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इस्लामी क्रांति का लंबा साया

११ फ़रवरी २०१४

35 साल पहले शाह रजा पहलवी को अपदस्थ कर उनकी पुलिस सरकार का सूर्यास्त हो चुका था. लेकिन राजशाही की जगह ली तानाशाही ने और अयातोल्लाह खोमैनी ईरान के सबसे ताकतवर नेता बन गए.

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तस्वीर: rouydadnews.org

2013 में हसन रोहानी के राष्ट्रपति बनने के बाद ईरान की राजनीतिक भाषा भी बदल रही है. धार्मिक नेता रोहानी ईरान की राजनीति में नर्मी लाना चाहते हैं. वह पश्चिमी देशों के साथ सहयोग, परमाणु विवाद में प्रगति और ईरानी जनता के लिए और अधिकारों की बात करते हैं. पश्चिमी देश रोहानी का साथ देना तो चाहते हैं लेकिन उन्हें पता है कि रोहानी शायद अपने वादों का छोटा सा हिस्सा ही कार्यान्वित कर सकेंगे. ईरान की राजनीतिक पृष्ठभूमि में रोहानी कमजोर नजर आते हैं. कदम कदम पर उन्हें वरिष्ठ कानूनी सलाहकारों की राय लेनी पड़ती है. यह बात ईरानी संविधान में तय है, जो अयातोल्लाह खोमैनी के सिद्धांतों पर आधारित है.

शाह का अंत

क्रांति की शुरुआत में यह बात साफ नहीं थी कि देश का भविष्य कैसा होगा. 1978 और 1979 में हर तरह के लोगों ने शाह का विरोध किया. इनमें वामपंथी, देशभक्त, उदारवादी और धार्मिक गुट शामिल थे. "शाह को जाना होगा," इस नारे के साथ लोग एक ऐसे शासक को भगाना चाहते थे जो अंतरराष्ट्रीय तौर पर अमेरिका की कठपुतली था और अपने देश में तानाशाह. इस बीच गरीबों और अमीरों में फासले बढ़ते गए. लाखों लोग गरीबी की सीमा के नीचे रह रहे थे.

आखिरकार शाह से परेशान मध्यवर्ग ने विरोध की शुरुआत की. ईरानी प्रचारक बहमन निरुमंद का कहना है, "तेल की बिक्री ने ईरान को एक अहम देश बना दिया था. शहरों में एक बड़ा मध्यवर्ग बनने लगा जो राजनीति में और अधिकार चाहने लगा." यह लोग एक उदारवादी और आजाद ईरान चाहते थे. लोगों ने अपने विरोध प्रदर्शनों में पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद मोसादेग की तस्वीरों के पोस्टर बनाए. 1953 में मोसादेग की सरकार को अमेरिका की मदद से अपदस्थ किया गया था.

ईरान की क्रांति में इस्लामी कट्टरपंथी बाद में शामिल हुए. जर्मनी के एरलांगेन विश्वविद्यालय के रजा हजतपुर कहते हैं, "खोमैनी शाह के सबसे बड़े धार्मिक आलोचकों में से थे." उस वक्त खोमैनी पैरिस से शाह के खिलाफ मुहिम चला रहे थे. वे गरीबों की मदद करना चाहते थे लेकिन वह चाहते थे कि ईरान में अमीर पश्चिमी देशों की बर्बाद जीवनशैली की नकल करना बंद करें. वह एक सांस्कृतिक बदलाव चाहते थे. ईरानियों ने उनकी बात सुनी. निरुमंद कहते हैं कि लोगों को उस वक्त लगा कि गणतंत्र और इस्लाम दोनों अच्छे शब्द हैं, क्योंकि ईरान तो इस्लामी देश है. लेकिन उस वक्त किसी को नहीं पता था कि देश का इस्लामीकरण होने वाला है.

