. फिल्म की सफलता ने लगभग गुमनामी में आ चुके पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को नया जीवन दिया. फिल्म इंडस्ट्री में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. उन्हें फिल्म उद्योग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया. इस महान अभिनेता ने 29 मई 1972 को दुनिया को अलविदा कह दिया.

एमजे/आईबी (वार्ता)