ऐतिहासिक फोटोग्राफी
फोटोग्राफी विज्ञान और कला दोनों है स्थायी छवि तैयार करने की. यह कई तकनीकों की खोज को जोड़ कर बना है. पहली तस्वीर संभवतः 1825 में ली गई थी लेकिन जयपुर के सुरिंदर के पास ऐसा कैमरा है जिसके 1860 के दशक में बनने की बात है.
सुरिंदर जयपुर के वो फोटोग्राफर हैं जो 1860 के जर्मनी में बने कैमरे से आज भी गुजर बसर कर रहे हैं. कार्ल जाइस का उनका कैमरा आज दुनिया का सबसे पुराना कैमरा कहा जा सकता है. जयपुर के विश्व प्रसिद्ध स्मारक हवा महल के सामने फुटपाथ पर लगा उनका यह कैमरा राहगीरों और पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है.
सुरिंदर और उनके भाई टीकमचन्द को यह कैमरा उनके दादा जी पहाड़ी लाल से विरासत में मिला जो जयपुर के महाराजा के शाही फोटोग्राफर थे और तबसे जर्मनी का यह कैमरा उनकी तीन पीढ़ियों की एकमात्र आमदनी का जरिया बना हुआ है
कैमरा भले ही पुराना पड़ गया हो, लेकिन सुरिंदर के कैमरे का लेंस आज भी अपनी उपयोगिता बनाए हुए है और बेहतरीन फोटो खींचता है. वे कहते है जिस दिन यह लेंस खराब हुआ या टूटा उसी दिन उनकी जिंदगी भी टूट जाएगी.
लकड़ी से बना यह 20 किलोग्राम का कैमरा लकड़ी के ही एक टूटे से ट्राइपॉड पर पत्थरों के सहारे टिका है. मजे की बात यह है कि इसे एक छोटा डार्क रूम भी कहा जा सकता है जहां फोटो पेपर पर लेंस की मदद से फोटो खींचने के बाद कैमरे में ही मौजूद केमिकल्स से इसे धोया जाता है और पूरी प्रक्रिया में मात्र पांच मिनट समय लगता है.
फोटो खींचने और डेवलप करने के बाद उसे बाहर निकाल कर सादे पानी से धोया जाता है. लुप्त हो गए इस कैमरे के फोटो धोने वाले केमिकल्स भी लुप्त होते जा रहे हैं. सुरिंदर बहुत ही मुश्किल से पर फिर भी किसी तरीके से इनका जुगाड़ कर ही लेते हैं.
पांच मिनट में तैयार हुआ ये फोटो कभी लोगों की बडी जरूरत हुआ करता था. पासपोर्ट और अन्य फार्मों पर लगाने के लिए इसे खिंचाने वालों की भीड़ लगी रहती थी. पर बदलते वक्त के साथ डिजिटल कैमरा आ गया जिसके कारण अब यह कैमरा एक एंटीक पीस बन कर रह गया है.