आजादी का छोटा वसंत

Bildergalerie Iran Revolution von 1979
तस्वीर: tarikhirani.ir

शुरुआत में तो ऐसा लगा जैसे इस्लामी नेता और उदारवादी कार्यकर्ता मिलकर काम करेंगे. 1 फरवरी 1979 में खोमैनी पैरिस से वापस आए. चार दिनों बाद उदारवादी मेहदी बजरगन को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया. रजा हजतपुर कहते हैं, "लेकिन उसी वक्त साफ हो गया था कि धार्मिक नेताओं और उदारवादियों के बीच मतभेद था." खोमैनी के समर्थकों ने शाह का सहयोग करने वाले लोगों को हिंसक तरीके से खत्म किया और एक कट्टरपंथी इस्लामी समाज के लिए आधार बनाने लगे. ईरानी जनता ने नए इस्लामी संविधान को बहुमत से पारित किया. संविधान ने अयातोल्लाह को व्यापक ताकत दी.

वामपंथी और उदारवादी नेताओं के पास अयातोल्लाह के विरोध के लिए खास विकल्प नहीं थे. जनवरी 1980 में लोगों ने अबुलहसन बनीसद्र को अपना राष्ट्रपति चुना. खोमैनी बनीसद्र के पक्ष में नहीं थे और बनीसद्र ने भी बार बार लोगों को कट्टरपंथी तानाशाही के खिलाफ चेतावनी दी. बहमन निरुमंद याद करते हैं, "फैसला ईरान इराक युद्ध के साथ आया." खोमैनी के मुताबिक, यह लड़ाई जन्नत की देन थी.

1980 में अमेरिका के समर्थन के साथ इराकी शासक सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला किया. आठ सालों तक चले युद्ध में 10 लाख लोगों की मौत हुई. लेकिन निरुमंद के मुताबिक ईरान के नेतृत्व पर सवालों के जवाब भी मिल गए. राष्ट्रपति बनीसद्र को सरहद पर शिकस्त का जिम्मेदार बनाया गया और 21 जून 1981 में पद से हटा दिया गया. अब खोमैनी के लिए रास्ता खाली था.

देश से बड़ा धर्म

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तस्वीर: bachehayeghalam.ir

एक के बाद एक कत्ल का सिलसिला शुरू हुआ. उदारवादी, वामपंथी, शाह के समर्थक और विरोधी, इनका या तो पीछा किया गया, जेल में बंद कर दिया गया या फिर इनकी हत्या कर दी गई. नए राष्ट्रपति मुहम्मद अली राजाई ने पद संभाला लेकिन 28 दिन बाद ही बम हमले के शिकार बने. सैयद अली खमेनेई बने देश के नए राष्ट्रपति और अयातोल्लाह खोमैनी के बाद वे नए अयातोल्लाह बन गए.

ईरानी क्रांति के बाद राजनीतिक ढांचा कम ही बदला है. आज भी धार्मिक नेताओं का बोल बाला है. खमेनेई की ताकत देखी जाए तो राष्ट्रपति रोहानी कम ही बदल सकते हैं. लेकिन रजा हजतपुर कहते हैं कि खमेनेई पहले अयातोल्लाह खोमैनी के मुकाबले उतने करिश्माई नहीं हैं. "ईरान में इस्लामी गणतंत्र की सोच अब इतनी बड़ी भूमिका नहीं निभाती. आजकल सोच व्यावहारिक हो गई है." यह बात रोहानी की राजनीति में भी दिखती है. "उनके साथ अब कोशिश यह हो रही है कि पिछले सालों में जो देश के अंदर और बाहर खराब हुआ है, उसे दोबारा नियंत्रण में करना. लोग बदलाव चाहते हैं लेकिन अब बात जनता और धर्म के बीच नहीं है." ईरान में भी परेशानी बाकी सब देशों जैसी है. एक तरफ वह हैं जिनपर आर्थिक प्रतिबंधों और बेरोजगारी का बुरा असर पड़ रहा है और एक तरफ वह लोग हैं जो वर्तमान ढांचे में भी फल फूल रहे हैं.

रिपोर्टः थोमास लाचान/एमजी

संपादनः महेश झा

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