काजुओ इशिगुरो को साहित्य का नोबेल
५ अक्टूबर २०१७"द रिमेंस ऑफ द डे" से मशहूर हुए उपन्यासकार काजुओ इशिगिरो का जन्म तो जापान में हुआ लेकिन वह अब ब्रिटेन में रहते हैं और अंग्रेजी में लिखते हैं. नोबेल कमेटी ने पुरस्कार का एलान करते हुए अपने बयान में कहा है कि काजुओ इशिगुरो ने "अपने बेहद भावुक उपन्यासों से दुनिया के साथ संपर्क के हमारी मायावी समझ की गहराई पर से पर्दा उठाया," उन्हें इस साल का नोबेल पुरस्कार दिया जायेगा.
इशिगुरो को चार बार मैन बुकर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया और 1989 में उन्हें दर रिमेंस ऑफ द डे के लिये बुकर पुरस्कार मिला. उन्होंने केंट यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया.
62 साल के इशिगुरो के चुनाव ने दो साल तक गैरपारंपरिक साहित्य को नोबेल मिलने के बाद पारंपरिक साहित्य की दुनिया के सबसे बड़े पुरस्कारों में वापसी कराई है.
पुरस्कार देने वाली स्वीडिश एकेडमी की स्थायी सचिव सारा डैनियस कहती हैं,“मैं कहूंगी कि अगर आप जेन ऑस्टीन की कॉमेडी के तौरतरीकों को काफ्का की मनोवैज्ञानिक अंतरदृष्टि से मिला दें तो मेरे ख्याल में आपको इशिगुरो मिल जायेंगे.“
इशिगुरो का जन्म जापान के नागासाकी में हुआ लेकिन उनका परिवार ब्रिटेन चला आया तब उनकी उम्र महज पांच साल थी.
द रिमेंस ऑफ द डे में एक बड़े घर का रसोइया अभिजात वर्ग की सेवा में बीती अपनी जिंदगी की ओर मुड़ कर देखता है. यह किताब 20वीं सदी के इंग्लैंड में डाउनटाउन आबे जैसे माहौल के बीच दबी हुई भावनाओं की एक गहरी दुनिया को दिखाती है.
1993 में इस किताब पर एक फिल्म भी बनी. एंथनी हॉपकिंस और एम्मा थॉमसन के अभिनय वाली इस फिल्म को ऑस्कर पुरस्कारों के लिए आठ नामांकन मिले थे.
इसी तरह 2005 में आया इशिगिरो का उपन्यास नेवर लेट मी गो भी वैसा नहीं जैसा कि नाम से प्रतीत होता है. बोर्डिंग स्कूल में तीन युवा दोस्तों की कहानी लगता यह उपन्यास धीरे दीरे एक मनहूस कहानी में तब्दील हो जाता है जिसमें साइंस फिक्शन के तत्व भी हैं और जो गहरे नैतिक सवाल उठाता है.
1986 में इशिगिरो का उपन्यास एन आर्टिस्ट ऑफ द फ्लोटिंग वर्ल्ड छपा. इस उपन्यास में एक जापानी कलाकार अपनी बीती जिंदगी की ओर देखता है. उनकी यह किताब बुकर पुरस्कार के लिए नामांकित हुई थी.
नोबेल पुरस्कार के रूप में काजुओ इशिगुरो को करीब 11 लाख डॉलर की रकम मिलेगी जो भारतीय मुद्रा में छह करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा है. गीतांजलि के लिए रविंद्रनाथ टैगोर के रूप में अब तक सिर्फ एक भारतीय को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला है.
एनआर/एके (एएफपी)