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दंग है दिल्ली

१७ दिसम्बर २०१३

नाम हो या काम, औरों से अलग दिखने वाली नई नवेली आम आदमी पार्टी ने पुराने धुरंधरों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सच में सियासत अपना रूप रंग बदलने जा रही है.

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तस्वीर: DW/A. Chatterjee

महज एक साल पहले 2 अक्टूबर 2012 को जन्मी आम आदमी पार्टी के बैनर तले देश में शुरू हुई गुरिल्ला राजनीति के दांवपेंच सही मायने में पिछले एक सप्ताह में दिखने शुरू हुए. आठ दिसंबर को घोषित हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम से साबित हो गया कि आप के जनक अरविंद केजरीवाल ने दो साल पहले शुरू हुए अन्ना आंदोलन के दौरान ही देश की जनता का मूड भांप लिया था. इसमें भी कोई शक नहीं कि टीम अन्ना से दो दो हाथ करने में जुटी समूची सियासी जमात इस बच्चा पार्टी के आगे अब तक लाचार नजर आई है.

बात चाहे संगठन खड़ा करने की हो या बेहतरीन रणनीति के साथ प्रभावी ढंग से जनता के बीच संदेश भेजने की, लगभग हर मामले में पारंपरिक दल इस टीम के पिछलग्गू नजर आ रहे हैं. आप की तेज तर्रार युवा टीम ने युद्ध के अंदाज में जिस तरह से चुनाव लड़ा है उसने चुनावी राजनीति की भारत में दिशा बदलती दिख रही है.

बदला चुनावी अंदाज

पहले चुनाव का नाम जेहन में आते ही कानफोड़ू प्रचार, पोस्टर बैनर से रंगे शहर और फूल माला से लदे खद्दरधारी याचक बने नेता नजर आते थे. लेकिन इस बार पैंट कमीज और चप्पल वाले एक आम आदमी ने हाईटेक प्रचार के जरिए अपनी ईमानदार छवि के बलबूते कुशल संगठन क्षमता के सहारे मुफ्त में दिल्लीवालों का ऐसा दिल जीता कि पानी की तरह अरबों रुपये खर्च करने वाले नेताओं का दिल बैठा जा रहा है. चुनाव आयोग भी हैरान है कि एक पार्टी 70 सीटों पर महज 18 करोड़ रुपये में चुनाव कैसे लड़ सकती है.

Indien Wahlen in Delhi Arvind Kejriwal
केजरीवाल ने बदली तस्वीरतस्वीर: Reuters

लेकिन सिर्फ खर्च ही नहीं राजनीति और चुनाव से जुड़े तमाम मिथक इस चुनाव में टूटे हैं. मिथक टूटने की इस हकीकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के विदुर कहे जाने वाले जनार्दन द्विवेदी ने भी चुनाव परिणाम आने पर आप की तारीफ में कहा कि इस पार्टी ने जात पात, वर्ग और संप्रदाय से आगे जाकर हर वर्ग को लुभाया है और राजनीतिक कुशलता की परिभाषा गढ़ी है.

केजरीवाल की रणनीति

चुनाव का दौर खत्म होने के साथ ही सरकार के गठन की कवायद तेज होने पर टीम केजरीवाल ने वेट एंड वॉच की राजनीति में माहिर नेताओं को तत्काल पलटवार करने का राजनीति गुर सिखाया. त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में आप ही थी जिसने सबसे पहले किसी को समर्थन देने या लेने से परहेज रखने के अपने पुराने रुख पर कायम रहने की बात की. इसके बाद जादुई आंकड़े से महज चार पायदान पीछे भाजपा को भी मजबूरी में खुद को सत्ता की सजी हुई थाल को ठुकराना पड़ा. इसके बाद अपना सब कुछ गंवा चुकी कांग्रेस ने आप को बिना शर्त समर्थन देकर उसे घेरने की ऐसी नाकाम कोशिश की जिसके कारण अब कांग्रस खुद अपने ही बुने जाल में घिर गई है.

कांग्रेस को संभलने का मौका दिए बिना ही तत्काल पलटवार करते हुए केजरीवाल ने बिना शर्त समर्थन लेने के बजाय कांग्रेस से मुद्दों पर आधारित समर्थन की गारंटी मांग ली. मुद्दे भी ऐसे जो कांग्रेस की कमजोर नब्ज हों और सरकार बनाने के बाद इन मुद्दों पर सख्ती बरतने के दौरान तिलमिला कर समर्थन वापस न लेने की गारंटी मांग कर कांग्रेस को चारों खाने चित कर दिया.

पीछे हटी कांग्रेस

अब कांग्रेस विधायी नियमों का हवाला देकर केजरीवाल को अपरिपक्व बताते हुए सियासत के इन नए खिलाड़ियों से पिंड छुड़ाती फिर रही है. वहीं दूसरी ओर नियमों की पेंचीदगी से बेपरवाह जनता केजरीवाल की इस स्टंट पॉलिटिक्स का जम कर लुत्फ उठा रही है. इसके अलावा दिल्ली में चल रही यह नूराकुश्ती देश के अन्य भागों में सियासत का नया दौर शुरू होने की आस पैदा करते हुए आप के लिए उम्मीद के नए दरवाजे भी खोल रही है.

ब्लॉगः निर्मल यादव

संपादनः अनवर जे अशरफ

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