एक कदम आगे, दो कदम पीछे
१६ अगस्त २०१३यह संबंध कितना जटिल और विडंबनाओं से भरा हुआ है, इसका इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि एक ओर भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ स्वाधीनता दिवस पर एक दूसरे को बधाई और शुभकामना संदेश भेज रहे हैं और दूसरी ओर पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली (संसद) भारत के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर रही है जिसका जवाब भारत की संसद भी सर्वसम्मति से पाकिस्तान के खिलाफ प्रस्ताव स्वीकृत करके दे रही है.
यहां दोनों देशों के इतिहास में जाने की गुंजाइश नहीं है, लेकिन यह याद दिलाना जरूरी है कि 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान और उसके अगले दिन 15 अगस्त, 1947 को भारत के स्वतंत्र एवं प्रभुसत्तासंपन्न राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से ही दोनों देशों के बीच जम्मू कश्मीर को लेकर तनाव बना रहा है और 1947-48, 1965 और 1999 में वे युद्ध भी लड़ चुके हैं. उनके बीच 1971 में भी युद्ध हो चुका है जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए और पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में उदय हुआ. इस युद्ध में पाकिस्तान को इतनी करारी हार का सामना करना पड़ा था कि उसके 90,000 सैनिक एक साल तक भारत में बंदी बनकर रहे. लेकिन पाकिस्तान इसके बाद भी कश्मीर को किसी तरह भारत से अलग करना चाहता है. वह 1948 से ही कश्मीर में जिहादी घुसपैठिए भेजता रहा है और आज भी भेज रहा है.
1980 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ चले युद्ध में अमेरिका की शह पर उसने मुजाहिदों के सशस्त्र दस्ते तैयार किए. उस समय जिहाद और उसे चलाने वाले मुजाहिद सम्मानजनक शब्द थे लेकिन 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका और शेष विश्व भी भारत की इस राय से सहमत हो गया कि आधुनिक जिहाद आतंकवाद का ही एक रूप है. अब विश्व समुदाय यह भी समझ गया है कि पाकिस्तान आतंकवाद को विदेश नीति के एक अंग की तरह इस्तेमाल करता है. दूसरे वह किसी भी बात की जिम्मेदारी लेने से पहले हमेशा इनकार करता है. बाद में प्रमाण सामने आने पर उसे मानना पड़ता है लेकिन उनकी जिम्मेदारी गैरसरकारी संगठनों पर डाल दी जाती है. यह अलग बात है कि उसके द्वारा तैयार किए गए आतंकवादियों के कुछ गुट अब पाकिस्तानी राजसत्ता को ही चुनौती दे रहे हैं.
इस पृष्ठभूमि में भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती की कदमतालनुमा कोशिशें की जाती हैं पर बात आगे नहीं बढ़तीं. हालांकि दोनों देशों में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो शांति और स्थिरता के पक्ष में हैं और ईमानदारी के साथ दोनों देशों के बीच मधुर संबंधों की कामना करते हैं. सत्ता में आने से पहले नवाज शरीफ ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किए थे. लेकिन पिछली जनवरी से लगातार जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम का उल्लंघन हो रहा है. भारत का आरोप है कि पाकिस्तानी सेना जिहादी घुसपैठियों को नियंत्रण रेखा के इस पार भेजने के लिए गोलाबारी करती है और भारतीय सैनिकों की हत्या करती है. पाकिस्तान इस आरोप से इनकार करता है और भारत पर युद्धविराम का उल्लंघन करने और पाकिस्तानी सैनिकों को मारने का आरोप लगाता है. जब भारत उसे यह याद दिलाता है कि जनवरी 2004 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के बीच इस्लामाबाद में हुए समझौते में पाकिस्तान ने वचन दिया था कि वह अपने नियंत्रण वाली भूमि से भारत विरोधी गतिविधियां नहीं होने देगा, तो पाकिस्तान उन्हें रोकने में असहायता प्रकट करता है और कहता है कि वह तो स्वयं आतंकवाद का शिकार है.
भारत को एक बड़ी शिकायत यह भी है कि पाकिस्तान ने 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों की साजिश रचने वालों के खिलाफ कोई कारगर कार्रवाई नहीं की और उनका सरगना हाफिज सईद, जिसे पकड़ने और मुकदमा चलाने के लिए अमेरिका ने पिछले साल अगस्त में एक करोड़ डॉलर का इनाम घोषित किया था, पाकिस्तान में खुले आम सक्रिय है. उसने पिछले सप्ताह ही लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में ईद की नमाज का नेतृत्व किया और भारत भर में जिहाद छेड़ने का एलान किया. पाकिस्तान सरकार का कहना है कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं, इसलिए उसे गिरफ्तार करके मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. भारत ही नहीं, विश्व समुदाय भी इस मुद्दे पर चिंतित है. भारत में इस बात को लेकर काफी रोष भी है.
पाकिस्तान में चुनाव हो चुके हैं और वहां नई सरकार सत्ता में है. उसे स्थिर होने में समय लगेगा. अक्सर वहां विदेश नीति और सामरिक नीति नागरिक सरकार नहीं, सेना तय करती है. अभी यह निश्चित नहीं है कि नवाज शरीफ सरकार और सेना के बीच कैसा संबंध विकसित होगा. ताजा घटनाक्रम से तो यही लगता है कि अभी तक सेना ही हावी है. उधर भारत में यह चुनाव का साल है. कोई भी राजनीतिक दल पाकिस्तान के प्रति नर्म दिखने का जोखिम नहीं उठा सकता. हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दिली इच्छा है कि अगले माह न्यूयॉर्क में होने जा रहे संयुक्त राष्ट्र की महासभा के अधिवेशन के समय उनकी नवाज शरीफ से मुलाकात हो, लेकिन पाकिस्तानी संसद के भारत विरोधी प्रस्ताव ने इस मुलाकात का हो पाना और भी कठिन बना दिया है. पाकिस्तान भारत को सर्वाधिक वरीयता प्राप्त राष्ट्र (एमएफएन) का दर्जा देने के अपने वादे से भी मुकर गया है. ऐसे में दोनों देशों के संबंधों में सुधार होने की आशा धूमिल होती जा रही है.
ब्लॉगः कुलदीप कुमार, दिल्ली
संपादनः अनवर जे अशरफ