अयोध्या विवाद: दोनों पक्षों की बात
२९ सितम्बर २०१०मुस्लिम पक्ष
बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी के संयोजक, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की लीगल कमेटी के चीफ और इस मुकदमे के पक्षकार सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जीलानी से बातचीत के अंश.
वो प्रमुख बिंदु क्या थे जिनके आधार पर आपने इस मुकदमे को इतनी शिद्दत से लड़ा.
22 दिसंबर 1949 से पहले तक ये इमारत(ध्वस्त बाबरी मस्जिद) मस्जिद के तौर पर इस्तेमाल होती रही . कभी मंदिर के रूप में इसका इस्तेमाल नहीं हुआ. उस तारीख तक इसमें कोई मूर्ति भी नहीं थी.
इसके लिए आपने कौन कौन से सबूत अदालत को मुहैया कराए.
बाबरनामा से लेकर 1950 और 1986 तक की लिखी हुईं इतिहास की प्रमुख किताबों के अंश. इसके अलावा 1858 से लेकर 1950 तक के सरकारी दस्तावेजों में ये इमारत बतौर मस्जिद दर्ज है. इसके मुतवल्ली को रख रखाव के लिए सरकार से रकम भी मिलती रही.
इसी आधार पर इसका दर्जनों बार मुआयना किया गया. जिलाधिकारी को इसकी रिपोर्ट दी गई. 1934 में पहली बार जब इसे क्षतिग्रस्त किया गया तो ब्रिटिश शासन ने प्युनिटिव टैक्स लगाकर उसकी मरम्मत कराई . उसके कागजात अदालत में पेश किए हैं और इसके खसरे में 1877 से लेकर 1931 तक ये इमारत बतौर मस्जिद दर्ज है.
इनके अलावा अदालत में आपने गवाहियां भी प्रस्तुत की हैं.
कुल 33 गवाहों को हमने मस्जिद के पक्ष में पेश किया है. जिनमे देश के 12 प्रतिष्ठित इतिहासकार हैं. इनमे से 11 गैर मुस्लिम हैं और ये सब देश के विख्यात विश्वविद्यालयों में हैं. इन सभी ने अदालत में कहा है कि विवादित स्थल के राम जन्म भूमि होने या वहां पर मंदिर के सुबूत नहीं हैं.
लेकिन विहिप नेता विनय कटियार का कहना है कि मुस्लिम पक्ष ये साबित नहीं कर पाया है कि विवादित भूमि कभी सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को स्थानांतरित हुई.
देखिए बाबर के जमाने में मस्जिद का निर्माण हुआ. बादशाह के जमाने में कानून था कि जो जमीन किसी की नहीं वो बादशाह की है. यही आज भी है कि जो भूमि किसी की नहीं, वो सरकार की होती है. उस वक्त वो जमीन खाली थी इसलिए बादशाह को उस पर मस्जिद बनवाने का पूरा अधिकार था. अगर किसी व्यक्ति के नाम भूमि होती तो स्थानांतरण की जरूरत पड़ती.
हिंदू पक्ष
इस मामले में श्री राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति भी हिंदू पक्ष से एक पक्षकार है. इस समिति के संरक्षक जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद हैं. इस समिति की वकील रंजना अग्निहोत्री से बातचीत के प्रमुख अंश.
आपके मुकदमे के वे प्रमुख आधार बिंदु क्या थे जिन पर आपने मुकदमा लड़ा.
पहला लिमिटेशन और दूसरा एडवर्स पजेशन . लिमिटेशन का मुकदमा नंबर 4 मुसलमानों की ओर से 18 दिसंबर 1961 को दाखिल किया गया, जिसमें हम प्रतिवादी संख्या 20 हैं. ओल्ड लिमिटेशन एक्ट इन पर लागू होता है.
दूसरे पक्ष का कहना है कि कॉज आफ एक्शन 16 दिसंबर 1949 को हुआ. इस हिसाब से इनका मुकदमा 1954 में दाखिल होना चाहिए था. लेकिन इनका मुकदमा 1961 में दाखिल हुआ. इस हिसाब से इनका मुकदमा खारिज कर दिया जाना चाहिए.
दूसरी बात ये लोग कहते हैं कि वहां विराजमान रामलला को हटा देना चाहिए. तो इन्होंने तो राम लला को अपने मुकदमे में पार्टी ही नहीं बनाया है. नान ज्वाइन्डर आफ पार्टीज में इनका मुकदमा रद्द होने लायक है.
ये लोग एडवर्स पजेशन कि प्ली क्लेम करते हैं कि ये मालिक हुए एडवर्स पजेशन से. लेकिन इस प्ली में इन्हें सबसे पहले मालिक यानी जमीन के मालिक का नाम बताना चाहिए. इस्लामिक लॉ के हिसाब से भी इनका मुकदमा नंबर चार इनके खिलाफ जाता है.
आपको भरोसा है कि आप ये मुकदमा जीतेंगी, अगर जीतेंगी तो किन बिन्दुओं पर.
जीत हार की बात कठिन है. लेकिन हमारा मुकदमा अपनी फुटिंग्स पर बहुत मज़बूत है. हमको भरोसा है कि हमें न्याय मिलेगा. कोर्ट सुपीरिअर फंडामेंटल राइट कि रक्षा करेगा. हमारा सुपीरियर फंडामेंटल राइट है. हमारी आस्था और विश्वास का प्रश्न है.
इंटरव्यूः लखनऊ से सुहेल वहीद
संपादनः एस गौड़