एनजीओ पर शिकंजा कसती इस्राएल सरकार
३० दिसम्बर २०१५इस्राएली कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब नया विधेयक संसद भेजा जाएगा. यदि संसद में इसे मंजूरी मिल जाती है तो इस्राएल में ऐसे सभी गैरसरकारी संगठनों को अपने दानकर्ताओं का नाम उजागर करना होगा, जिनकी फंडिग का कम से कम आधा हिस्सा "विदेशी सरकारी ईकाइयों" से आता है. उन्हें अपना पूरा वित्तीय लेखाजोखा इस्राएल सरकार के सामने रखना होगा.
संसदीय समितियों के समक्ष आने पर विदेशी संस्थानों से चंदा पाने वाले गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं को विशेष पहचान पत्र पहनना होगा, जैसा कि अभी पेड लॉबिस्ट को करना पड़ता है. इस्राएल सरकार का मकसद देश में विदेशी हस्तक्षेप पर लगाम लगाना है. विधेयक की प्रायोजक न्याय मंत्री आयलेत शाकेद का मानना है कि "इस्राएल के आंतरिक मामलों में विदेशी सरकारों की अभूतपूर्व और विस्तृत दखलअंदाजी हो गई है."
शाकेद ने 2014 की गाजा युद्ध से संबंधित एक यूएन जांच का जिक्र किया है जिसका निष्कर्ष ये निकला था कि इस्राएल को युद्ध अपराधों का दोषी माना जा सकता है. उनका मानना है कि संयुक्त राष्ट्र ने अपनी जांच में विदेशी फंडिंग वाले एनजीओ से मिले साक्ष्यों को आधार बनाया था. अतिदक्षिणपंथी यहूदी होम पार्टी की सदस्य शाकेद मानती हैं कि इस्राएली लोकतंत्र के लिए उसकी राजनीति और नीतियों में विदेशी दखलअंदाजी "असली खतरा" है.
ऐसा एक संगठन 'ब्रेकिंग द साइलेंस' है जो वेस्ट बैंक में इस्राएली कब्जे की समाप्ति का समर्थन करता है. मुख्य रूप से पूर्व सैनिकों और रिजर्व सैनिकों से बना यह संगठन सेना के जवानों से कब्जे वाले इलाकों में तैनाती के दौरान उनके अनुभवों के बारे में पूछता है और नाम बताए बिना उन्हें प्रकाशित करता है. यह संगठन सेना की व्यवस्थित रूप से की जाने वाले गलत व्यवहार की आलोचना करता है. उसका आरोप है कि गाजा युद्ध के दौरान सैनिक खास इलाकों में किसी पर भी गोली चला सकते थे. अब तक 1000 से ज्यादा सैनिकों ने अपनी चुप्पी तोड़ी है.
वामपंथी एनजीओ इस्राएल सरकार की फलीस्तीन नीति की समय समय पर आलोचना करते हैं. इस्राएली आर्मी रेडियो ने उन्हें मिले कुछ दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि यूरोपीय संघ के दूत ने इसे निरंकुश शासनों की याद ताजा करने वाला कदम बताते हुए इसे इस्राएल की लोकतांत्रिक छवि के लिए नुकसानदायक बताया है.
भारत में भी कई क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मान्यता है लेकिन ग्रीनपीस समेत कई एनजीओ पर विदेशी धन से प्रभावित होकर अपनी गतिविधियां चलाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं. भारत सरकार का आरोप है कि विदेशों से सहायता लेने वाले कुछ गैर सरकारी संगठन अपने अभियानों के जरिए भारत के विकास की गति को धीमा कर रहे हैं.
आरआर/एमजे (एएफपी, डीपीए)