उच्च शिक्षा मतलब कैंसरस ब्रेन ट्यूमर?
२३ जून २०१६इस अध्ययन के परिणामों पर जर्नल ऑफ एपिडेमिओलॉजी एंड कम्युनिटी में आलेख लिखने वाले शोध के प्रमुख डॉ. अमल खानोल्कर ने लिखा है, ''विश्वविद्यालयों से पढ़े पुरूषों में ग्लायोमा पाए जाने की आशंका 19 प्रतिशत बढ़ जाती है.'' वहीं महिलाओं में इसका खतरा और भी अधिक 23 प्रतिशत तक है.
ग्लायोमा घातक ब्रेन ट्यूमर होता है जो कि तेजी से फैलता है. तेज सिरदर्द, मतली और स्मृतिदोष इसके लक्षण हैं. ग्लायोमा से पीड़ित लोगों के बच पाने की संख्या बेहद कम है.
डॉ. खानोल्कर कहते हैं, ''यह चौंकाने वाले परिणाम हैं जिन्हें समझा पाना बेहद कठिन है.'' मोटे तौर पर यह समझ पाना कठिन है क्योंकि इस तरह के ब्रेन ट्यूमर आम तौर पर देखने को नहीं मिलते.
शिक्षा के निचले पायदान पर, ग्लायोमा की आशंका 3,000 में से केवल 5 लोगों में पाई गई. वहीं शैक्षिक अनुक्रम के दूसरे छोर यानि उच्च शिक्षा में यह 3,000 में 6 लोगों में थी. कम लोगों पर किए गए अध्ययन में यह आंकड़ा छोटा दिखता है लेकिन एक बड़ी जनसंख्या में अध्ययन किए जाने पर इन आंकड़ों का अंतर काफी बढ़ जाता है.
शुरुआत में इस शोध में शिक्षा, सामाजिक स्तर और ब्रेन ट्यूमर होने की आशंकाओं के बीच संबंध तलाशने की कोशिश की जा रही थी लेकिन इससे कोई परिणाम नहीं निकल सका. ऐसे विरोधाभाषी निष्कर्षों को समझने के लिए कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ. खानोल्कर और उनके सहयोगियों ने एक नया दृष्किोण अपनाया.
उन्होंने लोगों के छोटे समूह में ब्रेन ट्यूमर के रोगियों की तुलना करने के बजाय उन्होंने 1993 से 2011 तक स्वीडन के पब्लिक हेल्थ सिस्टम की ओर से दर्ज किए गए 43 लाख वयस्कों के आंकड़ों के अनुसार अपना अध्ययन किया.
शोधकर्ताओं ने ब्रेन ट्यूमर को तीन प्रकारों में बांटा जिनमें से दो ऐसे थे जिनमें कैंसर का खतरा नहीं था और एक ऐसा जिसमें कैंसर का खतरा था. इन आंकड़ों के मुताबिक शैक्षिक योग्यता और सभी तीन प्रकार के ब्रेन ट्यूमरों में साफ तौर पर मजबूत रिश्ता पाया गया. उच्च शिक्षित लोगों में ग्लायोमा के लक्षण अधिक पाए गए.
इसके अलावा कम आय वाले शारीरिक श्रम से जुड़े श्रमिकों और उच्च आय वाले महिलाओं और पुरूषों में जो कि शारीरिक श्रम से नहीं जुड़े हैं, इनमें भी खतरे का भारी अंतर देखने में आया.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के क्लिनिकल एपिडेमिओलॉजिस्ट जेम्स ग्रीन इस शोध के बारे में कहते हैं, ''इस परिप्रेक्ष्य में दो और भी कारक ध्यान देने लायक हो सकते हैं, एक है लंबाई और दूसरा है, महिलाओं में हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी. खासकर केंसर वाले ब्रेन ट्यूमर का खतरा लंबे लोगों में अधिक होता है. साथ ही हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी भी ब्रेन ट्यूमर के खतरे को बढ़ा देती है.''
आरजे/आरपी (एएफपी)