कम उम्र में पिता बनना रिस्की
२२ फ़रवरी २०१५रिसर्चरों के मुताबिक स्कीजोफ्रीनिया और ऑटिज्म जैसी बीमारियां कम उम्र के पिता के शुक्राणुओं से पैदा होने वाले बच्चों में आसानी से पहुंच सकती हैं. ऐसे बच्चे जीवन भर इन बीमारियों से जूझते हैं. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के जेनेसिसिस्ट डॉक्टर पीटर फॉस्टर कहते हैं, "यह जानने में थोड़ा अजीब सा लगता है कि 20 साल से कम उम्र के लड़कों में जेनेटिक म्यूटेशन की दर ज्यादा होती है." वे कहते हैं कि उन्होंने और उनकी टीम ने इसका स्पष्ट जवाब ढूंढ निकाला है कि कम उम्र के पिता से बच्चे का पैदा होना ज्यादा रिस्की क्यों है.
2007 तक करीब 50 लाख शिशुओं और उनके माता पिता के बारे में जांच करके पता चल चुका था कि 19 साल से कम और 35 साल से ज्यादा के पुरुषों से बच्चों में जेनेटिक म्यूटेशन का स्थानांतरण ज्यादा संभव है. 20 से 35 साल के पिताओं का शुक्राणु सबसे उच्चई गुणवत्ता का होता है.
म्यूटेशन की अधिक दर
फॉस्टर ने 24 हजार बच्चों और उनके पिताओं के नमूने लेकर एक जेनेटिक सीक्वेंस के स्थानांतरण का विश्लेषण किया. उनके मुताबिक, "हमने पाया कि कम उम्र के पिताओं से बच्चों में जेनेटिक म्यूटेशन के पहुंचने की दर ज्यादा उम्र के पिताओं के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा थी". यह उन पुरानी जांचों से मिलता है जिनमें जेनेटिक म्यूटेशन के कारण होने वाली बीमारियों की बात कही गई थी.
प्रजनन के दौरान जब डीएनए बनता है तो कुछ खास बिंदुओं पर त्रुटि हो सकती है. खासकर एक बिंदु बहुत नाजुक होता है, कोशिकीय विघटन से ठीक पहले, यहां डीएनए की कॉपी बनती है. अगर डीएनए के दो सूत्रों में एक में भी सही पोजीशन में गड़बड़ी होती है तो जेनेटिक सीक्वेंस छोटा या बड़ा हो सकता है.
फॉस्टर के मुताबिक यह जेनेटिक म्यूटेशन के स्थानांतरण का सटीक कारण तो नहीं कहा जा सकता कि इसकी वजह पिता की उम्र कम होना ही है. उन्होंने कहा, "बीमारियों के होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जिन्हें हम किसी वैज्ञानिक तरीके से नहीं तय कर सकते हैं. हालांकि हमें पिता की कम उम्र होने और बच्चे में जेनेटिक म्यूटेशन के पहुंचने के बीच बड़ा संबंध जरूर मिला है."