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इतिहास में आज: 12 जून

समरा फातिमा११ जून २०१३

"क्या कोई भी, यहूदी या गैर यहूदी, कभी यह बात समझेगा कि मैं एक लड़की हूं जो सिर्फ जिंदगी को जिंदादिली से जीना चाहती है?" ऐसे भावों से भरी ऐन फ्रैंक की मशहूर डायरी उसके 13वें जन्मदिन पर 1942 में आज ही के दिन मिली थी.

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तस्वीर: picture-alliance

इस डायरी को ऐन फ्रैंक ने तब लिखा था जब उनका परिवार एम्सटरडैम में नाजियों से छिप कर रह रहा था. 60 से ज्यादा भाषाओं में छपने वाली आने फ्रैंक की डायरी दुनिया की कुछ सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से एक है. इस डायरी में उन्होंने उन दिनों के बारे में लिखा है जब द्वितीय विश्व युद्द के दौरान उनके परिवार को उनके पिता के ऑफिस के ऊपरी हिस्से में नाजियों से छिप कर दो साल तक रहना पड़ा. फ्रैंक की इस डायरी पर कई नाटक और फिल्में भी बनाई जा चुकी हैं. दुनिया की कुछ सबसे चर्चित किताबों में से एक ऐन फ्रैंक की डायरी इस छोटी लड़की और उसके अनुभवों की कहानी सुनाती है.

ऐन फ्रैंक का जन्म फ्रैंकफर्ट में हुआ था. लेकिन 1933 में नाजियों के जर्मनी पर कब्जा कर लेने पर उनका परिवार नीदरलैंड के शहर एम्सटरडैम चला गया. 1942 में वहां भी नाजियों का प्रभाव बढ़ने पर जान बचाने के लिए तक उनका परिवार तहखाने में छिप कर रहने लगा, जहां कुछ दोस्तों के जरिए उन्हें खाने पीने और जरूरी चीजों की मदद मिलती थी. लेकिन यह राज बहुत देर छुप नहीं सका और वे ढूंढ लिए गए. यहां से उन्हें आउश्विट्ज यातना शिविर भेज दिया गया. 1945 में आने और उनकी बहन मार्गोट की यातना शिविर में ही मौत हो गई.

Buchcover Die Tagebücher der Anne Frank
तस्वीर: S. Fischer Verlag

युद्ध खत्म होने पर परिवार के इकलौते जीवित सदस्य आने फ्रांक के पिता ओटो फ्रैंक को एम्सटरडैम लौटने पर आने की डायरी मिली. 1947 में उनकी कोशिशों से उसकी पहली प्रति डच भाषा में छपी. इस डायरी में 1942 से 1944 तक के ऐन फ्रैंक के जीवन की कहानी है. उनके घर को ऐन फ्रैंक म्यूजिम में बदल दिया गया है. एम्सटरडैम जाने वाले अक्सर ऐन फ्रैंक म्यूजियम में जाकर उन दिनों के दर्द को महसूस करते हैं.

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