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इबोला इलाकों में क्लोरीन सबसे अच्छा साथी

९ अक्टूबर २०१४

इबोला के खिलाफ संघर्ष में कमी धन की नहीं बल्कि प्रशिक्षित कर्मियों की है. डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ब्रसेल्स में इबोला से संक्रमित लोगों की मदद की ट्रेनिंग दे रहा है. फाबिएन डे लेवाल इस प्रोग्राम की प्रभारी हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP Photo/D. Stinellis

डीडब्ल्यू: डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संगठन ने चेतावनी दी थी कि यदि इवोला के वायरस का मुकाबला नहीं किया जाता है तो यह लड़ाई जीती नहीं जा सकती. इबोला से प्रभावित इलाकों के लिए राहतकर्मियों को खोजना कितना मुश्किल है?

फाबिएन डे लेवाल: डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संगठन के अंदर इसकी कोई समस्या नहीं है. हमारे पास पर्याप्त वॉलंटीयर हैं. समस्या यह है कि हमारे पास पर्याप्त प्रशिक्षित वॉलंटीयर नहीं हैं. मेरा मतलब डॉक्टरों, नर्सों, पीने के पानी और गंदगी की निकासी के विशेषज्ञों से है जो इबोला प्रभावित इलाकों में होने वाले काम से परिचित हों. आम तौर पर इबोला की महामारी छोटा समय के लिए होती है, इसलिए अब तक हम हमेशा डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुभवी कर्मियों के साथ काम करने की स्थिति में थे. लेकिन अब यह महामारी इतनी बड़ी हो गई है कि हमारे पास पर्याप्त कर्मी नहीं हैं. अब हम हर हफ्ते करीब 40 वॉलंटीयरों को प्रशिक्षण दे रहे हैं ताकि वे इबोला प्रभावित इलाकों में काम कर सकें.

प्रशिक्षण किस तरह होता है?

मुख्य रूप से यह बताया जाता है कि इबोला के मरीजों की हेल्थ सेंटर पर कैसे देखभाल की जाए. दो दिनों में हम इबोला महामारी के सभी पहलुओं का प्रशिक्षण देते हैं, मनोवैज्ञानिक मदद, चिकित्सकीय देखभाल, दूसरे लोगों के साथ सम्पर्क, सुरक्षा के कदम. स्वाभाविक रूप से हम सिर्फ इन मुद्दों को छू भर सकते हैं.

Fabienne de Leval
फाबिएन डे लेवालतस्वीर: Ärzte ohne Grenzen

सबसे अहम सूचना क्या है जो आप प्रशिक्षण में भाग लेने वालों को देते हैं?

पहली बात जो हम अपने भागीदारों को बताते हैं, वह यह है कि वे अपनी सुरक्षा का ख्याल रखें. यह दूसरी बीमारियों में अलग है. लेकिन यहां राहतकर्मियों को पहले अपने स्वास्थ्य के बारे में सोचना होगा. इसलिए हम सेमिनार में संक्रमण के बारे खास तौर पर चर्चा करते हैं. जब वे थके हों, कमजोरी महसूस करें, तो राहतकर्मियों को खुल कर कहने की हिम्मत होनी चाहिए कि वे उस दिन काम नहीं करेंगे.

राहतकर्मियों को तैनाती के दौरान किन बातों का ध्यान रखना पड़ता है?

दूसरी बात जो हम बताते हैं वह यह है कि क्लोरीन तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त है. इबोला के इलाकों में कोई सुरक्षा नहीं है. एकमात्र चीज जो तुम्हारे पास है, वह क्लोरीन है. जब भी तुम किसी चीज को या इंसान को छूते हो तो तुरंत हाथ या शरीर के उस हिस्से को क्लोरीन के पानी से धो लो.

इबोला प्रभावित इलाके में काम करने का राहतकर्मियों के मनःस्थिति पर क्या असर होता है?

उन इलाकों में हर कहीं मौत का कहर है. इसका मन पर बहुत बोझ पड़ता है. वैसे तो हम लोगों का जीवन बचाने की कोशिश करते हैं. हम इबोला के इलाके में जाते हैं और जानते हैं कि वहां हमारी मदद के बावजूद बहुत से लोगों की जान चली जाएगी. शायद हम कुछ लोगों को बचा पाएं, लेकिन मुख्य रूप से यह महामारी को फैलने से रोकने की कोशिश करते हैं और हमारा प्रयास होता है कि लोग सम्मान के साथ मर सकें. इसे सहना भी आसान नहीं. एक मुश्किल यह भी है कि सुरक्षा ड्रेस भावनाओं की अभिव्यक्ति को रोकता है. जब कोई रोता है तो डॉक्टर उसे अपनी बाहों में नहीं ले सकता, बीमार छोटे बच्चे को राहतकर्मी सहला नहीं सकता और सांत्वना नहीं दे सकता जैसा कि आम तौर पर होता है. भावना की इन सब अभिव्यक्तियों के बारे में राहतकर्मियों को नए ढंग से सोचना पड़ता है.

