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आर्थिक विकास में मिटती भाषाएं

४ सितम्बर २०१४

रिसर्चरों का दावा है कि अल्पसंख्यक भाषाओं को आर्थिक विकास से बहुत भारी खतरा है. उनके मुताबिक दुनिया की कुल 6,909 भाषाओं में से चौथाई भाषाओं पर विलुप्त होने का खतरा है.

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तस्वीर: Fotolia/Web Buttons Inc

इस रिसर्च के दौरान उन तमाम बातों पर गौर किया गया जो जानवरों या पेड़ पौधों की प्रजातियों की विलुप्ति के शोध के दौरान ध्यान में रखी जाती हैं. अमेरिका और यूरोप के रिसर्चरों द्वारा की गई इस रिसर्च के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया और उत्तरी अमेरिका के कई हिस्सों की भाषाएं विलुप्ति की कगार पर हैं.

ध्यान की जरूरत

रॉयल साइंस पत्रिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, "भाषाएं बहुत तेज रफ्तार में मिट रही हैं, विलुप्ति की रफ्तार पर, यह जैव विविधता को नुकसान से भी ज्यादा तेजी से हो रहा है." आर्थिक रूप से विकसित क्षेत्रों में जिन भाषाओं को बोलने वालों की आबादी कम है वे ज्यादा तेजी से घट रही हैं क्योंकि उन्हें बोलने वाले ही कम हैं. जैसे कि अलास्का में 2009 तक अथाबास्काई लोगों की भाषा का इस्तेमाल केवल 24 ही लोग कर रहे थे. उनके बच्चे यह भाषा नहीं सीख रहे. 2008 में ओक्लाहोमा की भाषा विचिता को ठीक ढंग से बोलने वाला केवल एक ही व्यक्ति था.

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तस्वीर: Fotolia/lassedesignen

ऑस्ट्रेलिया की मारगू भाषा हाल में विलुप्त हो गई जबकि रेम्बारुंगा भाषा का इस्तेमाल बहुत कम हो चुका है. यह भाषा विलुप्ति की कगार पर है. उनके मुताबिक आर्थिक रूप से विकसित इलाकों, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया, की कई भाषाएं अब विलुप्त हो चुकी हैं. हालांकि कुछ अंदरूनी इलाकों में कई छोटी भाषाएं कम आबादी में लोग अभी भी बोल रहे हैं. लेकिन इनके भी विलुप्त हो जाने का भारी खतरा है इसलिए जरूरी है कि इन पर जल्द ध्यान दिया जाए.

क्यों घटता है इस्तेमाल

टीम ने बताया कि वे इलाके जहां अब तेजी से विकास हो रहा है वहां की कई अंदरूनी भाषाएं भी खतरे में हैं, जैसे हिमालय के कई इलाकों में, ब्राजील और नेपाल में. रिसर्चरों ने भाषा को बोलने वालों की संख्या, उनकी भौगोलिक स्थिति, उनकी विकास या पतन की दर, इन तमाम बातों का डाटा जमा किया. उन्होंने वैश्वीकरण, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तनों के प्रभाव को भी इस रिसर्च में शामिल किया.

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में जीवविज्ञान विभाग की तात्सुया आमातो ने इस रिसर्च में प्रमुख भूमिका निभाई. उनके मुताबिक जब किसी देश का विकास होता है तो कोई एक भाषा अक्सर छोटी भाषाओं को पीछे छोड़ देती है. लोग उस प्रभावशाली भाषा को अपनाने के लिए मजबूर हो जाते हैं क्योंकि देश की राजनीति और शैक्षिक क्षेत्र में भी उसका दबदबा रहने लगता है. ऐसे में दूसरी भाषाओं का इस्तेमाल कम हो जाता है और वे खतरे में आ जाती हैं.

एसएफ/एएम (एएफपी)