इंसानों की ही तरह मक्का खाता है भालू
२० जुलाई २०१६पहाड़ी जंगल में भालुओं का घरौंदा लगातार छोटा होता जा रहा है. उनकी तादाद इतनी कम हो गई है कि उनके जीने के तरीके के बारे में जानना भी मुश्किल हो गया है. रोक्साना रोखास एक ऐसे प्रोजेक्ट की लीडर हैं जो भालुओं की जीवनशैली पर रिसर्च कर रहा है. हाल के सालों में इन पहाड़ों में कम ही लोगों को भालुओं के दर्शन हुए हैं. लेकिन उनके निशान मिलते रहे हैं. जिन रास्तों पर उनके निशान मिले हैं, रोक्साना वहां कैमरे लगा देती हैं, ताकि बाद में वीडियो की मदद से ही उन्हें देख सकें. हालांकि भालू का फुटेज मिलना किस्मत की ही बात है.
पेड़ों और जंगल के आसपास के खेतों में भालू के निशानों को देख कर रोक्साना उनकी आदतों के बारे में बताती हैं, "वह इंसानों की ही तरह मक्का खाते हैं. पहले हाथों का इस्तेमाल करते हैं और फिर पंजों की मदद से बाली बाहर निकाल लेते हैं. कभी कभी वह मक्के की बाली को छोड़ भी देते हैं. लेकिन यहां बालियां खाली हैं. भालू ने सब कुछ खा लिया है, पूरी तरह."
मक्के के खेत से आ रही खुशबू को इलाके में मिलन वाले हातून भालू को अपनी ओर खींच लेती है और वह खेतों में आ कर अपना पेट भर लेता है. इसका नुकसान वहां के किसानों को उठाना पड़ता है. हातून भालूओं से मक्के के खेतों की रक्षा करने के लिए रोक्साना मिर्च का इस्तेमाल करती हैं.
अगली बार जब हातून यहां आएगा तो उसे खेत से जली हुई मिर्च की गंध मिलेगी जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर सकेगा. लेकिन लोगों को पता है कि हातून लंबी लंबी दूरियां तय करता है. यहां से भगाया जाएगा, तो उसे मक्के का कोई और खेत मिल जाएगा.
किसानों के साथ मिलकर रोक्साना और उनकी टीम के सदस्य अब कोई ऐसा रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं कि जंगली जानवरों के साथ इंसान के विवाद में कमी आए. किसानों का नुकसान होता रहा तो भालुओं के संरक्षण की बात करना आसान नहीं रहेगा.
आईबी/वीके