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इलेक्ट्रो शॉक से कैंसर को मात

२० जून २०१३

ट्यूमर को इलेक्ट्रिक शॉक देकर कैंसर का इलाज किया जा सकता है क्या? कैंसर की कोशिकाओं को हाइ वोल्टेज करेंट के छोटे लेकिन गहन झटके देकर अलग बगल की कोशिकाओं को बचाने और कैंसर सेल को खत्म करने में सफलता मिलती दिख रही है.

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तस्वीर: BayerHealthcare

ऑपरेशन बहुत साधारण सा है. डॉक्टर मरीज के शरीर में एक लंबी पतली सूई डालता है. उसके बाद वह बगल में रखे मोनीटर को देखता है. वहां वह सूई एक एक्सरे तस्वीर में साफ साफ दिखती है, उसके बाद एक एक्सरे मशीन, आम तौर पर कम्प्यूटर टोमोग्राफी मशीन के नीचे ऑपरेशन होता है. इस तरह से डॉक्टर सूई को सुरक्षित तरीके से लक्ष्य तक ले जा सकता है, यानि लीवर के ट्यूमर तक. अब तक यह सूई इमर्सन हीटर की तरह काम करती है. जैसे ही सूई की नोक ट्यूमर में जाती है, वह कुछ समय के लिए गर्म हो जाता है और कैंसर के सेल मर जाते हैं.

लेकिन इस तरीके में कुछ खामियां भी हैं. रेगेंसबुर्ग यूनिवर्सिटी क्लीनिक के एक्सरे विभाग के प्रमुख क्रिस्टियान श्ट्रोस्चिंस्की कहते हैं, "कभी कभी मुश्किलें खड़ी हो सकती है, खासकर तब जब ट्यूमर रक्त वाहिकाओं या पेट जैसे ऑर्गन के करीब हो." तब सूई की गर्मी सिर्फ कैंसर सेल को ही नहीं, बल्कि स्वस्थ पड़ोसी कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकती है. (सिरके से कैंसर का इलाज)

गर्मी के बदले हाई वोल्टेज

डॉक्टर अब एक नई विधि पर काम कर रहे हैं, जिसे इर्रिवर्सिबल इलेक्ट्रोपोरेशन कहते हैं. उसमें भी पतली सूईयों का इस्तेमाल होता है, लेकिन यह इमर्सन हीटर की पद्धति से काम नहीं करता. गर्मी के बदले इसमें डॉक्टर हाई वोल्टेज करेंट भेजते हैं. श्ट्रेस्चिंस्की कहते हैं, "हम अधिकतम छह सूईयां सीधे ट्यूमर में डालते हैं और कैंसर सेलों को इलेक्ट्रो शॉक देते हैं. इसकी वजह से कैंसर के सेल टूट जाते हैं और बाद में शरीर द्वारा साफ कर दिए जाते हैं."

Eierstockkrebs
तस्वीर: dpa/PA

चूंकि कैंसर के सेलों में बहुत ही ज्यादा पानी होता है, उन पर इलेक्ट्रो शॉक का असर स्वस्थ सेलों से ज्यादा होता है. उम्मीद की जा रही है कि इसकी वजह से इस विधि में ट्यूमर को लक्षित तरीके से और पड़ोसी सेलों को नुकसान पहुंचाये बिना नष्ट किया जा सकता है. क्रिस्टियान श्ट्रोस्चिंस्की ने लीवर कैंसर वाले 35 मरीजों पर इस विधि का इस्तेमाल किया है. "पहले नतीजे दिखाते हैं कि यह विधि सफल है, और इसमें जोखिम भी कम है." (शैवाल से कैंसर का इलाज)

लंबा अनुभव नहीं

अब तक इस विधि को जर्मनी के गिने चुने केंद्रों में मुख्य रूप से लीवर के ऐसे ट्यूमरों के इलाज के लिए आजमाया जा रहा है, जिनका ऑपरेशन करना संभव नहीं है. लेकिन यदि इर्रिवर्सिबल इलेक्ट्रोपोरेशन यदि सफल रहता है तो इसकी मदद से प्रोस्टेट और पैंक्रियास का इलाज भी किया जा सकता है.

सवाल सिर्फ यह है कि क्या इलेक्ट्रो शॉक विधि से कैंसर पर सचमुच जीत हालसिल की जा सकती है या वह दोबारा लौटकर वापस आ सकता है. अब तक विशेषज्ञ इसके बारे में जवाब देने की हालत में नहीं हैं. श्ट्रेस्चिंस्की कहते हैं, "हम उम्मीद तो कर रहे हैं, लेकिन हमें इलाज की दूसरी विधियों के साथ तुलना के लिए कुछ इंतजार करना होगा." हीटिंग के मुकाबले इलेक्ट्रो शॉक का एक नुकसान तो है. साइड इफेक्ट को रोकने के लिए यह इलाज बेहोश कर कृत्रिम सांस देकर किया जाता है.

रिपोर्ट: फ्रांक ग्रोटेलुशेन/एमजे

संपादन: निखिल रंजन