1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

औरत होना मना है...

४ सितम्बर २०१०

ये कहानी अफ्रीका की है. रंग बिरंगे, हरियाले, रेगिस्तानी अफ्रीका की कहानियां दर्द के गहरे काले रंग से पटी हैं. कहानी सामाजिक वर्जनाओं में फंसी उन माओं की है जो बेटियों को बचाने के लिए उन्हीं की बलि देती हैं.

https://p.dw.com/p/P3Yt
तस्वीर: Jürgen Hanefeld

अफ्रीका में लड़कियों के जननांगों को काटने और सिलने की भयावह खबरों के बाद इस प्रथा का विरोध होना शुरू ही हुआ था कि एक और ऐसी प्रथा सामने आई जिसे सुनने, देखने के बाद हाथ पैर सुन्न पड़ जाएं. दिल दहला देने वाली ये प्रथा इस दलील के आधार पर चलाई जा रही है कि उन पर पुरुषों की ललचाती नज़रें न पड़ें, शारीरिक अत्याचार न हो, वे कम उम्र में गर्भवती न हों.

इसके लिए लड़की होने के हर निशान को छिपाने, मिटाने, हटाने की कोशिश की जाती है. कैमरून में एक ऐसी ही परंपरा है ब्रेस्ट आयरनिंग यानी स्तनों को इस्त्री करने की परंपरा.

Makoko Stelzendorf Lagos Nigeria Afrika Flash-Galerie
तस्वीर: DW

इस क्रूर परंपरा के तहत सात आठ साल की बच्चियों की छातियों को गर्म पत्थरों से मसल दिया जाता है. अफ्रीका के कैमरून, टोगो, बेनिन, नाइजीरिया, गिनी में ये परंपरा कई साल से चली आ रही है.

दर्दनाक कहानी

एमिलिएने नदोंबी 35 साल की हैं. जब वे अपनी सबसे छोटी लड़की को दूध पिलाती हैं तो उनके चेहरे पर खुशी या संतुष्टि नहीं होती, वे दर्द से परेशान होती हैं. वे बताती हैं, "जब मैं अपने बच्चों को दूध पिलाती हूं, मेरी छातियों में बहुत दर्द होता है जिसे सहन करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है. यहां गांव में सभी औरतों को ये परेशानी है." एमिलिएने में जीवन की कोई उमंग नहीं हैं. वे एक टूटी हुई महिला हैं और अपने झोपड़ें से बाहर नहीं जाती क्योंकि उन्हें शर्म आती है. उनकी छातियां न केवल छूने पर दुखती हैं बल्कि उस पर घावों के निशान हैं. उन्होंने कहा, "जब मैं काफी छोटी थी तो मेरी मां हमेशा मेरी छातियों गर्म पत्थरों से मसलती थी, बार-बार वो ऐसा करती थीं. वो बहुत बुरा था और इसमें दर्द भी बहुत होता था." लेकिन झोंपड़ी के बाहर बैठी एमिलिएने की मां इससे इनकार करती हैं वो कहती हैं कि उन्होंने तो बेटी का अच्छा ही चाहा था. एन क्वेदी कहती हैं, "जब लड़कियां आठ साल की होती हैं तो हम गर्म पत्थरों से उनके स्तनों का मसाज करते हैं ताकि वे बड़ें न हों और पुरुष उनके पीछे न भागने लगें."

ये पत्थर भी छोटे नहीं होते. सिलबट्टे को आग में रखा जाता है और फिर इससे लड़कियों की छातियों को क्रूर तरीके से मसला जाता है हर रोज़, साल दर साल.

समाज से डर

परिवारों को अक्सर ये डर रहता है कि उनकी लड़कियों के साथ किसी तरह का शारीरिक अत्याचार होगा, वे छोटी उम्र में मां बन जाएंगी. सामाजिक दृष्टि से ये सब कुछ बुरा है. कई युवा मांओ को स्कूल छोड़ना पड़ता है. न उन्हें शिक्षा मिलती है न काम और सबसे बड़ी बात उनकी शादी नहीं होती. कई लड़कियों को उनके परिजन निकाल देते हैं. चूंकि कैमरून में किशोर लड़कियों के गर्भवती होने की संख्या लगातार बढ़ रही है तो डर भी बढ़ रहा है और बचाने के लिए किए जा रहे अत्याचार भी.

Südafrika Township Regenfälle Überschwemmung Hunger Armut Afrika
अफ्रीका के कई हिस्सों में लड़कियां असुरक्षित.तस्वीर: Ap

अशिक्षा से मुश्किल

लेकिन चिकित्सा विज्ञान और अनुभव दोनों ही ये कहते हैं कि इस तरह गर्म पत्थरों से रगड़ने, मसलने से शरीर के हार्मोन नहीं रुकते. एमिलिएने की छातियों का वजन अब इतना हो गया है कि उसका दुबला पतला शरीर इसे सहन ही नहीं कर पाता और दर्द खत्म होने का नाम ही नहीं लेता.

कैमरून में स्त्री रोग विशेषज्ञ डेनिस काफूंडा बुरे परिणामों की चेतावनी देते हैं और कहते हैं कि इससे स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. "शरीर के संवेदनशील ऊतकों को इतनी गर्म वस्तु से यंत्रणा देना, इसके लिए चिकित्सा विज्ञान में कोई आधार नहीं है. ये जननांगो को काटने जितना ही क्रूर है. हार्मोन इस तरह से नहीं रोके जा सकते."

लोगों में शिक्षा की कमी है, यौन शिक्षा के बारे में बात नहीं की जा सकती, कोई कंडोम्स के इस्तेमाल की बात नहीं करता. माएं अपनी बच्चियों को डर के मारे इस क्रूर तरीके से औरत होने से रोकती रहती हैं.

रिपोर्टः डॉयचे वेले/आभा मोंढे

संपादनः अनवर जमाल