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कर्मचारियों का चहेता डॉयचे वेले

२ मई २०१३

डॉयचे वेले के संपादकीय विभागों में काम करने वाले कई साथी अपने जीवन के 20 या उससे ज्यादा साल यहां गुजार चुके हैं. इन सालों में संस्था में काफी बदलाव हुए. देखें क्या सामने लाती हैं उनकी यादें. ..

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तस्वीर: H. Bogler

यिंग दाई

मुझे अभी भी याद है हमारे इंटरनेट के शुरुआती दिन. करीब 15 साल पहले हमने लिखी हुई रिपोर्टें एक डिस्क पर सेव की और फिर पांचवीं मंजिल पर आई के साथियों को दी. फिर उन्होंने बाकी काम किया.

आज हम अलग अलग तरह के मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट दर्शकों के लिए पेश करते हैं. एक आधुनिक और बढ़िया नेटवर्क वाले आधुनिक ऑफिस में. चाहे वह फोटो हों या रिपोर्टें, ऑडियो या वीडियो हम सारा काम खुद कर सकते हैं.

DW 60 Jahre Mitarbeiter Statements Ying Dai
यिंग दाई चीनी विभागतस्वीर: DW

जब मैंने 1996 में डॉयचे वेले के साथ काम करना शुरू किया था तो हम सिर्फ शॉर्ट वेव से ही अपने समाचार दुनिया में भेज सकते थे. तबसे लेकर अभी तक सूचना की दुनिया में क्रांति हुई. मझे गर्व है कि बदलाव के इस दौर में मैं डॉयचे वेले के संपर्क रहने का मौका मिला. बदलाव के दौर में जो नया सीखने को तैयार रहता है वही फिट और युवा बना रहता है. 60 साल की उम्र में भी डॉयचे वेले बहुत फिट है क्योंकि वह हमेशा अप टू डेट है.

शरम आहादी

मीडिया की दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है. विषय साझा करने की संभावनाएं लगातार नई हो रही हैं. हमारे लिए यह बहुत बड़ी चुनौती है ये ढूंढना कि हमारे टारगेट ग्रुप, एरिया तक अच्छे से पहुंचने के लिए हमारे पास कौन सी संभावनाएं हैं. साथ ही हमें यह भी देखना है कि हम अपना दैनिक काम अच्छे से करें. मैं फारसी विभाग की बात कर रहा हूं, हमने हमेशा कोशिश की कि नई तकनीक,संभावनाओं का हम फायदा उठा सकें, और ज्यादा से ज्यादा यूजर्स को अपनी ओर खींच सकें. मुझे कहना होगा कि पिछले सालों में हमने बड़ी छलांग लगाई है. हम इसमें सफल रहे कि वैकल्पिक प्रतिस्पर्धी हम बन सकें. हमें ऐस ही समझा भी जा रहा है और यूजर भी हमें इसी नजर से देखते हैं.

लाविनिया पितु

Deutsche Welle Fernsehmoderatorin Rumänisch Lavinia Pitu
लाविनिया पितु, रुमेनियाई विभागतस्वीर: DW

मुझे एक बहुत ही मजेदार कहानी याद आ रही है कि एक बर्लिन के एक युवा व्यवसायी कांटेमीर गेओर्गियू, रुमेनियाई ने मुझे खोजी करार दिया. उन्होंने उस समय कागज के चश्में बनाए थे. फैशनेबल कागज के चश्में. वो चले नहीं तो कबाड़ी बाजार में वो इसे बेच रहे थे. मैंने उनसे दो तीन चश्में इंग्लिश और रुमेनियाई कार्यक्रम के लिए लिए. और इस मुद्दे पर एक रेडियो और एक ऑनाइन रिपोर्ट की. दो तीन हफ्तों में बर्लिन की प्रेस और रुमेनिया की प्रेस उन तक पहुंच गई. उन्हें कागज का चश्मा बनाने का आयडिया आया कैसे. उन्होंने बताया कि एक दिन ऐसे ही ये चश्मा बना कर बार में गए. बार कीपर को पसंद आया. वह उस चश्में को खरीदना चाहते थे. तब उन्हें इस धंधे का आयडिया आया. आज उनका काम बहुत बड़ा है. वह इसे एशिया, यूरोप में बेचते हैं. वह कहते हैं कि मैं अब बहुत सफल हूं क्योंकि तुमने मेरे बारे में रिपोर्ट की.