"कानून वापस ले पाकिस्तान"
५ जुलाई २०१४ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि इस्लामाबाद ने जो कानून पास किया है, उससे देश ने अंतरराष्ट्रीय कानूनी नियमों को तोड़ा है. नए कानून के तहत आतंकवाद से जुड़े मामलों में 20 साल तक की सजा हो सकती है और इसके तहत अब सुरक्षा बल किसी संदिग्ध को सिर्फ संदेह के आधार पर 60 दिनों तक पकड़े रह सकते हैं और इस दौरान उन्हें यह भी बताने की जरूरत नहीं कि उन्हें कहां रखा गया है.
मानवाधिकार संगठन का कहना है कि इसकी आड़ में राजनीतिक विरोध को दबाया जा सकता है. ह्यूमन राइट्स वॉच के एशियाई क्षेत्र के उप निदेशक फेलिम काइन का कहना है, "यह अटपटा कानून हिरासत में रखे जाने वाले संदिग्धों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई को हरी झंडी दिखाता है, जो वैसे ही पाकिस्तान में आम बात है." उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इस बात का भरोसा देना चाहिए कि इस कानून को बेहतर कानून से बदला जाएगा.
यह कानून पाकिस्तान ने ऐसे वक्त में पास किया है, जब उसकी सुरक्षा एजेंसियां उत्तरी वजीरिस्तान और अफगान सीमाओं पर तालिबान तथा अल कायदा के लड़ाकों से संघर्ष कर रही हैं. शुरू में तो इस कानून में किसी को 90 दिनों तक हिरासत में रखने का प्रस्ताव था और कहा गया था कि सुरक्षा बल किसी भी ऐसे संदिग्ध पर गोली चला सकते हैं "जो कुछ आतंकवादी हरकत करता हुआ दिख" रहा हो.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था का कहना है कि इस कानून से नागरिक और राजनीति के अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन होता है, जिस पर पाकिस्तान ने 2010 में दस्तखत किया है. पाकिस्तान में 2007 के बाद से आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं. इस दौरान करीब 6800 लोग मारे गए हैं.
एजेए/एमजे (एएफपी)