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अयोध्या फैसला टालने की याचिका पर सुनवाई नहीं

२२ सितम्बर २०१०

अयोध्या विवाद को सुलह समझौते से सुलझाने और 24 सितम्बर को फैसला टलवाने की याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने फिलहाल सुनवाई से इनकार कर दिया है. याचिका अब दूसरी बेंच के सामने पेश होगी. गुरुवार को फिर हो सकती है सुनवाई.

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तस्वीर: Wikipedia/LegalEagle

रमेश चन्द त्रिपाठी इससे पहले हाई कोर्ट में भी याचिका दायर कर चुके हैं और वह भी खारिज हो चुकी है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता जोशी ने इस बात का खंडन किया है कि रमेश त्रिपाठी के पीछे कांग्रेस पार्टी है. रमेश चन्द त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट में जिस आधार पर याचिका दाखिल थी उसके लिए इससे पहले भी दर्जनों बार प्रयास हो चुके हैं.

अयोध्या विवाद का सुलह समझौते के जरिए समाधान तलाशने लिए इससे पहले भी गंभीर कोशिशें हुई हैं लेकिन नतीजा नहीं निकल पाया.

1985 से लेकर 2003 के बीच चार प्रधानमंत्री, तिब्बतियों के धार्मिक गुरु दलाई लामा, शंकराचार्य और मरहूम अली मियां समेत दर्जनों लोग इस मामले को सुलझाने का प्रयास कर चुके हैं. 1985 में बाबरी मस्जिद रामजन्म भूमि समस्या समाधान समिति बनाई गई और प्रयास किया गया कि जिस तरह दुबई में सड़क के लिए मस्जिद को स्थानांतरित किया गया उसी प्रकार अयोध्या में भी मस्जिद को विवादित स्थल से हटा कर परिक्रमा मार्ग पर स्थापित कर दिया जाए.

Polizisten in Mathura
तस्वीर: UNI

इसके लिए मुस्लिम देशों के विद्वानों से राय भी ले ली गई और एक प्रतिनिधिमंडल भी बनाया गया.माना जाता है कि तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह को भी इसका समर्थन हासिल था. पर इस बारे में खबर छपते ही ये एक अलग विवाद का कारण बन गया और मामला वहीं रुक गया.

1986 में स्थानीय लोगों ने फिर इसके समाधान का बीड़ा उठाया. मस्जिद के निकट की भूमि का अधिग्रहण हो चुका था. इसके लिए अयोध्या गौरव नाम की एक समिति का गठन भी किया गया. इसमें हिन्दू मुस्लिम नेता शामिल थे.

इसके लिए दिल्ली में सैयद शहाबुद्दीन के घर पर बैठक हुई जिसमे मुस्लिम नेताओं का मानना था के ये प्रस्ताव मुस्लिमो के हित में है. अयोध्या के दिगंबर अखाड़े में विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख नेताओं के विवादित स्थल के निरीक्षण के बाद एक फॉर्मूले पर सहमति बन गई थी लेकिन बाद में यह प्रयास भी विफल हो गया.

20 अक्तूबर 1990 को आध्यात्मिक गुरुओं के बीच वार्ता हुई जिसकी पहल आन्ध्र प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल कृष्णकांत और कांग्रेसी नेता युनूस सलीम ने की थी. अब्दुल करीम पारीख ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आठ लोगों की एक समिति बनाई गई. इस समिति की तरफ से लगातार शांति के प्रयास जारी थे लेकिन 30 दिसंबर और 2 नवम्बर की घटनाओं और हिंसा ने कटुता पैदा कर दी और वार्ता रुक गई.

1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 3 जनवरी 1993 को नरसिम्हा राव सरकार ने विवादित स्थल के आस पास की समस्त भूमि का अधिग्रहण कर लिया. उसके बाद मंदिर-मस्जिद के निर्माण का प्रयास किया गया. मंदिर मस्जिद के अलावा संग्रहालय और पुस्तकालय को बनाया जाना भी तय हुआ. मामला फिर बिगड़ा ओर नरसिम्हा राव का रामालय ट्रस्ट वजूद में ही नहीं आ सका.

फिर 8 मार्च 2002 और 16 जून 2003 को शंकराचार्य ओर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के बीच सुलह की कोशिश हुई. 6 दिसंबर 2003 को लखनऊ में पर्सनल ला बोर्ड का एक सम्मलेन भी हुआ जिसमे मुलायम सिंह यादव भी शामिल हुए. इसमे कहा गया के विवादित स्थल के लिए बातचीत पर्सनल ला बोर्ड ही अधिकृत है. सुलह न होने के चलते अब दोनों पक्ष आखिर में कोर्ट के फैसले का ही इंतजार कर रहे हैं.

रिपोर्ट: सुहैल वहीद, लखनऊ

संपादन: एस गौड़