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१२ मई २०१०

समाचार हों या रोज़ का फीचर.क्या सुनते है हमारे श्रोता और क्या है उनकी राय, आईए जानें...........

https://p.dw.com/p/NMDh
तस्वीर: AP

आज पहली बार ही मैंने मैच प्वाइंट सुना है. खेल जगत की ताजातरीन गतिविधियों और हलचलों से रूबरू कराता ये कार्यक्रम न सिर्फ़ आम श्रोताओं, बल्कि सभी विद्यार्थियों के लिए भी बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो रहा है. इसके प्रस्तुतिकरण का अंदाज़ भी मन को भा रहा है . कुछ और भी, मसलन किसी खेल की जानकारी, खेल शब्दावली, आदि जैसी श्रृंखला भी शुरू करें तो क्या बात हो.

समाचारों के बाद प्रस्तुत किए जाने वाले सभी कार्यक्रम अपने विषय और शैली के कारण बेहद लोकप्रिय और मनोरंजक सिद्ध हो रहे हैं. ११ मई को प्रस्तुत लाइफ़ लाइन के तहत दोनों ही विषय बहुत महत्वपूर्ण और सार्थक लगे, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के प्रति चिकित्सकों की उदासीनता वाला विषय. अभी कुछ समय पहले ही भारत सरकार ने एक कोशिश के तहत चिकित्सकों से कुछ समय तक अनिवार्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सेवा देने को कहा था, उन्होंने त्यागपत्र देना ज्यादा ठीक समझा .

प्रस्तुति के लिए धन्यवाद .

अजय कुमार झा, गीता कालोनी, दिल्ली

आज के समय में नक्सलवाद देश की दूसरी सबसे बड़ी समस्या है. इसको एक प्रकार का आतंकवाद मान कर अर्धसैनिक बलों को ठीक उसी प्रकार से कार्यवाही करनी चाहिए जैसी सेना ने शुरुआती दौर में जम्मू कश्मीर में की. इनसे कुछ परसेंट मानव अधिकारों का हनन होता है, लेकिन ये मानव अधिकार किसी भी देश की सुरक्षा से ऊपर नहीं हो सकते.

इन्द्र भान सिंह

वेस्ट वॉच में राम यादव जी की आवाज़ में ब्रिटेन में पार्लियामेंट इलेक्शन के बारे में रिपोर्ट पसंद आई. आपने कुछ कार्यक्रमों के नाम अंग्रेजी में रखे है, तो इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता. मानवता तो पेश की जाने वाली जानकारी में है.

खोज में आँख के इशारे से चलने वाली कार के बारे में काफी दिलचस्प जानकारी पाई. इसके बाद मधुमेह के कारणों पर प्रकाश डाला गया. जानकारी काफी दिलचस्प और ज्ञानवर्धक लगी.

उमेश कुमार शर्मा, स्टार लिस्नर्स क्लब, नारनौल, हरियाणा

लाइफ़ लाईन में जर्मनी के ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी कमीं के बारे में विस्तार से दी गई जानकारी सुनी. यह समस्या भारत में भी है, जो दोनों देशों के लिये एक प्रमुख समस्या है जिस को दूर करने के लिये दोनों देशों को एक ठोस निति बनानी होगी अन्यथा ग्रामीण क्षेत्र की जनता पूर्व की भांति स्वास्थ्य सेवा से मरहूम होती रहेगी. डॉक्टरों में सेवा भावना कम और पैसा कमाने की हवस ज्यादा रहती है. यही कारण है कि मेडिकल की पढ़ाई के पश्चात डॉक्टर गॉवों की बजाय शहरों की और भागते है. दोनों देशों की सरकारों को चाहिये कि वे पढ़ाई के वक्त ही डॉक्टरों के लिए पाँच साल तक ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करना अनिवार्य बना दें.

अतुल कुमार, राजबाग रेडियों लिस्नर्स क्लब, सीतामढी, बिहार