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कश्मीर पर उल्टा पड़ गया नवाज शरीफ का दांव?

अशोक कुमार
७ अक्टूबर २०१६

चौसर के खेल में पांसा फेंकना आपके हाथ में है, लेकिन दांव आपके हक में जाए, ये तो जरूरी नहीं. लगता है कश्मीर पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का एक दांव उल्टा पड़ गया.

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USA UN Generalversammlung Nawaz Sharif
तस्वीर: Reuters/C. Allegri

कश्मीर में बुरहान वानी की मौत के बाद जिस तरह के हालात पैदा हुए, उससे जाहिर तौर पर पाकिस्तान को कश्मीर पर अपने रुख को साबित करने का एक और मौका मिला. भारतीय कश्मीर में कथित तौर पर बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन से दुनिया से रूबरू कराने के लिए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने एक योजना बनाई. इसके तहत उनकी सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर 22 विशेष दूत नियुक्त किए और उन्होंने दुनिया के अलग अलग हिस्सों में भेजा गया. संयुक्त राष्ट्र के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, रूस और चीन समेत कई मुल्कों में ये प्रतिनिधि भेजे गए.

इस अभियान के तहत फ्रांस जाने वाले राना मोहम्मद अफजल खान का दौरा शायद अच्छा नहीं रहा. ये नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) के वही सांसद हैं जिन्होंने जमात उद दावा के प्रमुख हाफिज सईद जैसे नॉन स्टेट एक्टर्स के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. भारत जिन्हें आंतकवादी कहता है, पाकिस्तान की स्थानीय शब्दावली में उन्हें नॉन स्टेट एक्टर कहा जाता है. इसीलिए जब भी भारत अपने यहां होने वाले हमलों के तार पाकिस्तान से जोड़ता है तो पाकिस्तान का यही जवाब होता है कि ये नॉन स्टेट एक्टर्स का काम हो सकता है. मुंबई हमलों के लिए भी यही नॉन स्टेट एक्टर जिम्मेदार माने जाते हैं.

राना मोहम्मद अफजल खान का कहना है कि जब वो कश्मीर मुद्दे पर समर्थन हासिल करने फ्रांस गए तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि इन्हीं नॉन स्टेट एक्टर्स के कारण पाकिस्तान अलग थलग पड़ रहा है. और अगर इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो पाकिस्तान का कोई साथ नहीं देगा. यानी भारत के खिलाफ उनकी दलीलों पर फ्रांस में ये नॉन स्टेट एक्टर भारी पड़ गए. उन्हें अपने फ्रांस दौरे में समझ आया कि कुछ लोगों की वजह से अगर पाकिस्तान को शक की नजर से देखा जाता है क्यों ना उनसे पिंड छुड़ा लिया जाए. राना साहब को पाकिस्तानी संसद के ऊपरी सदन सीनेट में विपक्ष के नेता एतजाज अहसन का भी समर्थन मिला. उनका कहना है कि जब पाकिस्तान में नॉन स्टेट एक्टर इतनी बड़ी तादाद में होंगे तो पाकिस्तान को लेकर दुनिया में भरोसा कैसे पैदा होगा.

लेकिन सवाल ये है कि क्या इन नॉन स्टेट एक्टर्स से पिंड छुड़ाना इतना आसान है. मिसाल के तौर पर, भारत कुछ भी कहे, लेकिन हाफिज सईद की छवि पाकिस्तान के लोगों के बीच तो कश्मीर की जनता के लिए आवाज उठाने वाले और बाढ़, भूकंप और सूखे जैसे हालात में लोगों की मदद करने वाले दरियादिल इंसान की है. उनके अलावा भारतीय कश्मीर में जो अन्य संगठन भी सक्रिय हैं, वे बहुत से पाकिस्तानियों की नजर में तो कश्मीरी जनता के आजादी के संघर्ष में मदद ही कर रहे हैं.

लोगों की बात भी छोड़ दें, तो बहुत से विश्लेषक इस बात पर बिल्कुल एकमत रहे हैं कि यही नॉन स्टेट एक्टर्स पाकिस्तान की नीति का अहम हिस्सा रहे हैं. और सिर्फ कुछ सांसदों के कह देने भर से क्या पाकिस्तानी सेना अपने इन तुरुप के पत्तों को यूं ही गंवाना चाहेगी. खतरा ये भी है कि नॉन स्टेट एक्टर्स पर कार्रवाई की आवाजें सरकार और सेना के बीच अविश्वास की खाई को बढ़ा सकती हैं.

लगता है नवाज शरीफ ने जिस मुहिम का आगाज भारत के खिलाफ दुनिया में माहौल बनाने के इरादे से किया था, उसके कारण खुद उनकी सरकार के सामने एक यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है. पाकिस्तानी सियासत में कश्मीर पर जिस तरह के जज्बात रहे हैं, उसे देखते हुए रातोरात तो बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. लेकिन नॉन स्टेट एक्टर्स के खिलाफ उठी आवाजों और पाकिस्तान के अलग थलग पड़ जाने के सवाल को अनदेखा करना भी नवाज शरीफ के लिए आसान नहीं होगा.