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आपसी रंजिश के लिए ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल

गाब्रिएल डोमिंगेज/आईबी३० नवम्बर २०१४

एमनेस्टी इंटरनेशनल एशिया पैसिफिक के उपाध्यक्ष डेविड ग्रिफिथ्स का कहना है कि पाकिस्तान में आपसी विवादों और दुश्मनी के लिए ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल किया जाता है.

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तस्वीर: picture alliance/Rana Sajid Hussain/Pacific Press

डॉयचे वेले: जियो टीवी और पाकिस्तान सरकार के बीच कई बार तनातनी हुई है. इसकी वजह क्या है और क्या ताजा मामले को इससे जोड़ कर देखा जा सकता है?

डेविड ग्रिफिथ्स: पाकिस्तानी मीडिया को बहुत राजनीतिक रंग दिया जाता है. जियो टीवी पर इस साल अप्रैल से रोक लगी हुई है क्योंकि उनके मुख्य एंकर हामिद मीर ने खुद पर हुए जानलेवा हमले के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को जिम्मेदार ठहराया था. ऐसे में ईशनिंदा का जो मामला बना है, उसे आईएसआई पर लगाए गए इल्जाम के लिए जियो टीवी को सजा सुनाने के रूप में देखा जा सकता है. यह कहना जरूरी है कि जियो टीवी पाकिस्तान का एकमात्र ऐसा चैनल नहीं है, जिसे सरकार से खतरा बना हुआ है. पाकिस्तानी मीडिया को कभी सरकार के हाथों सजा भुगतनी पड़ती है, तो कभी आईएसआई और कभी तालिबान के हाथों. न्याय प्रणाली भी परेशान करने में पीछे नहीं रहती. अभी अक्टूबर में ही एक अन्य प्राइवेट चैनल एआरवाय पर पंद्रह दिन के लिए रोक लगा दी गयी थी.

यानि ईशनिंदा के आरोपों को राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है?

पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का आए दिन निजी रंजिश निकालने के लिए इस्तेमाल होता रहता है. क्योंकि लोग इसे ले कर बेहद संवेदनशील हैं, इसलिए बस एक आरोप ही उन्हें भारी हिंसा का शिकार बना सकता है. जियो टीवी के खिलाफ अदालत का फैसला इस बात का दुखद उदाहरण है कि किस तरह से राजनीतिक एजेंडे के तहत ईशनिंदा कानून का इस्तेमाल किया जा सकता है.

David Griffiths Amnesty International
एमनेस्टी इंटरनेशनल एशिया पैसिफिक के उपाध्यक्ष डेविड ग्रिफिथ्सतस्वीर: Amnesty International

पिछले कुछ समय में ईशनिंदा के कई मामले सामने आए हैं. क्या पहले की तुलना में अब ज्यादा आरोप लगने लगे हैं?

वैसे तो पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून अंग्रेजों के समय से बना हुआ है. लेकिन 80 के दशक में मुहम्मद जिया उल हक के राज में इसे और सख्त कर दिया गया था. तबसे अब तक सैकड़ों लोग इसका शिकार हो चुके हैं. कईयों को तो भीड़ के हवाले कर दिया जाता है. अब हाल ही में लाहौर में भीड़ ने एक ईसाई जोड़े की जान ले ली क्योंकि ऐसी अफवाहें फैली थी कि महिला ने कुरान का अपमान किया था. आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि 1990 से अब तक 40 लोगों की इस तरह से जान जा चुकी है.

ईशनिंदा का आरोप किस बात पर लग सकता है?

इस्लाम के खिलाफ किसी भी तरह की बात करने पर ऐसा हो सकता है. हाल में हमने कई मामले देखे हैं जहां कुरान या पैगंबर के तिरस्कार के आरोप लगे या फिर किसी ने खुद को पैगंबर घोषित कर दिया, तब ऐसा हुआ. वैसे तो गैर मुसलमान इसका ज्यादा निशाना बनते हैं, पर सच्चाई यह है कि कोई भी सुरक्षित नहीं है, कई सुन्नी मुसलमान निशाना बन चुके हैं. यहां तक की ईशनिंदा के आरोपी की पैरवी करना भी खतरे से खाली नहीं है, जैसा कि हमने सलमान तासीर और शाहबाज भट्टी के मामले में देखा ही है.

अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया की स्वतंत्रा के बारे में ताजा मामले से क्या संकेत मिलता है?

पाकिस्तान पत्रकारों के लिए दुनिया की सबसे खतरनाक जगहों में से एक है. एमनेस्टी इंटरनेशल की एक रिपोर्ट बताती है कि 2008 से 2014 के बीच 34 पत्रकार मारे जा चुके हैं. इनके अलावा अनगिनत ऐसे पत्रकार हैं जिन्हें आए दिन धमकियां मिलती रहती हैं, उन्हें परेशान किया जाता है. सरकार को फौरन ही इस दिशा में कुछ करना होगा, वायदे तो बहुत हुए हैं, पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. पाकिस्तान को सबसे पहले तो यही करना चाहिए कि अपनी ही सेना और खुफिया एजेंसी की जांच करे और जो लोग पत्रकारों को परेशान करने के लिए जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई करे. इससे एक कड़ा संदेश जाएगा.