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उम्मीद जगाता सोयाबीन और सरसों का चारा

३० सितम्बर २०१७

इंसान साल में 10 करोड़ टन मछली खाता है. लेकिन इतनी मछली आये कहां से? समुद्र खंगाले जा चुके हैं. इसीलिए अब सारा ध्यान वैज्ञानिकों और उनकी लैब पर जा टिका है ताकि प्राकृतिक मछली खाने की जगह तालाब में मछली पैदा किये जा सकें.

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Indonesien Riff
तस्वीर: picture-alliance/Prisma/R. Dirscherl

अभी तक ये पता नहीं है कि मछलियों को पालने का कौन सा तरीका सबसे कामयाब है. उत्तरी जर्मनी की इस आधुनिक रिसर्च लैब में अब सारे सवालों के जवाब खोजे जा रहे हैं. यहां वैज्ञानिक मीठे और खारे पानी वाली मछलियों की ब्रीडिंग करते हैं. मछलीपालन तथा चारे के बारे में यहां मिली जानकारियों को वे मछली उद्योग के साथ बांट रहे हैं. मछली उद्यमों के लिए ये जानकारियां बड़े काम की होती हैं.

कृषि विज्ञानी प्रोफेसर कार्स्टेन शुल्त्स की अहमियत बताते हैं, "दुनिया की बढ़ती हुई आबादी को आने वाले दिनों में खाने के लिए और ज्यादा मछलियों की जरूरत होगी और उस मांग को समुद्री मछलियों से पूरा नहीं किया जा सकेगा. इसके लिए कृत्रिम मछलीपालन की मदद से उत्पादन बढ़ाने की जरूरत होगी. इसके जरिये हम दुनिया की आबादी को मछली खाने का मौका दे पायेंगे."

रिसर्चर ये पता लगाना चाहते हैं कि किन परिस्थितियों में मछलियां तेजी से बढ़ती हैं. इसके लिए पानी कैसा हो और मछलियों को बढ़ने के लिए कितनी जगह चाहिए? रिसर्चर इसके लिए नियमित रूप से मछलियों का आकार और वजन नापते हैं. जब मछलियां तनाव में होती हैं तो वे धीमी गति से बढ़ती हैं और उनकी आबादी भी बहुत कम तेजी से बढ़ती है.

Piranha im Stuttgarter Zoo
मछली उद्योग को राहत देगा एक्वेरियमतस्वीर: Magnus Heier

महत्वपूर्ण सवालों में एक ये भी है कि मछलियों का चारा कैसा हो, उनमें से कौन सी चीजें रक्तवाहिका तक पहुंच जाती है? अब तक बहुत से मछलीपालक चारे के रूप में मछली के आटे या मछली के तेल का इस्तेमाल करते हैं. इसमें जितनी मछली पैदा होती है उससे ज्यादा चारे की भेंट चढ़ जाती है. इसी वजह से अब नये चारे की तलाश हो रही है.

प्रोफेसर शुल्त्स कहते हैं, "हम नये प्रकार के चारे और चारे के सप्लीमेंट पर काम कर रहे हैं. इस तरह हम चारे में मछली के कीमती आटे और तेल का हिस्सा कम करने की कोशिश में हैं. हमें वैकल्पिक साधनों का विकास करने में कामयाबी भी मिली है."

रिसर्चर मछली के आटे के बदले घास से बनी छोटी गोलियों का चारे के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. टरबॉट मछली को ये पसंद आ रहा है. रिसर्चरों की चुनौती ये है कि पौधों से बना चारा भी मछली के आटा जितना ही पोषक हो. रिसर्चर चारा बनाने के लिए सरसों और सोया का इस्तेमाल कर रहे हैं. इन पौधों में पर्याप्त प्रोटीन है, वह फिश पाउडर की जगह ले सकता है. इस तरह बचे कचरे का इस्तेमाल खाद्य सामग्री या बायोडीजल के उत्पादन में भी हो सकता है.

यहां वैज्ञानिक चारे को लगातार बेहतर और पौष्टिक बनाने के प्रयास में लगे हैं. स्वस्थ मछलियों से ही अच्छी पैदावार संभव है. एक्वेरियम में मछली पालन की कोशिशें रंग ला रही हैं. और अच्छी बात ये है कि यह कहीं भी संभव है, बड़े शहरों के अलावा कम पानी वाले इलाकों में भी.

(प्लास्टिक मुक्त महासागर)