एशियाई पांडुलिपिया छपेंगी जर्मनी में
१५ मई २०१३जर्मनी के कई पुस्तकालयों में पूर्वी देशों की ऐसी किताबें मौजूद हैं जिन्हें कई साल तक हाथ से ही लिखा जा रहा था. जबकि प्रिनटिंग मशीनें अस्तित्व में आ चुकी थीं. ऐसी कई किताबें अरबी भाषा की हैं जिन्हें 20वीं सदी तक हाथ से लिखा जा रहा था. बर्लिन की स्टेट लाइब्रेरी में ऐसी ओरिएंटल पांडुलिपियों और ब्लॉक प्रिंट का बड़ा संग्रह है. जर्मनी में ऐसी पांडुलिपियों की कुल संख्या करीब 42 हजार है.
पूर्वी देशों के जर्मन विशेषज्ञों ने 1957 में इस प्रोजेक्ट का प्रस्ताव दिया था. यह गोएटिंगन एकेडमी ऑफ साइंसेस का रिसर्च प्रोजेक्ट है. यूनियन कैटेलॉग ऑफ ओरिएंटल मैन्युस्क्रिप्ट इन जर्मन कलेक्शन (केओएचडी) इस रिसर्च प्रोजेक्ट का नाम है.
अभी तक केओएचडी ने 140 खंड कैटेलॉग के तौर पर प्रकाशित किए हैं और कुछ पांडुलिपियों के बारे में शोध भी.
पूर्वी जर्मनी की येना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता अरबी पांडुलिपियों के विशेषज्ञ माने जाते हैं. वहीं दूसरी जर्मन यूनिवर्सिटियों में पुरानी तुर्की, कॉप्टिक, इथियोपियाई, मिस्र, संस्कृत, सिंहली, फारसी, उइगुर, भारतीय, हीब्रू, चीनी, तिब्बती और बर्मी पांडुलिपियों पर शोध हो रहा है.
अरबी भाषा की किताबें
येना में इस्लाम मामलों के विशेषज्ञ टिलमान साइडेनश्टिकर काम सुपरवाइज कर रहे हैं. बवेरियाई स्टेट लाइब्रेरीर से यह किताब लाई गई थी और इसे विश्लेषण और कैटेलॉग बनाने के लिए सीन सेफ में रखा जाता था. साइडेनश्टिकर किताब को सावधानी से निकालते हुए किताब पर बने एक बादाम जैसे आकार की ओर ध्यान दिलाते हैं जिसे मंडोर्ला कहा जाता है और यह एक विशेषता है.
किताब को खोलते हुए अरबी भाषा का टेक्स्ट दिखाई देता है और कुछ पेजों पर साइड में लिखे हुए नोट्स भी हैं. साइडेनश्टिकर बताते हैं, "यह अरबी व्याकरण जैसा लगता है." उनका मानना है कि यह टेक्स्ट 19वीं सदी में कभी लिखा गया होगा.
यह प्रोजेक्ट लाइब्रेरी और पाठक वर्ग के लिए बहुत महत्व का है. बवेरिया की स्टेट लाइब्रेरी के ओरिएंटल और एशिया विभाग के निदेशक हेल्गा रेबहान कहती हैं, "नई प्रतिलिपियां और तुलनात्मक पाठ लगातार मिल रहे हैं." रेबहान ने बताया कि बवेरियाई संकलन में कुल 17,000 ओरिएंटल और पूर्वी एशियाई पांडुलिपियां हैं. इसमें सबसे पुरानी 8वीं सदी की हैं. इनमें से पुरानी जावा और बहुत नाजुक किताबें भी हैं जो ताड़ की पत्ती पर लिखी गई हैं.
रेबहान ने बताया, "केओएचडी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी एक इकलौता और महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है." इनमें मोरक्को से लेकर जापान की पांडुलिपियां शामिल हैं. उन्होंने कहा कि जर्मनी की संघीय और राज्य सरकारों ने इसके लिए धन दिया है जो 2015 में खत्म हो जाएगा. लेकिन इसे आगे बढ़ाना जरूरी है.
कॉपीराइट का मसला
कॉपीराइट के नियमों के कारण केटेलॉग को डिजिटल बनाना अभी संभव नहीं हो सका है. इसके कारण ये किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं हो सकेंगी. इसलिए कैटेलॉग बनाने के लिए अधिकतर की मुख्य जानकारी ही दी गई है. "अगर लोग इन पांडुलिपियों के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं तो उन्हें उस लाइब्रेरी में जाना होगा या फिर डिजिटल इमेज का ऑर्डर देना होगा. ऐसे लेख जो खास हैं उन्हें विशेष तौर पर विस्तार से बताया गया है."
कुछ दस्तावेज अनमोल है. कुछ के बारे में कैटेलॉग बनाने से पहले जानकारी ही नहीं थी. साइडेनश्टिकर ने इस्तांबूल के एक इमाम की रिपोर्ट के बारे में बताया. यह रिपोर्ट 1860 में ब्राजील पहुंच गई क्योंकि जिस जहाज में वह इमाम थे वह तूफान के कारण अफ्रीका पहुंच गया.
साइडनश्टिकर कहते हैं कि दूसरे मुसलमानों से उनका संवाद ऐतिहासिक महत्व रखता है क्योंकि यह दक्षिण अमेरिका की मुस्लिम संस्कृति के बारे में बताता है. ओरिएंटल पांडुलिपियां किसी समय में जर्मन राजकुमारों के साथ लाइब्रेरी लाई गई थीं. बाद में जर्मन वैज्ञानिकों और स्कॉलर्स ने इनका नीजि संकलन किया. थ्यूरिंजिया राज्य में एरफुर्ट यूनिवर्सिटी की गोथा रिसर्च लाइब्रेरी में इस तरह की कई पांडुलिपियां मौजूद हैं.
साइडेनश्टिकर ने कहा कि इनमें से कुछ लैंडस्केप फॉर्मेट में लिखी हुई चमड़े पर लिखी हुई कुरान हैं (पार्चमेंट कुरान) जो आठवीं से दसवीं शताब्दी के दौरान लिखी गई थीं.
थ्यूरिंजिया में रखी हुई पांडुलिपियों का कैटेलॉग बना दिया गया है लेकिन जर्मन लाइब्रेरियों के कलेक्शन में इनकी कमी है. साइडेनश्टिकर के मुताबिक केओएचडी का आखिरी चरण शुरू हो गया है, "हमने प्रोजेक्ट सात साल में खत्म करने के बारे में प्लान दे दिया है." लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट के लिए पैसे के बारे में फैसला अभी होना बाकी है और वह 2013 में किया जाएगा.
रिपोर्टः आभा मोंढे (डीपीए)
संपादनः ईशा भाटिया