दिन भर के काम के बाद हालत कैसी होती है?

इबोला हेल्थ सेंटर में हमारा नियम यह है कि राहतकर्मी एक दूसरे को भी नहीं छूते. जब वे काम से वापस आते हैं तो वे बस आराम नहीं कर सकते और एक दूसरे की बाहों में नहीं गिर सकते. यह राहतकर्मियों के लिए बहुत तनाव का समय होता है. लेकिन यह संक्रमण से बचने की एकमात्र संभावना है.

ट्रेनिंग में कौन से लोग भाग लेते हैं?

ट्रेनिंग में भाग लेने वाले लोग सारी दुनिया से आते हैं. हमारे हेल्थ सेंटर में डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के करीब 90 देशों के राहतकर्मी हैं. इसके अलावा हम दूसरे संगठनों के लोगों को भी ट्रेनिंग दे रहे हैं. मसलन ब्रिटिश राहत संगठन इंटरनेशनल मेडिकल कॉर्प्स, रेड क्रॉस, सेव द चिल्डरेन के अलावा संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों को भी.

इस तरह की ट्रेनिंग का आयोजन एक निजी संस्था द्वारा क्यों ?

यह सही है कि यह ट्रेनिंग दरअसल हमारी जिम्मेदारी में शामिल नहीं है. असल में हम हम सीधे फील्ड में काम करते हैं. लेकिन इबोला का इलाज करने की जानकारी सिर्फ हमारे पास है और हमें यह भी पता है कि महामारी को अकेले नहीं रोक पाएंगे. इसीलिए अपनी जानकारी को उन संगठनों को आगे देना हमारा काम है जो इन इलाकों में जाते हैं.

क्या सरकारों से आपको पर्याप्त मदद मिल रही है?

हालांकि अच्छी वित्तीय मदद मिल रही है, मिसाल के तौर पर अमेरिका ने लाइबेरिया में सारे हेल्थ सेंटर बनाए हैं, लेकिन प्रशिक्षित कर्मियों के बिना काम नहीं चल सकता. पिछले दिनों मैंने एक बार फिर सुना कि पैसे की कमी नहीं है, ऐसे लोगों की कमी है जिन्हें पता हो कि बीमारी का इलाज कैसे किया जाता है और संक्रमित लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है.

भविष्य की क्या योजना है?

हमारे पास काम की कमी नहीं है. प्रशिक्षण की जितनी मांग है उसे हम पूरा करने की हालत में नहीं हैं. यहां तक कि डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के कर्मियों के लिए भी हमारे पास पर्याप्त जगह नहीं है. प्रशिक्षण के लिए सारी दुनिया में मांग है, गैरसरकारी संगठनों के अलावा मंत्रालयों और सेना से. सब ट्रेनिंग के बारे में पूछते हैं, लेकिन हमारे पास जगहों की कमी है. हम ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग देने की कोशिश कर रहे हैं, इसके अलावा हम दूसरे संगठनों को भी प्रशिक्षित करना चाहते हैं ताकि वे भी राहतकर्मियों को ट्रेनिंग दे सकें. लेकिन इसमें सावधान रहने की भी जरूरत है, इबोला के मामले में गलत समझी गई बात जानलेवा साबित हो सकती है.

और कौन सी पहलकदमियां हैं?

अमेरिकी स्वास्थ्य संस्था सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन कंट्रोल सीडीसी ने सितंबर में अटलांटा में पायलटों की ट्रेनिंग शुरू की है. उससे पहले वे हमारे पास आए और हमने उन्हें अपने प्रशिक्षण के बारे में जानकारी दी. अब डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के ट्रेनर अटलांटा में हैं, संभवतः वे भी अगली ट्रेनिंग में मदद करेंगे. विचार यह है कि अटलांटा में भी वैसा ही सिमुलेशन सेंटर बने जैसा यहां है.

इंटरव्यू: कातरीना कुइन

मनोवैज्ञानिक फाबिएन डे लेवाल ब्रसेल्स में डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के लिए काम करती हैं. उन्होंने इबोला प्रभावित इलाकों में काम करने वाले राहतकर्मियों के लिए ट्रेनिंग का कोर्स तैयार किया है.