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आम आदमी को क्या देंगे कॉमनवेल्थ खेल

२९ अगस्त २०१०

जो मामला जितना चर्चा में रहता है, उस पर विवादों की छाया भी उतनी ही काली रहने का अंदेशा होता है. यही बात दिल्ली कॉमनेवल्थ खेलों पर सही बैठती है. पर हजार करोड़ रुपये लागत से होने वाले इन खेलों से आम आदमी का कितना भला होगा.

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इन दिनों भारत में हर तरफ कॉमनवेल्थ खेलों की ही चर्चा है. हो भी क्यों न, देश के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा यह आयोजन अक्टूबर में होने जा रहा है. खेल जगत के इस महाकुंभ की कामयाबी का दारोमदार युवाओं पर टिका है. यह बात कामनवेल्थ खेलों के आयोजक ही कह रहे है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि युवाओं की भागीदारी पर जिस आयोजन की सफलता टिकी हो, उसकी उपयोगिता के बारे में युवा पीढ़ी का क्या सोचना है.

क्या जरूरत है

नौजवानों का एक तबका ऐसा है जो अशिक्षा और बेरोजगारी का हवाला देकर कॉमनवेल्थ खेलों को सिर्फ समय और धन की बर्बादी का नमूना मान रहा है. खासकर खेलों के नाम पर पानी की तरह बहते पैसे से घोटालेबाजों के तर होते गले, इस पीढ़ी की चिंता का अहम विषय है. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के शोध छात्र दीपक कहते हैं, "सरकार पंद्रह दिन तक चलने वाले आयोजन पर हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही है. इस पूरी राशि से देश के लाखों लोगों को शिक्षा की सुविधा दी जा सकती है. हमारे यहां युवा शिक्षा और रोजगार के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं. लेकिन सरकार है कि 71 देशों से आए आठ हजार खिलाड़ियों पर दसियों हजार करोड़ रुपये पानी की तरह बहा रही है."

Baustelle in Indien Flash-Galerie
लचर तैयारियों के लिए भी कॉमनवेल्थ खेलों की खूब बदनामी हुईतस्वीर: AP

हालांकि सरकार की दलील है कि इस भव्य आयोजन से युवाओं को एक अंतरराष्ट्रीय मंच को करीब से देखने का मौका मिलेगा जिससे वे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होंगे. लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पीजी मेडिकल की पढ़ाई कर रहे अरुण पटेल इसे बेतुका बताते हैं. डा. अरुण का कहना है कि जिस देश में मौलिक शिक्षा का संकट हो वहां के गांव देहात में रहने वाले अधिकांश युवाओं को कॉमनवेल्थ खेलों से क्या फायदा. उनके मुताबिक, "हम नहीं समझते कि भारत जैसे देश में, जहां बुनियादी चीजें न हों, वहां ये खेल इतने जरूरी हैं. बहुत से गांव हैं जहां दस बीस लाख रुपये का निवेश कर दें तो बहुत कुछ हो सकता है."

खेलों से फायदा

बहरहाल, इस सब के बीच खेलों के जरिए पर्यटन, होटल इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर को मिलने वाले बढ़ावे को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. इतना ही नहीं, देश में खेलों के प्रति दिनों दिन कम होते रुझान को देखते हुए कॉमनवेल्थ गेम्स नई पीढ़ी को खिलाड़ी बनने के लिए भी प्रेरित करेंगे. इसीलिए सीए की पढ़ाई कर रहे अभिषेक चोपड़ा इस आयोजन को हर लिहाज से उपयोगी मानते हैं. वह कहते हैं, "कॉमनवेल्थ खेलों से कई क्षेत्रों को फायदा होगा. खास कर होटल उद्योग और पर्यटन उद्योग को लाभ पहुंचेगा. सरकार को विदेशी मुद्रा मिलेगी. देश के उद्योग जगत को भी इससे फायदा मिलेगा."

Indien Zug Commonwealth Games 2010
तस्वीर: UNI

आयोजन में भ्रष्टाचार के मसले पर सभी ने अपनी चिंता जाहिर की है. लेकिन इस मामले में भी अभिषेक की राय औरों से भिन्न है. वह कहते है कि भ्रष्टाचार के डर से कोई काम न करना समझदारी नहीं है बल्कि इसे रोकने के उपाय करना चाहिए. उनकी राय है, "जो अधिकारी इस आयोजन को करा रहे हैं, वे पैसे को ढंग से लगाएं. मकसद निजी फायदा नहीं, बल्कि देश का फायदा होना चाहिए. तभी इसका कुछ फायदा होगा."

चंद लोगों की चांदी

पत्रकारिता की छात्रा शिवानी इसे घोटालों से भरा आयोजन बताते हुए भ्रष्टाचार को ही अपने विरोध का मुख्य कारण बताती हैं. उनका कहना है कि ऐसे आयोजन तो होने चाहिए लेकिन साफ सुथरे तरीके से हों, तभी इनकी सार्थकता समझ में आती है. शिवानी के मुताबिक, "दूर के ढोल ही सुहावने होते हैं. लोग कह रहे हैं कि कॉमनवेल्थ खेल आ रहे हैं और पैसा मिलेगा. लेकिन यह पैसा कहां से आ रहा है और किसको मिलेगा, इसकी कोई बात नहीं करता."

आरोप और विरोध से बेपरवाह खेलों के आयोजक दिल्ली को वर्ल्ड सिटी बनाने में जुटे हैं. इनका दावा है कि दुनिया भर से आ रहे मेहमानों को ट्रैफिक और रोजमर्रा की सुविधाओं से जुड़ी जानकारियां देने के लिए 20 हजार वॉलेंटियर तैनात रहेंगे. ये अनुभव इन युवाओं को इंटरनेशनल एक्सपोज़र तो देगा ही, साथ ही तमाम युवाओं को आगे बढ़ने को प्रोत्साहित भी करेगा. लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीकॉम की छात्रा अंकिता ने आयोजन को पूरी तरह से गैरज़रूरी बताते हुए वॉलेंटियर की भर्ती प्रक्रिया को ही संदेह के घेरे में ला खड़ा किया. वह कहती हैं, "बड़े पैमाने पर इसका आयोजन हो रहा है लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों को पहले से नहीं बताया गया था कि वे भी इसमें हिस्सा ले सकते हैं. तो ऐसे ही कुछ गिने चुने बच्चे इसमें लिए गए हैं जिनकी कहीं जान पहचान थी. इसीलिए इसका एक्पोजर का फायदा सब युवाओं को न मिल कर, चुनिंदा लोगों को ही मिलेगा."

Das Maskottchen der Commonwealth Games 2010
कॉमनवेल्थ खेलों का शेरातस्वीर: UNI

बेशक देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा यह आयोजन बहुत बड़ा है और इसकी सफलता में युवा शक्ति की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता. फिर भी पहले पढ़ाई, इसके बाद करियर और न जाने कितनी अन्य चिंताओं से घिरे नौजवानों की उन शंकाओं को नजरंदाज भी नहीं किया जा सकता जो किसी कवि के उन शब्दों को याद करने पर मजबूर कर देते हैं कि 100 में से 80 लोग जब फटे हाल हों तो कहो मैं कैसे लिख दूं कि धूप सावन की नशीली है.

रिपोर्टः निर्मल यादव

संपादनः ए कुमार

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