आधुनिक गुलामी के खिलाफ मोर्चा
आधुनिक गुलामी का आशय उस स्थिति से है जब कोई इंसान किसी डर, खतरे, जोर या जबरदस्ती के कारण कहीं से निकल ना सके. करीब 15 साल से एक वैश्विक समझौते के तहत दुनिया भर में जारी मानव तस्करी को रोकने के प्रयासों पर एक नजर.
2000
सन 2000 में संयुक्त राष्ट्र ने एक 'प्रोटोकॉल टू प्रिवेंट' पास किया. मकसद था मानव तस्करी को रोकना और अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध से जुड़े तस्करों को सजा दिलवाना. कानूनी बाध्यता तय करने वाला यह पहला वैश्विक समझौता था.
2001
सन 2001 में पश्चिम अफ्रीकी देशों के आर्थिक समुदाय ने गुलामी और मानव तस्करी से निपटने के लिए एक एक्शन प्लान पर सहमति बनाई.
2002
सन 2002 में अंतरराष्ट्रीय कोकोआ अभियान शुरु हुआ. यह चॉकलेट इंडस्ट्री की बड़ी कंपनियों में लगे बाल मजदूरों को बचाने वाला और गुलामी के खिलाफ काम करने वाला गुट था. ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी क्षेत्र के सभी लोग मिल कर अपनी सप्लाई श्रृंखला से गुलामी को मिटाने के लिए एकजुट हो गए.
2004
सन 2004 में ब्राजील में गुलाम श्रमिकों की प्रथा के खात्मे के लिए नेशनल पैक्ट लॉन्च किया. नागरिक संगठन, व्यवसायिओं और सरकार ने मिलकर कंपनियों की सप्लाई चेन में गुलाम श्रमिकों को हटाने का काम किया. इसके अलावा एक "डर्टी लिस्ट" बनाई जाने लगी, जिसमें उन कंपनियों का नाम होता जो गुलामों से बनवाए उत्पाद बेचें. 2004 में ही संयुक्त राष्ट्र ने मानव तस्करी पर अपना एक विशेष दूत नियुक्त किया.
2005
सन 2005 में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, आईएलओ ने बंधुआ मजदूरी पर अपनी पहली ग्लोबल रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में दुनिया भर में गुलामों की संख्या 1.23 करोड़ बताई गई. 2012 में यही संख्या बढ़ कर 2.09 करोड़ तक पहुंच गई.
2008
सन 2008 में मानव तस्करी के खिलाफ एक यूरोपीय परिषद का गठन हुआ. इन्होंने ही तस्करी को मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हुए इसके खिलाफ पहला अंतरराष्ट्रीय कानून बनाया. तस्करी के शिकार हुए पीड़ितों को एक न्यूनतम सुरक्षा मुहैया कराए जाने की भी गारंटी हुई.
2011
सन 2011 में आईएलओ ने घरेलू नौकर के रूप से काम करने वालों के मूलभूत अधिकारों को तय करने का काम किया. 2011 में ही अमेरिकी प्रांत कैलिफोर्निया में सप्लाई चेन एक्ट में कैलिफोर्निया ट्रांसपेरेंसी लागू हुई. इसके अनुसार सभी बड़े निर्माताओं और रीटेल कंपनियों को बताना जरूरी था कि वे बंधुआ मजदूरी के खिलाफ क्या प्रयास कर रहे हैं.
2012
2012 में अमेरिका की बाजार विनिमय परिषद, एसईसी ने कॉन्फ्लिक्ट मिनरल्स रूल लागू किया. इससे शेयर बाजार में दर्ज बड़ी बड़ी कंपनियों को यह भी बताना जरूरी होता है कि उनके उत्पाद में किसी ऐसे खनिज का इस्तेमाल तो नहीं हुआ है जिन्हें पूर्वी कांगो या उसके जैसे युद्ध या संघर्षरत देशों से निकाला गया हो.
2013
सन 2013 में वॉक फ्री फाउंडेशन का पहला ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स सामने आया. इसमें गुलामों की संख्या 2.98 करोड़ पाई गई थी, जबकि 2016 की रिपोर्ट में यह 4.56 करोड़ दर्ज हुई है. 2014 में आईएलओ ने जबरन मजदूरी पर प्रोटोकॉल बनाया, जिससे 1930 के उनके कन्वेंशन में मानव तस्करी जैसी आधुनिक युग की समस्याओं को भी शामिल किया गया.
2015
सन 2015 में ब्रिटेन में मॉडर्न स्लेवरी एक्ट लागू हुआ. इसके अनुसार उद्योगों को बताना पड़ता है कि उन्होंने अपनी सप्लाई चेन में गुलामी को बढ़ावा ना देने के लिए क्या कदम उठाए हैं. ब्रिटेन में इसका दोषी पाए जाने पर जेल की सजा को पहले के 14 साल से बढ़ाकर आजीवन कारावास में बदल दिया गया है. तस्कर के पीड़ित को मुआवजो भी देना पड़ेगा.
2015
सैाल 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने 17 स्थायी विकास लक्ष्य तय किए, जिनमें गुलामी का नामोनिशान मिटाना और जबरन श्रम एवं मानव तस्करी को खत्म करना शामिल है.