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अयोध्याः आजादी से विवाद तक

२९ सितम्बर २०१०

अयोध्या को आज सब एक मुद्दे के रूप में जानते हैं. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं रहा. अयोध्या कभी राम-रहीम के सद्भाव की नगरी भी रही. फिर एक तूफान आया और सब उड़ा कर ले गया. जानते हैं कब क्या हुआ.

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अयोध्या से गोधरा तकतस्वीर: AP

अयोध्या में राम मंदिर या बाबरी मस्जिद. यह मुद्दा नया नहीं है. भारत की आजादी के एक ही साल बाद इसका घटनाक्रम शुरू हुआ.

1949: राम की मूर्ति बाबरी मस्जिद की इमारत में मिली. मुस्लिम समुदाय का विरोध प्रदर्शन. दोनों ही पार्टियों ने याचिका दी. सरकार ने विवादित जगह को अपने कब्जे में लिया और दरवाजे पर ताला लगा दिया.

1984: हिंदुओं ने राम के जन्मस्थल को मुक्त कराने के लिए और मंदिर बनाने के लिए एक समिति बनाई जो विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में बनी. इसके बाद बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इस अभियान को अपने हाथों में लिया.

1986: डिस्ट्रिक्ट जज ने विवादित जगह के दरवाजे खोलने का फैसला दिया ताकि वहां पूजा की जा सके. इसके विरोध में दूसरे समुदाय के लोगों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई.

1989: वीएचपी ने विवादित जगह पर राम मंदिर के लिए नींव रखने की घोषणा की.

1990: वीएचपी के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को ढांचे को क्षति पहुंचाई. तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश की लेकिन अगले साल यह बातचीत विफल हो गई.

1992: वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी के समर्थकों ने बाबरी मस्जिद ढहाने की कोशिश की. इसके कारण देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें कम से कम दो हजार लोगों की मौत हो गई.

1998: भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन वाली सरकार केंद्र में आई, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी.

2001: बाबरी मस्जिद ढहाने के दिन पर फिर तनाव. वीएचपी की फिर मंदिर बनाने की प्रतिज्ञा.

जनवरी 2002: अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या सेल बनाया और उसमें एक वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को नियुक्त किया कि वह दोनों समुदायों के नेताओं से बातचीत करें.

फरवरी 2002: बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के चुनावी एजेंडे में मंदिर को मुख्य मुद्दा बना लिया. वीएचपी ने 15 मार्च की तारीख मंदिर निर्माण के लिए तय कर दी. कई सौ लोग विवादित स्थल पर पहुंचे. इसके बाद अयोध्या से आ रहे मंदिर समर्थकों वाली ट्रेन को गोधरा में आग लगा दी गई.

मार्च 2002: ट्रेन को आग लगाने के बाद गुजरात में दंगे भड़के. एक से दो हजार लोग गुजरात के दंगों में मारे गए जिसमें अधिकतर मुस्लिम थे.

अप्रैल 2002: तीन हाई कोर्ट न्यायाधीशों ने सुनवाई शुरू की कि इस विवादित स्थल पर किसकी मिल्कियत है.

जनवरी 2003: पुरातत्वविदों ने हाई कोर्ट के आदेश पर जगह की जांच शुरू की, यह जानने के लिए कि क्या वहां किसी समय में राम मंदिर था.

अगस्त 2003: सर्वे में सामने आया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले हैं लेकिन मुस्लिमों ने इसका विरोध किया. हिंदू कार्यकर्ता रामचंद्र दास परमहंस के अंतिम संस्कार में वाजपेयी ने कहा कि वह मृतक की आखिरी इच्छा पूरी करेंगे और अयोध्या में मंदिर बनवाएंगे. हांलांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि अदालत और बातचीत के जरिए यह मुद्दा सुलझ जाएगा.

सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि सात हिंदू नेताओं के खिलाफ बाबरी मस्जिद ढहाने के आरोप में मुकदमा चलाया जाएगा लेकिन तत्कालीन उप प्रधानमंत्री आडवाणी का नाम इसमें नहीं था.

अक्तूबर 2004: आडवाणी फिर एक बार बोले कि मंदिर बनाना उनकी पार्टी की प्रतिबद्धता है.

नवंबर 2004: उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने कहा कि पहले के फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए जिसमें बाबरी मस्जिद मामले में आडवाणी पर कोई मुकदमा शुरू नहीं किया गया था.

जुलाई 2005: संदिग्ध इस्लामिक चरमपंथियों ने विवादित स्थल पर हमला किया. विस्फोटकों से भरी एक जीप ढांचे की दीवार में घुसा दी गई. सुरक्षाबलों ने पांच चरमपंथियों को मारने का दावा किया और छठे की पहचान नहीं की जा सकी.

जून 2009: मस्जिद के ढहाने की जांच शुरू होने के 17 साल बाद लिब्रहान आयोग ने इसकी रिपोर्ट पेश की. इसे सार्वजनिक नहीं किया गया.

संकलन: आभा मोंढे

संपादन:वी कुमार

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