1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आसान नहीं है नवाज शरीफ होना

अशोक कुमार
१८ अक्टूबर २०१६

भारत जैसा पड़ोसी, पाकिस्तान जैसा देश, सेना जैसा ताकतवर संगठन और इमरान खान जैसे जिद्दी विरोधी. जब तक नवाज शरीफ पीएम की कुर्सी पर बैठे हैं, चैन तो उन्हें कोई नहीं लेने देगा.

https://p.dw.com/p/2RMHR
Muhammad Nawaz Sharif speaks at summit meeting for refugee crisis at the UN
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Graff

पाकिस्तान विरोध अपनी जगह, लेकिन इंसानियत के नाते देखा जाए तो नवाज शरीफ से हमदर्दी हो सकती है. अकेला आदमी भला किस किस से निपटे. सबसे पहले मोदी, जिनकी एक एक बात का करारा जवाब देना है. आखिर बात भारत और पाकिस्तान की है. कहीं कुछ कसर रह गई तो भला लोग क्या कहेंगे. वैसे ही मोदी के गले से लिपटने वाली तस्वीरों पर अब तक लोग ताना देते होंगे. कुछ लोगों को तो साड़ी और शॉल की अदला बदली वाली बात भी याद होगी.

पर कोई बात नहीं है. रिश्तों में आई गर्मी पर जब बर्फ की चादर चढ़ने लगी तो भला साड़ी और शॉल का किसे ख्याल रहा. दोनों तरफ से बयानों के गोले दागे गए. ऐसे बयानों में संगीत तो शायद ही किसी को सुनाई दिया हो, लेकिन पाकिस्तानी सेना और सरकार के सुर एकदम जैसे सुनाई दिए. मामला देश की सुरक्षा का हो तो होना भी ऐसा ही चाहिए.

देखिए पाकिस्तान को क्या जवाब दे सकता है भारत

पर लगता है कि नवाज शरीफ के सितारे ही आजकल गर्दिश में चल रहे हैं. तभी तो डॉन के पत्रकार को पता नहीं, कहां से सुराग मिल गया कि सरकार ने सेना को डांट लगाई है कि दहशतगर्दों पर कार्रवाई करो वरना अच्छा नहीं होगा. खबर चल गई. और चली क्या साहब दौड़ गई. पर सरकार, और सेना को डांट लगा दे. वो भी पाकिस्तान में. ऐसा कैसे हो सकता है. तौबा .. तौबा.. खबर कितनी सच है ये तो डॉन वाले जानें, लेकिन सुनते हैं कि इस चक्कर में नवाज शरीफ को जरूर डांट पड़ गई है.. किसने डांटा? ये बताने की जरूरत है क्या?

जब से डॉन की रिपोर्ट सामने आई है, उसकी देखा देखी कुछ और अखबार भी आंख दिखाने लगे हैं. क्या नाम है उस अखबार का? हां द नेशन. आए दिन एक ही सवाल पूछने लग जाता है. नॉन स्टेट एक्टर्स पर कार्रवाई क्यों नहीं करते? अरे भाई, सवाल का जबाव इतना आसान होता तो अब तक नवाज शरीफ ने दे नहीं दिया होता.

देखिए पाकिस्तान में दहशत के दस साल

लेकिन इमरान खान जैसे आदमी को इतना होने के बावजूद भी तरस नहीं आता. फिर धरने की धमकी दे रहे हैं. एक आदमी ‘दुश्मन से देश को बचाने' में जुटा है और ये आदमी धरने से बाज नहीं आता. हालत ये है कि अगर इमरान खान से ग्लोबल वॉर्मिंग पर बात करोगे तो वो भी ‘नवाज शरीफ इस्तीफा दें' पर खत्म होगी. अगर भक्तों को एतराज न हो तो कहूं कि इमरान खान कान्हा की तरह जिद कर रहे हैं. कान्हा जिस तरह ‘मैया मैं तो चंद खिलौना लेहूं' की जिद पर अड़े थे, उसी तरह इमरान खान ‘मैं तो नवाज शरीफ का इस्तीफा ही लेहूं' से कम में मानने के मूड में नहीं हैं.

इस्लामाबाद को बंद करने की धमकी दे रहे हैं. हां, पता है. मामला करप्शन का है और बात पनामा पेपर्स की है. लेकिन पनामा पेपर्स में और बहुत सारे मुल्कों के लोगों के नाम है. क्या वो सब इस्तीफा दे रहे हैं? वैसे भी पनामा पेपर्स तो बहुत बाद में आए, इमरान खान ने तो उसी दिन से इस्तीफा मांगना शुरू कर दिया था जिस दिन नवाज शरीफ को पीएम की कुर्सी मिली.

अलबत्ता बात बिल्कुल जायज है. करप्शन के दाग है तो धुलने ही चाहिए. ये दाग अच्छे नहीं हैं. पर अदालत अपना काम करेगी. और इमरान खान थोड़ा सा रुक जाएं तो पाकिस्तान में 2018 में तो जनता की अदालत लगने ही वाली है. जनता को खोट लगेगा तो वोट से चोट करेगी. फिर आप क्यों क्यों एक चुनी सरकार की राह में रोड़े डालने की तोहमत अपने सिर ले रहे हैं खान साब? क्यों पीछे पड़े हो? मोदी, सेना और मीडिया शायद कम थे, कि नवाज शरीफ ने सार्क के मुकाबले नया संगठन खड़ा करने का जिम्मा भी अपने सिर ले लिया है. कोई नवाज शरीफ की भी तो सोचे.. आसान नहीं है नवाज शरीफ होना.