आज की स्क्रिप्ट से नाराज धर्मेंद्र
४ अप्रैल २०१३धर्मेंद्र कहते हैं कि आजकल के राजनेताओं को वर्ष 1969 में ऋषिकेश मुखर्जी की बनाई फिल्म सत्यकाम जरूर देखनी चाहिए. अपनी नई फिल्म यमला पगला दीवाना 2 के प्रमोशन के सिलसिले में कोलकाता पहुंचे धर्मेंद्र ने डॉयचे वेले से बात की.
आप लंबे अरसे से हिंदी फिल्मोद्योग में हैं. राजनीति में जाने के बाद फिल्मों में कैसे लौटे ?
यह एक लंबी कहानी है. फिल्में मेरा प्रोफेशन नहीं, बल्कि मेरी महबूबा हैं. इसलिए मैंने इसमें वापसी की. बीच में अपनी महबूबा से मेरा साथ छूट गया था लेकिन मैंने यमला पगला दीवाना से फिर उसके साथ जोड़ी बना ली.
अभिनेता बनने का सपना आपको पंजाब के गांव से मुंबई खींच लाया था. क्या आप शुरू से ही अभिनेता बनना चाहते थे ?
मैं शुरू से ही असंभव लगने वाले सपने देखता था. अभिनेता बनने का सपना तो बचपन से ही देखता था. उस दौर में मध्यवर्ग के किसी युवक का फिल्मों में आना बेहद कठिन था. लेकिन मेरा जुनून मुझे इस उद्योग में ले आया. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैंने पहली फिल्म तब देखी थी जब मैं नौंवी में पढ़ता था. वह फिल्म थी दिलीप कुमार की शहीद.
क्या फिल्मों ने आपको आपकी समुचित जगह दी है ?
नहीं, लेकिन यह मेरी गलती है. हैं. मैंने कभी इस उद्योग से अपने लिए कुछ मांगा ही नहीं. मैं इस मामले में अनफिट हूं. अपने प्रचार का हथकंडा नहीं जानता था. मुझे तो बस काम से मतलब होता था.
आपके जमाने के कई अभिनेता अब सामाजिक नेटवर्किंग साइटों पर सक्रिय हैं. लेकिन आप इन सबसे दूर क्यों हैं ?
मुझे यह सब असहज लगता है. लेकिन मौजूदा दौर को ध्यान में रखते हुए मुझे अब अपनी फिल्म का प्रचार खुद करना पड़ता है. यह मेरे लिए मुश्किल है. पहले ऐसा नहीं होता था.
आप मीडिया से दूर रहते हैं. ऐसा क्यों है ?
दरअसल, मैं प्रचार से दूर ही रहता हूं. मुझे यह मौजूदा दौर भी पसंद नहीं है जहां अच्छी फिल्में प्रमोशन के बिना फ्लॉप हो जाती हैं. मुझे अपनी प्राइवेसी ज्यादा पसंद है. मेरे दौर में भी लोगों को अभिनेता-अभिनेत्रियों के बारे में जानने की दिलचस्पी थी लेकिन अब तो लोगों को सब कुछ पता होता है कि कौन हीरो या हीरोइन क्या पसंद करती है और क्या नहीं. कहीं लोगों ने मेरे नाम पर स्टूडियो खोल रखा है तो कहीं लोग मेरा जन्मदिन मनाते हैं और मुझे इसमें शामिल होने का न्योता देते हैं. मैं इन सबसे दूर ही रहता हूं. अब हर चीज बिकाऊ हो गई है. पहले ऐसा नहीं था.
अब फिल्मों के प्रमोशन पर भारी रकम खर्च की जाती है. आप क्या सोचते हैं ?
मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. प्रमोशन के चलते आज खराब फिल्में भी बढ़िया कारोबर करती हैं जबकि बढ़िया फिल्में भी फ्लॉप हो जाती हैं. मौजूदा दौर में अगर किसी फिल्म का सही तरीके से प्रमोशन नहीं हुआ तो उसका पिछड़ना तय है.
आप तो आधी सदी से इस उद्योग में सक्रिय हैं. तब और अब में क्या बदलाव महसूस करते हैं ?
अब प्रमोशन का दौर है. इसके अलावा अब हीरोइनें परदे पर कुछ भी बक देती हैं. मुझे यह सब देख कर निराशा होती है. पहले की फिल्मों में शालीनता होती थी. अब कुछ अच्छी फिल्में तो बन रही हैं लेकिन सत्यकाम और बंदिनी जैसे पात्र इस देश में नहीं रहे. इसके अलावा अब पहले जैसी पटकथाएं नहीं लिखी जातीं.
क्या हिंदी फिल्मों में अब सीक्वल का दौर चल रहा है ?
हां, यह तो सही है. लेकिन यमला पगला दीवाना और यमला पगला दीवाना 2 की कहानी पूरी तरह अलग है. इसमें पात्र भले पहले वाले हैं. लेकिन उनकी भूमिका अलग किस्म की है. अगर लोगों ने पसंद किया तो हम इसे आगे भी बढ़ा सकते हैं. यह फिल्म पहले के मुकाबले बेहतर है. अगर दर्शकों ने पसंद किया ते हम इसका तीसरा और चौथा सीक्वल भी बना सकते हैं.
इंटरव्यूः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः एन रंजन