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आर्कटिक सर्किल पर भारत

१७ अप्रैल २०१३

आर्कटिक महासागर से काफी दूर के देश भारत और चीन सहित सिंगापुर आर्कटिक सर्किल नाम के फोरम में शामिल होने जा रहे हैं. यह एक नया ग्लोबल फोरम होगा.

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तस्वीर: picture alliance/Everett Collection

इस फोरम में शामिल होने का उनका उद्देश्य है सुदूर उत्तर के इलाके पर बहस व्यापक करना. आइसलैंड के राष्ट्रपति ओलाफुर ग्रिमसन ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि यह एक नया फोरम होगा और इसकी पहली बैठक आइसलैंड की राजधानी राइकेयाविक में अक्टूबर महीने में आयोजित की जाएगी.

ग्रिमसन का कहना है कि इस तरह की मुलाकात और बहस जरूरी है क्योंकि आर्कटिक की बर्फ पिघलने से कई देशों को नुकसान होगा. अभी तक इस संगठन में आठ ही देश, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और अमेरिका हैं. आर्कटिक काउंसिल की स्थापना 1996 में की गई थी.

कुछ आर्कटिक देश इसके सम्मेलन में भाग ले सकते हैं लेकिन उनकी इस इलाके में टिकाऊ विकास की नीतियां बनाने में कोई भागीदारी नहीं होती.

आइसलैंड ने कहा कि उन्होंने चीन, भारत और सिंगापुर से आर्कटिक के बारे में बात की. इस बातचीत का पहला एजेंडा था कि इन तीन देशों को आर्कटिक में सीट मिलें.

ग्रिमसन के मुताबिक," आर्कटिक फोरम खुला, लोकतांत्रिक धड़ा होगा जहां जो भी भागीदारी करना चाहता हो उसका स्वागत है." उन्होंने यह भी कहा कि संबंधित नागरिक, गैर सरकारी संगठन के प्रतिनिधि, वैज्ञानिक, शोधकर्ता इन सरकारों के साथ जुड़ सकते हैं और इस बहस का हिस्सा बन सकते हैं.

हालांकि इसमें नए स्थायी पर्यवेक्षक बनाने का फैसला करने में समय लग सकता है. ग्रिमसन ने चीन और आइसलैंड के बीच मुक्त व्यापार समझौते की भी घोषणा की.

आर्कटिक महासागर का बर्फ पर्यावरण और जलवायु में बदलाव का मुख्य संकेत है. पिछले साल इसका बहुत बड़ा हिस्सा पिघल गया. इससे न केवल दुनिया के सागरों में पानी का स्तर बढ़ता है बल्कि मौसम भी बदलते हैं. बर्फ पिघलने का मतलब यह भी है कि यूरोप, एशिया, उत्तरी अमेरिका के लिए नए जल मार्ग बन सकते हैं. पिछले साल गर्मियों में जब बर्फ कम हुई थी पहली बार चीन का बर्फ तोड़ने वाला जहाज शंघाई से उत्तरी समुद्री रास्ते से रूसी तट होते हुए आइसलैंड पहुंचा.

रिपोर्टः एएम/एनआर (रॉयटर्स)

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