ऐन फ्रैंक की कहानी
कई सालों तक ऐन फ्रैंक का परिवार नीदरलैंड्स में छिपता रहा. लेकिन आखिरकार नाजियों ने उनका पता लगाकर 4 अगस्त 1944 में आउश्वित्स के यातना शिविर भेज दिया. ऐन ने अपनी छिपने की जगह में अपनी डायरी लिखी जो दुनिया भर में मशहूर है.
नाजियों से भागे
1933 में ऐन फ्रैंक का परिवार नाजियों से बचने के लिए नीदरलैंड्स चला गया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्हें वहां भी छिपना पड़ा और वह एम्सटर्डम के घर के पिछले हिस्से में रहे. लेकिन किसी ने उनके छिपने की जगह बता दी और उन्हें आउश्वित्स के यातना शिविर में भेजा गया.
परिवार के साथी
इस फोटो में ऐन आगे बाईं तरफ खड़ी हैं. उनकी बहन मार्गोट पीछे दाहिनी तरफ खड़ी हैं. ऐन के पिता ओटो फ्रैंक ने मार्गोट की आठवीं सालगिरह पर यह फोटो खीचीं थी. 1934 में यह तस्वीर नीदरलैंड्स में ली गई.
एम्सटरडम में छिपने की जगह
नीदरलैंड्स की राजधानी में ओटो फ्रैंक ने अपनी कंपनी बनाई. इस घर में कंपनी का दफ्तर था और इसके पीछे ऐन के पिता ने छिपने की जगह बनाई. 1942 से लेकर 1944 तक ऐन का परिवार चार और परिवारों के साथ यहां रहा. ऐन ने यहीं अपनी डायरी भी लिखी.
डायरी बनी सहेली
शुरुआत से ही ऐन ने हर दिन अपनी डायरी में लिखा. वह उसकी सहेली थी और ऐन उसे किटी बुलाती थी. इस दौरान ऐन की जिंदगी में कई चिंताएं आ गईं. "मुझे लेकिन अच्छा लगता है कि मैं जो सोचती और महसूस करती हूं, उसे कम से कम लिख सकती हूं, नहीं तो मेरा दम बिलकुल घुट जाता."
बैर्गेन बेलसेन में मौत
ऐन फ्रैंक और उसकी बहन मार्गोट को 30 अक्तूबर 1944 को आउश्वित्स से बैर्गेन बेलसेन लाया गया. इस यातना शिविर में 70,000 से ज्यादा लोग मारे गए. नाजियों को हराने के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने बंदियों को छुड़ाया और मृतकों के शवों को सार्वजनिक कब्रिस्तान तक लाए. ऐन और उसकी बहन मार्गोट की मौत लेकिन टाइफस बीमारी की वजह से हो चुकी थी. ऐन उस वक्त 15 साल की थीं.
ऐन की कब्र
बेर्गन बेलसेन में ऐन की कब्र भी है. फ्रैंकफर्ट में पैदा होने वाली ऐन ने अपनी जिंदगी में कई सपने देखे. अपनी डायरी में उसने लिखा, "मैं बेकार में नहीं जीना चाहती, जैसे ज्यादातर लोग जीते हैं. मैं उन लोगों को जानना चाहती हूं जो मेरे आसपास रहते हैं लेकिन मुझे नहीं जानते, उनके काम आना और उनके जीवन में खुशी लाना चाहती हूं. मैं और जीना चाहती हूं, अपनी मौत के बाद भी."
डायरी से मशहूर
ऐन फ्रैंक लेखक बनना चाहती थीं. उनके पिता ने 25 जून 1947 को डायरी प्रकाशित की और उसे नाम दिया, "पिछवाड़े वाला घर." किताब बहुत मशहूर हुई और ऐन नाजी यातना का प्रतीक बन गई. 6 जुलाई 1944 को ऐन ने लिखा, "हम सब खुश होने के मकसद से जीते हैं, हम सब अलग अलग जीते हैं लेकिन फिर भी एक ही तरह से."