ईको फ्रेंडली अंत्येष्टि
कहते हैं कि हम जिस मिट्टी के बने हैं, अंत में उसी में मिल जाना है. कुछ लोग इसकी भी सोच समझ कर पहले ही योजना बना लेते हैं कि उन्हें किस तरह का अंतिम संस्कार मिले और इस प्रक्रिया में पर्यावरण को नुकसान भी ना पहुंचे.
फूलों की डलिया सा
खास तरह के विलो पेड़ों के तने से बनी ऐसी शवपेटिका कई लोगों की पहली पसंद है. यह मानव शरीर के साथ साथ खुद भी पूरी तरह से विघटित होकर मिट्टी में मिल जाती है. विलो पेड़ काफी जल्दी बड़े होते हैं और इन कास्केट को हाथ से बनाया गया है.
कफन की परंपरा
हजारों सालों से शवों को कफन में लपेट कर दफन करने की परंपरा रही है. अब नए तरह के कफन चलन में आए हैं और शवों को कपड़े की जगह फूलों की चादर में लपेटा जा रहा है. नीचे का प्लेटफार्म बांस का बना होता है.
कल की खबर
देखा जाए तो दुनिया से जाने वाले इंसान को बीते दिनों की खबर के साथ जोड़ना तर्कसंगत लगता है. इकोपॉड कहे जाने वाली इस संरचना को रिसाइकिल किए गए अखबार से बनाया गया है. कई रंगो में उपलब्ध इन इकोपॉड को डिजाइन के शौकीन काफी पसंद करते हैं.
लंबे आराम के लिए
इकोपॉड के निर्माता बताते हैं कि यह हल्का होने के कारण शव को ले जाने वालों के लिए आसान होता है. केंट में स्थित इस बरियल साइट में हुए एक अंतिम संस्कार में दफनाने की जगह पर खास पौधे उगाने की भी व्यवस्था है.
एक नया जीवन
जिन धर्मों में मृत्यु के बाद दाह संस्कार की मान्यता है, वे भी इसे इको फ्रेंडली तरीके का इस्तेमाल करना चाह रहे हैं. इसके लिए भी पुराने अखबारों का इस्तेमाल हो रहा है. इसकी डिजाइनर हाजेल सेलीना बताती हैं कि वह प्राचीन मिस्र की कब्रगाहों से प्रभावित रही हैं.
स्पीरिट ट्री या आत्मा-वृक्ष
स्पीरिट ट्री कहलाने वाले इस बायोडीग्रेडेबिल विकल्प में मिट्टी, उर्वरकों के साथ साथ राख मिली होती है. इसके बीचो बीच बोए गए बीज से जब पौधा फूटता है तो सिरामिक के ढक्कन को तोड़ते हुए बाहर आ जाता है.
मछलियों के साथ
मिट्टी के अलावा दूसरे प्राकृतिक तत्व पानी को भी अंतिम ठिकाना बनाया जा रहा है. ईको फ्रेंडली पेपर से बने भस्म कलश को पानी में विसर्जित करते हैं जहां वह गल जाता है. इस कलश की सतह पर लोग अपने प्रियजनों के लिए अंतिम संदेश भी लिखवाते हैं.
पवित्र जंगल
कैप्सुला मुंडी एक स्टार्च का बर्तन होता है जिसमें मृत व्यक्ति को ऐसे समेट कर रखा जाता है जैसे बच्चा मां के गर्भ में रहता है. मिट्टी में दफनाने पर बर्तन गल जाता है और इसके विघटन से मिट्टी में लगे पेड़ को पोषक तत्व मिलते हैं. इसे बनाने वाले इतावली डिजाइनरों का सपना है कि कब्रिस्तानों की जगह पवित्र जंगल ले सकें लेकिन इसमें अभी कानूनी बाध्यताएं हैं.