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इतिहास में आजः 2 जनवरी

२ जनवरी २०१४

जिस आम आदमी का सपना आज की दिल्ली में पूरा हुआ दिखता है, 1989 में आज ही के दिन उसी दिल्ली के आम आदमी का सपना क्रूरता से कुचल दिया गया था. नाम है, सफदर हाशमी.

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तस्वीर: DW/S. Petersmann

अद्भुत कलाकार, शानदार इंसान और समाज के दंभ पर हल्ला बोलने की ताकत रखने वाले हाशमी को एक राजनीतिक पार्टी के समर्थकों ने 1989 के नए साल के मौके पर बड़ी बेरहमी से पीटा. एक जनवरी को दिल्ली के पास हुई घटना में हाशमी को इतनी चोट आई कि उनका शरीर बर्दाश्त नहीं कर पाया और अगले दिन यानी दो जनवरी, 1989 को उन्होंने दम तोड़ दिया पर हाशमी की सोच आज भी जिंदा है.

दिल्ली में ही पैदा हुए हाशमी तब सिर्फ 34 साल के थे. बला के क्रांतिकारी और हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल. समाज में घुले अपराधों और भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह उनकी आवाज गूंजती, वैसे ही जन नाट्य मंच के थियेटर शो भी. उन्होंने 19 साल में यह ग्रुप बना डाला और 1976 में सीपीएम में शामिल हो गए.

Safdar hashmi Indien Aktivist
सफदर हाशमी की यादतस्वीर: cc-by-Viplovecomm

दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इंग्लिश में एमए करने के बाद हाशमी ने कहीं पैसे वाली नौकरी करने से ज्यादा समाज की बुराइयों पर तंज करने का फैसला किया. थियेटर के अलावा उन्होंने कविताएं भी लिखीं और स्केच भी बनाए.

वह अपने नाटकों में उसी आम आदमी का जिक्र करते थे, जिनका नाम अब आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल लिया करते हैं. आम आदमी के दर्द को हाशमी के थियेटरों में जिस बेचैनी से उठाया जाता, लोग मंत्रमुग्ध हो जाते. सफेद टोपी लगाए, बगल में रूल दबाए सफदर हाशमी की एक तस्वीर आज भी जेहन में कौंधती रहती है. यह उनका करिश्माई अंदाज ही था कि न सिर्फ उनके नाटकों को चाहने वाले, बल्कि उनसे एक बार भी मुलाकात करने वालों के लिए सफदर दिल में बस जाते.

औरत, गांव से शहर तक, राजा का बाजा होते हुए जब उनके थियेटर का सफर नुक्कड़ नाटक हल्ला बोल पर पहुंचा, तो सफदर ने इसे गाजियाबाद नगर निगम चुनाव के वक्त प्रस्तुत करने का फैसला किया. 1 जनवरी, 1989 को वह इसे साहिबाबाद के झंडापुर गांव में जब पेश कर रहे थे, तभी एक राजनीतिक दल के समर्थकों ने उन पर हमला बोल दिया. नुक्कड़ नाटक अधूरा छूट गया. सफदर बुरी तरह घायल हुए और अगले दिन दो जनवरी, 1989 को उन्होंने दम तोड़ दिया.

सफदर की पत्नी मालाश्री हाशमी ने उनकी मौत के दो दिन बाद चार जनवरी को फिर झंडापुर गांव का रुख किया और तीन दिन पहले के अधूरे नुक्कड़ नाटक को पूरा किया.