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उग्रवादी हमले के बाद पूर्वोत्तर में बीजेपी रणनीति पर सवाल

प्रभाकर५ अगस्त २०१६

असम के कोकराझार में संदिग्ध बोडो उग्रपंथियों के हमले में 14 लोगों की मौत के बाद राज्य की बीजेपी सरकार पर सवाल उठे. मुख्यमंत्री सोनोवाल की बीजेपी ने चुनाव से पहले बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ गठबंधन बनाया था.

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Indien Politiker Sarbananda Sonowal
मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवालतस्वीर: Imago/Hindustan Times

पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले असम की सत्ता पर काबिज होने के लिए बीजेपी ने इस साल मई में हुए चुनावों में बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ हाथ मिलाया था. मकसद था बोडो बहुल इलाकों की सीटों को अपनी झोली में डालना. उसमें तो पार्टी को कामयाबी मिल गई. लेकिन संदिग्ध नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के उग्रवादियों ने शुक्रवार को जिस तरह कोकराझार में सरेबाजार अंधाधुंध फायरिंग कर 14 बेकसूर लोगों की जान ले ली, उसने बीजेपी की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद यह पहला बड़ा उग्रवादी हमला है. हमले के बाद मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की. उसके बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी सोनोवाल से बातचीत की.

दिन दहाड़े हमला

असम के कोकराझार स्थित बालाजान तिनाली स्थित बाजार पर शुक्रवार सुबह उग्रवादियों ने धावा बोला और अंधाधुंध फायरिंग करने लगे. इसमें कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई और दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो गए. घायलों में कइयों की हालत गंभीर होने की वजह से मरने वालों की तादाद बढ़ने का अंदेशा है. जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बल के जवानों ने एक उग्रवादी को मार गिराया. उग्रवादियों ने मौके पर बम भी फेंके. इससे तीन दुकानें जल गईं. असम के पुलिस महानिदेशक मुकेश सहाय ने बताया कि यह हमला एनडीएफबी के सोंगविजित गुट ने किया है.

किसी सार्वजनिक स्थान पर दिनदहाड़े उग्रवादी हमला इससे पहले इस राज्य में कभी नहीं हुआ था. यह हमला उस समय हुआ जब स्वाधीनता दिवस की वजह से पूरे राज्य में हाई अलर्ट जारी किया गया था. इससे साफ है कि सरकार की खुफिया एजेंसियों को पहले से इसकी जानकारी नहीं मिल सकी. सेना के प्रवक्ता ले.कर्नल एस. न्यूटन कहते हैं, "इस हमले में कम से तीन उग्रवादी शामिल थे. उनमें से एक को मार दिया गया है. हमले में बचे एक दुकानदार संतोष नार्जरी ने बताया कि एक हथियारबंद उग्रवादी लंबा काला रेनकोट पहने था जबकि बाकी दो लोग तिपहिया पर बैठे थे. पहला उग्रवादी चुन-चुन कर लोगों को निशाना बना रहा था.

पुराना है आंदोलन का इतिहास

राज्य का कोकराझार जिला बीते कम से कम तीन दशकों से हिंसा से जूझता रहा है. यहां पर बोडो जनजाति से जुड़े उग्रवादी संगठन ही इस हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं. इससे पहले वर्ष 2014 में हुई हिंसा में लगभग 32 लोग मारे गए थे. इलाके में हिंसा की एक बड़ी वजह मुस्लिमों की बढ़ती आबादी भी है. बोडो लोगों का आरोप है कि पड़ोसी बांग्लादेश से भारी तादाद में आने वाले अल्पसंख्यक इलाके में बस गए हैं. हाल के वर्षों में बोडो जनजाति ही इलाके में अल्पसंख्यक होती जा रही है. इसके चलते हिंसा बढ़ी है. इससे पहले वर्ष 2012 में हुई हिंसा में भी 108 लोग मारे गए थे. उसके बाद इलाके में बड़े पैमाने पर दंगे भी हुए थे.

सबसे बड़े उग्रवादी संगठन नेशनल डेमोक्रटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड को ही इलाके में होने वाली हिंसा के लिए जिम्मेदार माना जाता है. बोडो जनजाति के लोग लंबे समय से अलग बोडो राज्य की मांग करते रहे हैं. केंद्र व राज्य सरकार के साथ एक तितरफा करार के तहत इलाके में बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का गठन किया गया था. लेकिन कई संगठनों ने इस समझौते को स्वीकार नहीं किया और अलग राज्य की मांग में हथियारबंद आंदोलन करते रहे. ऐसे संगठनों में एनडीएफबी प्रमुख है. दिलचस्प बात यह है कि इलाके में बोडो लोगों की सबसे बड़ी पार्टी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) चुनाव भी लड़ती है. फिलहाल वह बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार में शामिल है. इसके मुखिया हंग्रामा मोहिलारी ही एक दशक से बोडोलैंड स्वायत्त परिषद के प्रमुख हैं.

बीजेपी की मुश्किलें

बीते चुनावों के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में उनकी पार्टी बीपीएफ ने बीजेपी के साथ हाथ मिलाया था. मोहिलारी भी अपने दौर में कुख्यात उग्रवादी रहे हैं. अब इस हमले के बाद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि बोडो उग्रवादी लंबे अरसे से शांत थे. अब इस बात की जांच की जाएगी कि उन्होंने अचानक इतना बड़ा हमला क्यों किया? हमले के बाद इलाके में पीड़ितों के घावों पर मरहम लगाने की कवायद शुरू हो गई है. प्रधानमंत्री ने राज्य सरकार को उग्रवाद से निपटने में हरसंभव सहायता देने का एलान किया है.

राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को पांच और घायलों को एक लाख की दर से मुआवजा देने का एलान किया है. लेकिन सोनोवाल सरकार को अभी कई सवालों के जवाब तलाशने होंगे. मसलन हाई अलर्ट के बावजूद यह हमला कैसे हो गया? उनके साथ इलाके की सबसे बड़ी पार्टी बीपीएफ के होने के बावजूद उग्रवादियों के असंतोष की वजह क्या है? सरकार की खुफिया एजेंसियों को इस हमले की भनक क्यों नहीं लगी? इनके जवाब शीघ्र नहीं मिले तो राज्य में उग्रवादी हिंसा का एक नया दौर शुरू हो सकता है.