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जरूरत यूरोपीय इस्लाम की

१७ जनवरी २०१५

पेरिस के आतंकवादी हमले के बाद से इस्लाम के हिंसा से संबंध पर खूब बहस हो रही है. लेकिन डॉयचे वेले के लॉय मुधून कहते हैं कि ये बहस यूरोप में इस्लाम के समेकन की उपलब्धियों से ध्यान भटकाती है.

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तस्वीर: picture-alliance/Frank Rumpenhorst

पेरिस में हुए बर्बर हमले ने जाहिर तौर पर कई लोगों को एक बार फिर यह सवाल उठाने का मौका दिया है कि क्या इस्लाम अमानवीय है और हिंसा का महिमामंडन करता है. क्या इस वैश्विक धर्म की किताबों में जिहादियों के हिंसक बर्ताव को सही ठहराने वाली कोई बात है? एक और अहम बात, क्या जर्मनी में मुसलमानों का समेकन विफल रहा है.

ये सवाल लाजिमी हैं, लेकिन ये मुख्य बिंदु को नहीं छूते. मतलब यह कि हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या इस्लाम हमारी आधुनिक दुनिया में और हमारे लोकतांत्रिक व उदारवादी समाज के मूल्यों के साथ तालमेल बैठा पा रहा है या नहीं. अभी तक यह बात साफ हो जानी चाहिए कि स्थिर या एक इस्लाम जैसी कोई चीज नहीं है. मुसलमान दुनिया में कभी भी धर्म के आधार पर कोई विशाल खंड नहीं बनाते हैं.

हर मुस्लिम देश इस्लाम को अलग रूप में लेता है. कड़ा वहाबी सऊदी अरब शिया बहुल ईरान से पूरी तरह अलग है. आर्थिक रूप से सफल कई मुस्लिम देश जैसे तुर्की और मलेशिया भले ही रुढ़िवादियों के प्रभाव में हों लेकिन व्यावहारिक मुसलमान वहां की मुख्य धारा हैं. लिहाजा ये मुसलमानों ने खुद तय किया है कि वो किसे इस्लामिक कहते हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कहां और कब के हैं. ज्यादातर मुसलमान सुन्नी हैं, जिनके धर्म में कोई वरीयता क्रम और केंद्रीय प्रशासनिक व्यक्ति नहीं है, जैसे कैथोलिक चर्च में पोप. इस बात को ध्यान में रखते हुए हमें पेरिस हमले के मद्देनजर ये सवाल पूछना चाहिए कि हम यूरोप में किस तरह का इस्लाम देखना चाहते हैं?

Loay Mudhoon
लॉय मुधूनतस्वीर: DW

उपलब्धियां

भावुक और विवादपूर्ण बहसों के बीच इस बात का खतरा है कि हम बीते कुछ सालों की उपलब्धियों को कहीं नजरअंदाज न कर दें. 2005 में शुरू हुई जर्मन इस्लामिक कॉन्फ्रेंस हमारे आजाद और लोकतांत्रिक समाज में इस्लाम का समेकन करना चाहती है. इसके जरिए जर्मनी की इस विचारधारा में बदलाव आया है कि कोई देश कैसे बनता है.

कॉन्फ्रेंस की आलोचनाओं के बावजूद मुसलमानों और सरकार के बीच खुली बहस ने दोनों पक्षों के नजरिए को मूल रूप से बदला है. इसने इस्लाम को जर्मनी में ज्यादा स्वीकार्य बनाया है. हालांकि पॉपुलिस्ट गुट इस्लाम का उपयोग या दुरुपयोग डर फैलाने के लिए कर रहे हैं, इसे पचा पाना मुश्किल है. समेकन की सक्रिय नीति की उपलब्धियों को खारिज नहीं किया जा सकता.

हमने जर्मनी के कुछ राज्यों में स्कूलों में इस्लामी शिक्षा और कुछ यूनिवर्सिटियों में थियोलॉजी की डिग्रियों के पाठ्यक्रम शुरू होते हुए देखे हैं. जाहिर तौर पर दोनों इस्लाम के मौलिक यूरोपीय संस्करण की नींव तैयार करने मदद करेंगे. ऐसा संस्करण जो लोकतांत्रिक सिस्टम के साथ फिट बैठेगा और इस्लाम को आयात किये गए धर्म की छवि से बाहर निकालेगा. इस्लाम हमेशा से समय की संतान रहा है और इस्लामिक थियोलॉजी राजनैतिक शक्ति की उपज रही है. सरकारों और समाज को इस्लाम के यूरोपीयकरण की प्रक्रिया तेज करनी चाहिए. पेरिस का आतंकवादी हमला दिखाता है कि इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है.