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ओलंपिक पर नजरें गड़ाए भारत की मुक्केबाज

१९ जुलाई २०१०

दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स की उठा पटक और चमक दमक से दूर, आजकल भोपाल में भारत का ऐसा खिलाडी दिन रात पसीना बहा रहा है, जिसने चार वर्ल्ड टाइटल तो जीते हैं लेकिन अब उसकी आंखें लंदन में होने वाले ओलंपिक खेलों पर टिकी हैं.

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ओलंपिक पर नज़रतस्वीर: DW

उस खिलाडी का नाम है एमसी मेरी कोम. एक मार्च, 1983 को मणिपुर के छोटे से गांव में किसान परिवार में जन्मी मंगते चुंगनीजंग मेरी कोम ने अपनी दो छोटी बहन और एक भाई की पढ़ाई के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए बॉक्सिंग शुरू की और आज दुनिया भर में नाम कमा कर लंदन ओलंपिक पदक का सपना देख रही हैं, जहां पहली बार महिला बॉक्सिंग को शामिल किया गया है.

मिशन ओलंपिक पर नजरें लगाए मेरी ने बताया कि भोपाल में नेशनल कैंप में उनकी तैयारी जोर शोर से चल रही है. उनका कहना है, "ओलंपिक से पहले वर्ल्ड चैंपियनशिप और एशियन गेम्स भी हैं और मैं कभी भी यह नहीं कहती कि मैं गोल्ड जीतूंगी लेकिन मैं देश के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूं. मुझे उम्मीद है की मैं अच्छा करूंगी."

अक्सर चैंपियन खिलाड़ी के सफर में ऐसा मौका आता है जब वह मुसीबत से घिर जाता है और रास्ता नहीं सूझता. मेरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. 2007 में मेरी के ससुर की हत्या कर दी गई. इसी बीच मेरी को पता चला की वह मां बनने वाली है. मेरी कहती हैं, "वैसे मैंन प्लान तो नहीं किया था."

मेरी ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया. अब यह संयोग ही है कि मेरी के ससुर भी जुड़वां भाई थे और दूसरे भाई की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. मेरी का कहना है कि उनके जुड़वां बेटे कहीं न कहीं ससुर और उनके भाई की याद दिलाते हैं.

indischer Boxing champion
जुड़वें बच्चों की मांतस्वीर: DW

दो नन्हों को घर पर पति के सुपर्द कर मेरी एक बार फिर बॉक्सिंग रिंग में लौट आईं. कभी पटियाला तो कभी बैंगलोर तो कभी भोपाल, लम्बे नेशनल कैंप में रह कर मेरी का लक्ष्य एक ही था, गोल्ड मेडल.

वह कहती हैं, "25-26 साल की लड़की के लिए दो छोटे बच्चों को घर छोड़ बॉक्सिंग रिंग में मार खाना आसान नहीं है लकिन मेरे सामने लंदन ओलंपिक घूमता रहता है और मैं उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूं." मेरी कहती हैं, "में बहुत लकी हूं कि मेरा पति औरलेन मेरा बहुत ख्याल करता है और बच्चों को घर रखता है जब मैं कैंप में रहती हूं."

इसी बीच मेरी को और मुसीबत का सामना करना पड़ा. कुछ महीने पहले मणिपुर में चल रहे युवा आंदोलन की वजह से एक ऐसा समय भी आया जब मेरी भोपाल में थीं और घर में बच्चों का दूध बिलकुल ख़त्म हो गया. इसे याद करते हुए वह कहती हैं, "वह बड़ा खराब समय था. सारे रास्ते बंद थे और मणिपुर दूध भेजने का कोई साधन नहीं था. लेकिन फिर एक मजदूर ने किसी तरह मणिपुर में बच्चों के लिए दूध का जुगाड़ किया और मेरे पति ने भी हालत पर सही तरीके से काबू पाया."

एक समय था जब मेरी के सर पर बॉक्सिंग का जुनून था लेकिन नौकरी न होने की वजह से वह काफी मुसीबत से घिरी थीं. लेकिन तभी मेरी के जीवन में बदलाव आया. 2005 में मणिपुर सरकार ने मेरी को मणिपुर पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी दी और फिर तीन साल बाद उनके अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें इंस्पेक्टर बना दिया गया.

इस वर्ष राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा तो मणिपुर सरकार ने भी मेरी को एसपी का रैंक दे दिया. उन्हें अब सरकारी घर भी मिल गया है. वह खुश हैं, "मुझे लगता है अब समय आ गया है जब लंदन में मैं इन सबका बदला चुका कर पदक जीतूं."

रिपोर्ट: नोरिस प्रीतम

संपादन: अनवर जमाल