1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

इतिहास में आजः 23 अगस्त

२३ अगस्त २०१३

बात 2013 की है जब एक बहादुर लड़की अपने अपहरणकर्ता के चंगुल से निकल भागी. 2006 में 23 अगस्त का दिन था जब ऑस्ट्रिया की नताशा काम्पुश आठ साल बाद वोल्फगांग प्रिकलोपिल के बंधन से भागने में सफल रही.

https://p.dw.com/p/19Ufx
तस्वीर: picture-alliance/dpa

10 साल की नताशा 2 मार्च 1998 को स्कूल जाने के लिए घर से निकली लेकिन न तो स्कूल पहुंची न घर लौटी. इसके बाद 776 गाड़ियों की तलाशी ली गई, जिसमें उनके अपहर्ता का वैन भी शामिल था. पुलिस को प्रिकलोपिल ने बताया कि वह घर में निर्माण के दौरान निकल रहे कचरे को फेंकने के लिए इस गाड़ी का इस्तेमाल करता है.

18 साल की नताशा एक दिन वैक्यूम क्लीनर से कार साफ कर रही थी कि अचानक उसके अपहर्ता का मोबाइल बजा. क्लीनर की आवाज ज्यादा होने के कारण वह थोड़ी दूर चला गया. इस दौरान नताशा कांपुश वहां से भाग निकली. पांच मिनट बाद उसने एक घर का दरवाजा खटखटा कर कहा कि वो नताशा कांपुश है और पुलिस को फोन करो. इसके बाद उन्हें पास के थाने ले जाया गया.

Filmstill 3096 von Sherry Hormann über die Entführung von Natascha Kampusch.
नताशा के जीवन पर बनी फिल्मतस्वीर: 2013 Constantin Film Verleih GmbH/Jürgen Olczyk

हालांकि उनकी तबीयत ठीक थी लेकिन 18 साल की उम्र में वजन सिर्फ 48 किलो था और उनकी लंबाई आठ साल में सिर्फ 15 सेंटीमीटर बढ़ी. बाद में नताशा कांपुश ने कुछ टीवी चैनलों को इंटरव्यू दिए और आत्मकथा लिखी. "3,096 दिन" नाम की किताब सितंबर 2010 में प्रकाशित हुई और इस पर फिल्म भी बनी.
रिपोर्टों के मुताबिक जब पुलिस ने नताशा को अपहरणकर्ता के मारे जाने की खबर दी तो वह फूट फूट कर रोई. कई बार पीड़ितों को अपहरणकर्ताओं से सहानुभूति हो जाती है. इसे स्टॉकहोम सिन्ड्रोम कहते हैं.

एएम/एजेए