इतिहास में आज: 14 जनवरी
१३ जनवरी २०१५अलबर्ट श्वाइत्सर ने दर्शन और थीयोलॉजी की पढ़ाई स्ट्रासबुर्ग, पेरिस और बर्लिन की यूनिवर्सिटी में की. एक पादरी के रूप में काम करने के बाद उन्होंने मेडिकल स्कूल में दाखिला लिया. इस ट्रेनिंग के बाद वह अफ्रीका में धर्म-प्रचारक बनना चाहते थे. श्वाइत्सर को संगीत की भी खूब समझ थी और वे अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए कॉन्सर्ट में संगीत आयोजन कर पैसे कमाया करते थे. जब तक उनकी मेडिकल की पढ़ाई पूरी हुई और एमडी की डिग्री मिली, उनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी थीं. इनमें ईसा मसीह पर उनकी प्रसिद्ध किताब 'दि क्वेस्ट' और संगीतकार योहान सेबास्टियन बाख पर लिखी एक किताब भी शामिल हैं.
मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर श्वाइत्सर अपनी पत्नी समेत अफ्रीका चले गए. लैम्बारिनी में उन्होंने एक अस्पताल की स्थापना की. कुछ ही समय बाद प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया. जर्मनी में पैदा हुए श्वाइत्सर को युद्ध बंधक के रूप में एक फ्रेंच नजरबंदी कैंप में भेज दिया गया. 1918 में वहां से छोड़े जाने के बाद वे 1924 में लैम्बारिनी वापस लौटे. अगले तीन दशकों तक वह यूरोप भर में जगह जगह संस्कृति और नैतिकता के विषयों पर भाषण देते रहे. उनका दर्शन एक मूल सिद्धांत पर आधारित था और वह इसे "जीवन के सम्मान" का सिद्धांत कहते थे. विचार यह था कि हर जीवन को सम्मान और प्यार मिलना चाहिए. सभी इंसानों को ब्रह्मांड और उसकी सभी कृतियों के साथ व्यक्तिगत और आध्यात्मिक संबंध रखना चाहिए. श्वाइत्सर के अनुसार जीवन के प्रति श्रद्धा रखने से सभी इंसान अपने आप एक ऐसा जीवन जीने लगेंगे जो दूसरों की सेवा में समर्पित होगा.
अफ्रीका में मरीजों की सेवा के दौरान उन्होंने कुष्ठ और दूसरे कई तरह के खतरनाक रोगों का इलाज किया. 1952 में अपने इन्हीं कामों के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इनाम की राशि का इसतेमाल भी उन्होंने कुष्ठरोगियों की बेहतरी के लिए ही किया. 1950 से लेकर 1965 में अपने देहांत तक श्वाइत्सर न्यूक्लियर टेस्ट और न्यूक्लियर हथियारों के विरूद्ध लिखते रहे.