ऐसे बनती हैं दुर्गा की प्रतिमाएं
दुर्गापूजा की आहट शुरू हो गयी है. कलकत्ता से लेकर पश्चिम बंगाल तक कलाकार दुर्गा की मूर्तियां बनाने में जुट गये हैं. लेकिन ये सुंदर प्रतिमाएं बनती कैसे हैं. देखिए इन तस्वीरों में.
शुरू हुआ प्रतिमा का बनना
दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए सबसे पहले बांस से एक ढांचा बनाया जाता है. जितनी बड़ी मूर्ति बनानी होती है, उसके अनुसार बांस से आकार ढाला जाता है. ढांचा तैयार होने के बाद सूखी घास और पुआल की मदद से मूर्ति को आकार दिया जाता है.
अब आई मिट्टी की बारी
मूर्ति को आकार देने के बाद बांस और घास के बनाए ढांचे पर गीली मिट्टी की परत चढ़ायी जाती है. मिट्टी की यह परत मूर्ति को ठोस बनाने में मदद करता है. इस तस्वीर में कलाकार सरस्वती के वाहक हंस को गीली मिट्टी से तैयार कर रहा है.
फिर चढ़े रंग
एक बार मिट्टी की परत सूख जाने के बाद मूर्तियों को रंगने का काम शुरू किया जाता है. सबसे पहले मूर्ति के बड़े हिस्से रंगे जाते हैं. बाद में फूल-पत्तियां और दुर्गा के वस्त्र रंगे जाते हैं. रंगों के अलावा मूर्तियों को और सुंदर बनाने के लिए चमकीले रंग या लेप भी लगाए जाते हैं.
महिषासुर भी बना
दुर्गा की प्रतिमा के साथ हमेशा महिषासुर की मूर्ति भी बनाई जाती है. ऐसा माना जाता है कि दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस को मारा था. महिषासुर को मारते हुए दुर्गा की मूर्ति शक्ति का प्रतीक मानी जाती है.
अब सजेगी मूर्ति
मूर्ति के बनने और रंगाई के काम के बाद मूर्ति को कपड़े, गहनों, झालरों और अस्त्रों के साथ सजाया जाता है. हर मूर्ति अलग तरह से बनाई और सजाई जाती है. कई बार खास मांगों पर मूर्तियां अलग अलग तरह और अलग अलग आकारों की भी बनाई जाती हैं.
थोड़ा आराम भी जरूरी
जाहिर सी बात है लगातार और इतनी मेहनत के काम में थकान तो होगी ही. कई बार कलाकारों के पास इतना वक्त भी नहीं होता कि वे घर जाकर पूरी नींद ले सकें. वे अपनी थकान मिटाने के लिए कुछ देर सोकर फिर काम में जुट जाते हैं. हर साल दुर्गा पूजा आने के साथ काम का दबाव काफी बढ़ जाता है और थोड़ी सी भी देरी नुकसान दे सकती है.