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ईयू चुनाव सोशल मीडिया की ओर

१३ मई २०१४

फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब, यूरोपीय संघ के नेता अपने मतदाताओं से सोशल मीडिया पर संपर्क करने को इच्छुक हैं. लेकिन क्या इससे पॉलिटिक्स आकर्षक बन सकेगी?

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Das Gebäude der EU-Kommission in Brüssel
तस्वीर: DW/W. Izotov

नेताओं पर अक्सर आरोप लगते हैं कि वो लोगों से संपर्क नहीं बनाते और वोटरों के नजरिए में कोई रुचि नहीं रखते. यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों के पास तो वैसे भी लोगों से मिलने का सीमित मौका रहता है. जर्मनी के कुल 99 प्रतिनिधि हैं और इनमें से हर एक नेता औसतन आठ लाख अट्ठाइस हजार नागरिकों का नेतृत्व करता है.
अब सोशल मीडिया के जरिए ये नेता सीधे लोगों से संपर्क बनाने की कोशिश में हैं और अपने इलाके के आधे से ज्यादा लोगों तक वो इनके जरिए पहुंच सकते हैं. कम से कम जर्मनी की आईटी संस्था बिटकॉम का तो कहना है कि 60 फीसदी से ज्यादा जर्मन इंटरनेट के जरिए ही राजनीति पर नजर रखते हैं.

बवेरिया से पाइरेट पार्टी की प्रतिनिधि यूलिया रेडा कहती हैं कि उनकी पार्टी सोशल मीडिया के साथ लोगों से जुड़ी हैं. रेडा खुद भी 25 मई के चुनावों के लिए सेट अप बनाना चाहती हैं. वह कहती हैं कि पाइरेट पार्टी और यूरोपीय संघ एकदम बढ़िया मैच हैं. इस पार्टी में जर्मनी के सबसे ज्यादा युवा उम्मीदवार हैं. रेडा कहती हैं, "हम दिखाते हैं कि हमने इंटरनेट से क्या क्या गुण लिए हैं, सहयोग, आपसी कनेक्शन और सीमाओं से परे. ये सभी मूल्य यूरोपीय संघ को भी परिभाषित करते हैं."

पाइरेट पार्टी अपनी वेबसाइट पर ईयू के ताजा मुद्दों पर भी बहस करती है. पार्टी सदस्य ऑनलाइन बहस और अपीलों को बढ़ावा देते हैं, यूरोपीय संसद को सवाल भेजते हैं. यूरोपीय सांसदों के काम के बारे में छोटे छोटे वीडियो अपलोड करते हैं और फिर इन्हें सोशल मीडिया पर प्रमोट करते हैं.

रेडा सोशल नेटवर्क की मदद से यूरोपीय नेताओं को लोगों के नजदीक लाने की कोशिश करती हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि नेताओं को खुद टीवी पर आने या फिर इंटरनेट पर मौजूद होने के लिए तैयार होना चाहिए. अधिकतर नेताओं को सीधे लोगों से संपर्क की आदत नहीं होती.

सोशल मीडिया के जानकार मार्टिन फुक्स का मानना है कि अधिकतर यूरोपीय सांसद सोशल मीडिया का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रहे. वो कहते हैं कि ईयू सांसदों के फेसबुक पेज पर जाने से पता चल जाता है कि वहां बहुत ज्यादा संवाद नहीं हो रहा. अक्सर वह अपनी वेबसाइट पर ये बताना भी भूल जाते हैं कि वो सोशल मीडिया पर मौजूद हैं.

फुक्स हालांकि मुश्किलें भी जानते हैं. नेता नहीं चाहेंगे कि उनके पेज पर कुछ आलोचनात्मक छप जाए. लेकिन वो ये भी कहते हैं कि ऐसा सोचना गलत है. फुक्स के मुताबिक "अगर नेता सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उन्हें बातचीत के लिए भी समय निकालना चाहिए. उन्हें आलोचना का जवाब देना चाहिए और इसे गंभीरता से लेना चाहिए. आलोचना का मतलब होता है कि ऐसे लोग हैं जो मुझमें और मेरे विचारों में रुचि रखते हैं."

लेकिन इंटरेक्शन होना चाहिए. अगर नहीं होगा तो फेसबुक तय करेगा कि पोस्ट बोरिंग हैं और नतीजा ये होगा फेसबुक फैन्स को पोस्ट पहुंचाएगा ही नहीं. फुक्स बताते हैं क्योंकि ये क्लासिक "एक की तुलना में कई मेसेज वाला मामला है." विशेषज्ञों की राय के बावजूद अक्सर नेता सोशल मीडिया पर कोई इंटरेक्शन नहीं करना चाहते. उन्हें लगता है कि उनकी नीति ही सही है.

रिपोर्टःसबरीना पाब्स्ट/एएम

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन