इंटरनेट पर मुफ्त में नहीं मिलेगा द टाइम्स
३ जुलाई २०१०इंटरनेट पर खबरें तलाशने वालों को अब द टाइम्स पढ़ने के लिए पैसा खर्च करना होगा. हर दिन एक पाउंड, हफ्ते भर के लिए दो पाउंड देने होंगे. दुनिया भर में अखबारों की गिरती बिक्री के बीच द टाइम्स निकालने वाली कंपनी ने यह फैसला किया गया है. आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन में अखबारों की बिक्री लगातार गिरती जा रही है. लेकिन रुपर्ट मर्डोक की कंपनी ने अपने बयान में कहा है, ''हमें लगता है कि नई वेबसाइट से लोगों को नई जानकारियां पता चलेंगी. हमारी कोशिश है कि हम वेबसाइट में निवेश करके पाठकों के लिए नई नई चीजें लाएंगे.''
शुरूआती रुझानों को देखें तो द टाइम्स को झटका ही लग रहा है. ब्रिटेन में इंटरनेट ट्रैफिक पर नजर रखने वाले रॉबिन गॉएड कहते हैं कि द टाइम्स की वेबसाइट पर आने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी हुई है. वह कहते हैं, ''पिछले कुछ हफ्तों में हमने देखा है कि उनके ट्रैफिक में 60 फीसदी कमी आई है. बढ़ोत्तरी न के बराबर हुई है.'' लेकिन 18 से 24 साल के युवा तेजी से पैसा देकर इंटरनेट अखबार खरीद रहे हैं. कंपनियों की नजर इसी पर है.
रुपर्ट मर्डोक ने पिछले साल अगस्त में एलान किया था कि उनकी फर्म अपनी हर वेबसाइट के लिए पैसा लेगी. फाइनेंशियल टाइम्स ऑनलाइन पे सिस्टम कर चुका है. कारोबार जगत का दिग्गज अखबार वॉल स्ट्रीट जरनल भी पूरे संस्करण के लिए पाठकों से पैसा लेता है.
यह प्रयोग कितना मीडिया कंपनियों के लिए कितना सफल होगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल हैं. विशेषज्ञ इसे एक अच्छा कदम नहीं बता रहे है. उनका कहना है कि यह एक जुए की तरह है. स्वीडन के मीडिया हाउस एक्सपर्ट रॉबर्ट जी पिकार्ड कहते हैं, ''भविष्य में हम कई ऐसी समाचार वेबसाइट्स देखेंगे जो पाठकों से पैसा लेंगी, लेकिन उनमें से ज्यादातर नाकाम हो जाएंगी. पैसा लेने वाली वेबसाइट्स को यह देखना होगा कि जो सामग्री वह उपलब्ध करा रही हैं, वह दुनिया भर में और कहीं न मिले.''
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह़
संपादन: एस गौड़