असली लोकतंत्र के बदले मिर्ची पावडर
१ अक्टूबर २०१४ऐसी तस्वीरें इस तीव्रता के साथ हॉन्ग कॉन्ग में अब तक नहीं देखी गई है. शहर के केंद्र में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प. शहर की ओर बढ़ते दसियों हजार प्रदर्शनकारी, आंखों को आंसू गैस से बचाने के लिए स्विमिंग वाले चश्मे, प्लास्टिक बैग और नारों वाली तख्तियों से लैस. और पुलिस की तरफ से, आंसू गैस, मिर्ची पावडर और डंडे. 1997 में ब्रिटेन द्वारा हॉन्ग कॉन्ग चीन को सौंपे जाने के बाद यह सबसे गंभीर उपद्रव है.
आंदोलन की वजह, 2017 के चुनाव सुधारों की घोषणा. हालांकि इसमें प्रत्यक्ष चुनावों का प्रावधान है, लेकिन चुनाव में वही उम्मीदवार बन सकेंगे जिन्हें पहले से तय किया गया हो. असल लोकतंत्र का कोई निशान नहीं. ऐसे नियमों से सरकार की आलोचना करने वालों की उम्मीदवारी नामुमकिन होगी. इसलिए आंदोलनकारियों की मांग स्पष्ट है, चुनाव ऐसे जो अपने नाम के लायक हों. छात्र संगठन तो पिछले हफ्ते एक कदम आगे गए हैं, एक घोषणा पत्र में उन्होंने हॉन्ग कॉन्ग के निवासियों से माफी मांगने की मांग की है. और मांग नहीं पूरी होने पर हॉन्ग कॉन्ग के नेतृत्व के इस्तीफे की मांग.
बदलाव सिर्फ विस्तार में
हॉन्ग कॉन्ग के नेतृत्व ने आंदोलन के आयाम को देखते हुए बातचीत की तैयारी दिखाई है और कहा है कि सरकार चुनाव सुधारों पर फिर से विचार करना चाहती है. कोई ठोस योजना नहीं बताई गई है. लेकिन बीजिंग से आने वाले सिग्नल एकदम अलग हैं, प्रदर्शनकारी "चरमपंथी," और "कट्टरपंथी" हैं और सिर्फ अल्पमत का प्रतिनिधित्व करते हैं. विदेश मंत्रालय ने बाहरी हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी दी है. सरकार के करीबी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि प्रदर्शनकारियों को ठीक ठीक पता था कि जन कांग्रेस की स्थायी समिति के फैसले को बदला नहीं जा सकता है. सोशल मीडिया में हॉन्ग कॉन्ग की खबरों को दबाया जा रहा है.
इसलिए एक बात तय है: संशोधन की संभावना सिर्फ विस्तार में है. पहले भी चयन समिति की ठोस संरचना पर चर्चा हुई है, जो उम्मीदवारों का चुनाव करेगी. उसके आकार के बारे में या फिर यह कि क्या उसके एक हिस्से का चुनाव सीधे मतदान से किया जाए. साफ यह भी है कि मूल सवालों पर बीजिंग एक मिलीमीटर भी नहीं हिलेगा, भले ही हॉन्ग कॉन्ग में कितने ही लोग असली चुनावों के अपने अधिकारों की मांग क्यों न करें.
नियंत्रण खोने का डर
और वह भी मुख्य रूप से दो कारणों से. एक तो बीजिंग को हॉन्ग कॉन्ग पर नियंत्रण खोने का डर है. बीजिंग को डर है कि हॉन्ग कॉन्ग का स्वतंत्र सरकार प्रमुख जो मुख्य भूमि से दूरी बना सकता है. जो कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभाव पर सवाल उठाए और जो पूरी तरह चीन से आजाद होने की कोशिश कर सकता है.
इसके अलावा बीजिंग को चिंता है कि हॉन्ग कॉन्ग मॉडल चीन के दूसरे हिस्सों के लिए भी आदर्श बन सकता है. चीन के लोग हॉन्ग कॉन्ग के आंदोलनकारियों से प्रेरणा लेकर प्रदर्शन के जरिए ज्यादा लोकतांत्रिक अधिकार पाने की कोशिश करें. आशंका यह है कि हॉन्ग कॉन्ग में असली लोकतंत्र आने वाले समय में अस्तित्व में नहीं आएगा.
समीक्षा: फिलिप बिल्स्की/एमजे
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी